'अदालतें उचित मामलों में सीआरपीसी की धारा 167 के तहत हाउस अरेस्ट का आदेश दे सकती हैं': सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतें उचित मामलों में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 167 के तहत घर में नजरबंदी (हाउस अरेस्ट) का आदेश दे सकती हैं।
कोर्ट ने कहा कि कोर्ट हाउस अरेस्ट का आदेश देने के लिए उम्र, स्वास्थ्य की स्थिति और आरोपियों के पहले व्यवहार, अपराध की प्रकृति, हिरासत के अन्य रूपों की आवश्यकता और हाउस अरेस्ट की शर्तों को लागू करने की क्षमता जैसे मानदंडों पर विचार कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि सजा के बाद के मामलों के संबंध में हाउस अरेस्ट को नियोजित करने के बारे में विचार करने के लिए विधायिका के लिए खुला है।
जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ गौतम नवलखा (भीमा कोरेगांव मामला) द्वारा दायर अपील पर विचार कर रही थी, जिसमें इस सवाल पर विचार किया जाना था कि क्या क्या 29 अगस्त से 1 अक्टूबर, 2018 के बीच नवलखा की गिरफ्तारी की 34 दिनों की अवधि, सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत देने के लिए निर्धारित 90 दिनों की गणना करते समय हिरासत की अवधि में शामिल की जा सकती है?
पीठ ने अपील को खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में घर में नजरबंद करके रखने का आदेश सीआरपीसी की धारा 167 के तहत नहीं दिया गया था और इसलिए यह हाउस अरेस्ट सीआरपीसी की धारा 167 के तहत पारित होने के रूप में नहीं माना जा सकता है। हालांकि अदालत ने भी अपने फैसले में कहा कि क्या सीआरपीसी की धारा 167 के तहत पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत के अलावा अन्य हिरासत का आदेश दिया जा सकता है? दूसरे शब्दों में इस प्रश्न पर विचार किया गया कि क्या सीआरपीसी की धारा 167 के तहत घर में नजरबंदी की गई?
पीठ ने अपने निर्णय में कहा कि,
"एक पहलू है जिसे अब तक शामिल नहीं किया गया। सीआरपीसी की धारा 167 के तहत हिरासत को पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत के रूप में समझा जाता है, न्यायिक हिरासत के तहत आमतौर पर जेल हिरासत में रखा गया है। सीआरपीसी की धारा 167 के तहत हिरासत के तहत घर में नदरबंदी की अवधारणा ने इस अदालत सहित अदालतों को संलग्न नहीं किया है। हालांकि जब समस्या ध्यान में आ गई है और इसकी सामग्री को ध्यान में रखते हुए हमने यह देखा है कि इसमें हिरासत शामिल है जो सीआरपीसी की धारा 167 के अंतर्गत आती है।"
पीठ ने आगे कहा कि,
"हम मानते हैं कि अदालतें उचित मामलों में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 167 के तहत घर में नजरबंदी (हाउस अरेस्ट) का आदेश दे सकती हैं। कोर्ट हाउस अरेस्ट का आदेश देने के लिए उम्र, स्वास्थ्य की स्थिति और आरोपियों के पहले व्यवहार, अपराध की प्रकृति, हिरासत के अन्य रूपों की आवश्यकता और हाउस अरेस्ट की शर्तों को लागू करने की क्षमता जैसे मानदंडों पर विचार कर सकता है। हम यह भी कहते हैं कि सीआरपीसी की धारा 309 के तहत न्यायिक हिरासत में हिरासत का आदेश दिया गया है और मानदंडों का पालन करते हुए अदालतें इसे योग्य और उपयुक्त मामलों में नियोजित करने के लिए स्वतंत्र होंगी।"
कोर्ट ने निर्णय में जेलों में भीड़भाड़ की समस्याएं और जेलों की देखभाल में राज्य की लागत के विभिन्न आंकड़ों को संदर्भित किया।
कोर्ट ने कहा कि,
"घर में नजरबंदी को बढ़ावा देने में जिन फायदों के बारे में बताया गया है, उनमें शामल है- इससे जेलों में भीड़भाड़ कम होगी और जेलों की देखभाल में लगना वाली लागत की बचत होगी। हालांकि घर में नजरबंदी के उचित देखभाल से उत्पन्न मुद्दों के संबंध में भी चिंताएं उत्पन्न हुई हैं। [जेफरी एन हर्विट्ज़ द्वारा लिखित ऑर्टिकल "हाउस अरेस्ट" एक मध्यवर्ती स्तर के दंडात्मक अनुमोदन के एक महत्वपूर्ण विश्लेषण को संदर्भित करता है]"
कोर्ट ने आगे कहा कि,
"भारत की जेलों में अत्यधिक भीड़भाड़ है। दूसरी बात जेलों पर एक बहुत बड़ी राशि (6818.1 करोड़ रुपये) का बजट खर्च होता है। दोनों पहलू को ध्य़ान में रखते हुए हाउस अरेस्ट को महत्व दिया जा रहा है।"
कोर्ट ने यह भी कहा कि भारत में घर में नजरबंदी की अवधारणा निवारक हिरासत के लिए प्रदान करने वाले कानूनों में निहित है।
कोर्ट ने आगे कहा कि, "इस प्रकार निवारक हिरासत से संबंधित कानून के संदर्भ में भारत में हाउस अरेस्ट का सहारा लिया गया है। हालांकि यह भी प्रासंगिक है कि निवारक हिरासत भी जबरन हिरासत का ही एक रूप है। हाउस अरेस्ट भी हिरासत और जबरन हिरासत है।"
केस: गौतम नवलखा बनाम राष्ट्रीय जांच एजेंसी [CrA 510 Of 2021]
कोरम: जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस केएम जोसेफ
CITATION: LL 2021 SC 254