(हिन्दू दत्तक एवं भरण-पोषण कानून) वैध तरीके से गोद लेने के लिए पत्नी की मंजूरी और दत्तक समारोह आवश्यक : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2020-03-09 05:15 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हिन्दू दत्तक एवं भरण-पोषण कानून के तहत वैध तरीके से गोद लेने के लिए दत्तक लेने वाले पुरुष की पत्नी की मंजूरी जरूरी होती है, साथ ही दत्तक लेने-देने संबंधी समारोह भी अनिवार्य होता है।

बंटवारे के एक मुकदमे में, वादी की दलील थी कि बचाव पक्षों ने उसे गोद लिया था। ट्रायल कोर्ट ने वादी की याचिका इस आधार पर खारिज कर दी थी कि वह दत्तक समारोह साबित करने में असफल रही है। हाईकोर्ट ने भी अपील खारिज कर दी थी।

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव एवं न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की खंडपीठ ने अपील यह कहते हुए खारिज कर दी कि वादी ने अपनी गवाही में यह बात स्वीकार की है कि उसे गोद लेने और देने संबंधी समारोह का प्रमाण उसके पास नहीं है।

साथ ही, याचिका में संबंधित कानून के प्रावधानों के अनुरूप दत्तक लेन-देन का भी जिक्र नहीं किया गया है। बेंच ने यह भी कहा कि 'मां' ने अपनी गवाही के दौरान स्पष्ट तौर पर कहा था कि वादी को कभी दत्तक पुत्री नहीं बनाया गया था, बल्कि उसे उसने और उसके पत्नी ने केवल लालन-पालन किया था।

बेंच ले हिन्दू दत्तक एवं भरण-पोषण कानून 1956 के प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा,

" उपरोक्त प्रावधानों को सामान्य तौर पर पढ़ने पर यह स्पष्ट होता है कि किसी दत्तक लेन-देन की प्रक्रिया को तभी वैध माना जायेगा, जब 1956 के इस अधिनियम के चैप्टर-एक की उपरोक्त शर्तों पर अमल किया गया हो।

1956 के संबंधित कानून की धारा-7 एवं 11 में जिन दो महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख किया गया है, पहली बात- कोई हिन्दू पुरुष किसी बच्चे को दत्तक लेता है तो उसकी पत्नी से मंजूरी जरूरी है और दूसरी बात- दत्तक लेन-देन के समारोह का प्रमाण अनिवार्य है।" 

1956 के इस कानून में यह व्यवस्था की गयी है कि दत्तक लेने की प्रक्रिया तब तक वैध नहीं होगी, जब तक कि इस कानून के चैप्टर-एक में उल्लेखित दो शर्तों पर अमल न किया गया हो। ये दोनों शर्त हैं, पहली- कोई हिन्दू पुरुष किसी बच्चे को दत्तक लेता है तो उसकी पत्नी से मंजूरी जरूरी है दूसरी- दत्तक लेन-देन के समारोह का प्रमाण अनिवार्य है।

सुप्रीम कोर्ट ने ही 'घीसालाल बनाम धापूबाई (मृत) कानूनी प्रतिनिधि के जरिये एवं अन्य' के मामले में व्यवस्था दी है कि दत्तक को साबित करने के लिए पत्नी की मंजूरी अनिवार्य है।

कोर्ट के समक्ष 'एल. देवी प्रसाद (मृत) (कानूनी प्रतिनिधियों के जरिये) बनाम श्रीमती त्रिवेणी देवी एवं अन्य' मामले पर भरोसा जताते हुए दलील दी गयी थी थी कि दत्तक को साबित करने के लिए बाद की घटनाओं पर भी विचार किया जा सकता है।

बेंच ने इन दलीलों को यह कहते हुए खारिज दिया :-

हालांकि तथ्य समान हैं, लेकिन हम इस मुकदमे में 'एल. देवी प्रसाद (मृत) मामले' में तय कानून का इस्तेमाल करने में अक्षम हैं।

'एल देवी प्रसाद मामला' गोद लेने की प्रक्रिया से संबंधित है, जो 1892 में हुई थी और हम उस दत्तक प्रक्रिया पर विचार कर रहे हैं जो 1956 के कानून के बाद हुई थी। हालांकि अपीलकर्ता ने यह प्रदर्शित करने के लिए साक्ष्य पेश किये हैं कि स्वर्गीय नरसिम्हुलु नायडू एवं प्रतिवादी ने पुत्री की तरह लालन-पालन किया था, लेकिन वह दत्तक लेन-देन की प्रक्रिया को साबित करने में असफल रही हैं।

केस का नाम: एम. वनजा बनाम एम. सरला देवी

केस नं. सिविल अपील संख्या 8814/2020

कोरम : न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव एवं न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता

वकील : एडवोकेट केदारनाथ त्रिपाठी एवं टी. वी. रत्नम 


जजमेंट की कॉपी डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करेंं



Tags:    

Similar News