कोर्ट / ट्रिब्यूनल औपचारिक अर्जी की गैर मौजूदगी में भी लिमिटेशन एक्ट की धारा 5 के तहत विलंब माफ कर सकता है : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2021-03-24 05:09 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि औपचारिक अर्जी की गैर मौजूदगी में भी लिमिटेशन एक्ट की धारा 5 के तहत कोर्ट / न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) को विलंब के लिए माफी देने के अपने विशेषाधिकार के इस्तेमाल करने पर प्रतिबंध नहीं है।

न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की खंडपीठ ने कहा कि कोर्ट विलंब का कारण दर्शाने के लिए अर्जी या कोई हलफनामा दायर करने पर हमेशा जोर दे सकता है।

कोर्ट राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के एक फैसले के खिलाफ अपील पर विचार कर रहा था, जिसमें एक मुद्दा उठाया गया था कि लिमिटेशन एक्ट की धारा 5 के तहत याचिकाकर्ता द्वारा विलम्ब माफी के लिए अर्जी दायर न किये जाने के बावजूद क्या इंसोल्वेंसी एंड बैंकरप्शी कोड (आईबीसी) की धारा सात के तहत दायर अर्जी में तीन साल से अधिक का विलंब माफ किया जा सकता है? इस मामले में, वित्तीय ऋणदाता (फाइनेंशियल क्रेडिटर) ने लिमिटेशन एक्ट की धारा 5 के तहत राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के समक्ष कोई अर्जी दायर नहीं की थी। इसलिए कॉरपोरेट देनदार (डेटर) की दलील थी कि आईबीसी की धारा 7 के तहत अर्जी दायर करने में विलम्ब को माफ नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने कहा कि लिमिटेशन एक्ट की धारा 5 किसी अर्जी की बात नहीं करती और यह कोर्ट को याचिका अथवा अपील सुनवाई के लिए स्वीकार करने को सक्षम बनाती है यदि याचिकाकर्ता या अपीलकर्ता कोर्ट को संतुष्ट करता है कि उसके पास तय समय सीमा के भीतर याचिका अथवा अपील दायर न करने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं।

कोर्ट ने कहा :

"यद्यपि लिमिटेशन एक्ट, 1963 की धारा 5 के तहत औपचारिक तौर पर अर्जी दायर करने की सामान्य परम्परा रही है ताकि निर्धारित समय सीमा के भीतर याचिकाकर्ता / अपीलकर्ता द्वारा कोर्ट / ट्रिब्यूनल का दरवाजा न खटखटाये जाने का पर्याप्त आधार मौजूद हो, लेकिन औपचारिक अर्जी की गैर मौजूदगी में भी कोर्ट / न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) को विलंब के लिए माफी देने के अपने विशेषाधिकार के इस्तेमाल करने पर प्रतिबंध नहीं है। लिमिटेशन एक्ट की धारा 5 को सामान्य तौर पर पढ़ने से यह स्पष्ट होता है कि संबंधित धारा के तहत राहत मंजूर करने से पहले लिखित तौर पर अर्जी दायर करना अनिवार्य नहीं है। यदि ऐसी अर्जी अनिवार्य होती तो लिमिटेशन एक्ट की धारा 5 में इसका जिक्र किया गया होता। तब धारा पांच को इस तरह पढ़ा जाता कि कोर्ट अर्जी या अपील दायर करने की निर्धारित समय सीमा के बाद हुए विलम्ब को माफी दे सकता है यदि कोर्ट इस बात से संतुष्ट है कि अपीलकर्ता / याचिकाकर्ता के पास इस अवधि के भीतर अर्जी या अपील दायर न करने का पर्याप्त कारण है। तब वैकल्पिक रूप से, धारा पांच में एक प्रावधान या स्पष्टीकरण जरूर जोड़ा गया होता कि अपीलकर्ता या याचिकाकर्ता (जैसा भी केस हो) को विलंब माफी के लिए अर्जी दायर करना अनिवार्य होगा।"

बेंच ने हालांकि स्पष्ट किया कि कोर्ट हमेशा इस बात पर जोर दे सकता है कि विलंब का कारण दर्शाने वाली अर्जी या हलफनामा दायर किया जाये और कोई याचिकाकर्ता या अपीलकर्ता बिना अर्जी दायर किये लिमिटेशन एक्ट की धारा पांच के तहत विलंब माफी का दावा नहीं कर सकता।

केस : शेष नाथ सिंह बनाम बैद्यबती शेवराफुली कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड [ सिविल अपील 9198 / 2019 ]

कोरम : न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता

वकील : वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे, एडवोकेट साई दीपक

साइटेशन : एलएल 2021 एससी 177

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