रोहिंग्या शरणार्थी हैं या घुसपैठिए? सुप्रीम कोर्ट का सवाल, सरकार से आदेश दिखाने को कहा

Update: 2025-12-02 10:22 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर दायर एक याचिका पर तीखी टिप्पणी करते हुए मंगलवार को पूछा कि क्या भारत सरकार ने कभी रोहिंग्याओं को आधिकारिक रूप से “शरणार्थी” घोषित किया।

अदालत ने स्पष्ट संकेत दिए कि यदि किसी व्यक्ति को शरणार्थी का वैधानिक दर्जा प्राप्त नहीं है और वह अवैध रूप से सीमा पार कर देश में दाखिल हुआ तो उसे यहां रुकने का कोई कानूनी अधिकार नहीं हो सकता।

चीफ जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ उस बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दावा किया गया कि कुछ रोहिंग्या व्यक्तियों को मई माह में दिल्ली पुलिस ने उठाया और उसके बाद से उनके बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।

याचिका में यह भी आग्रह किया गया कि यदि उनका निर्वासन किया जाए तो वह केवल विधि द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के तहत ही हो।

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने सवाल किया कि रोहिंग्याओं को शरणार्थी मानने संबंधी भारत सरकार का कोई आदेश कहां है।

उन्होंने कहा कि शरणार्थी एक विधिक रूप से परिभाषित शब्द है और किसी को यह दर्जा देने के लिए सरकार द्वारा अधिकृत संस्था होती है। यदि किसी के पास शरणार्थी का कानूनी दर्जा नहीं है और वह अवैध रूप से देश में घुसा है तो क्या भारत पर उसे यहां बनाए रखने की बाध्यता हो सकती है।

उन्होंने यह भी पूछा कि क्या ऐसे घुसपैठियों के लिए “रेड कार्पेट स्वागत” रखा जाना चाहिए।

याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई कि वे रोहिंग्याओं को शरणार्थी का दर्जा दिए जाने की मांग नहीं कर रहे हैं और न ही उनके निर्वासन का विरोध है।

उनका कहना केवल इतना है कि निर्वासन सरकार द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के तहत किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मौजूदा मामला हिरासत में गायब होने का है और किसी भी परिस्थिति में लोगों को गैरकानूनी तरीके से बाहर नहीं भेजा जा सकता, क्योंकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी घातक हो सकता है।

चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की कि यदि किसी का देश में रहने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है और वह अवैध रूप से संवेदनशील सीमा पार कर यहां घुसा है तो समस्या क्या है उसे वापस भेजने में।

उन्होंने कहा कि कोई व्यक्ति पहले गैरकानूनी ढंग से सीमा पार करे और फिर यह दावा करे कि अब उसे यहां भोजन, आवास और बच्चों को शिक्षा देने जैसे अधिकार मिलें कानून को इस तरह खींचना क्या उचित है।

पीठ ने यह भी कहा कि देश में पहले से ही बड़ी संख्या में गरीब नागरिक मौजूद हैं, जिनकी मदद पर ध्यान दिया जाना चाहिए। हालांकि अदालत ने यह भी जोड़ा कि अवैध रूप से प्रवेश करने वालों के साथ किसी तरह की अमानवीय या अवैध कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए।

याचिकाकर्ता के वकील ने दोहराया कि वे किसी भी प्रकार से कानून खींचने की कोशिश नहीं कर रहे हैं बल्कि केवल यह चाहते हैं कि सरकार के मौजूदा दिशानिर्देशों और प्रक्रिया के अनुसार ही निर्वासन हो।

उन्होंने 2020 के सलिमुल्लाह मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि रोहिंग्याओं को भी निर्धारित प्रक्रिया के तहत ही देश से बाहर भेजा जाना चाहिए।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायालय को बताया कि यह याचिका किसी प्रत्यक्ष पीड़ित व्यक्ति द्वारा नहीं, बल्कि जनहित याचिकाकर्ता द्वारा दायर की गई है।

इस पर याचिकाकर्ता पक्ष ने कहा कि जनहित याचिकाओं में पारंपरिक अर्थों में 'लोकस' की बाध्यता लागू नहीं होती।

अदालत ने संकेत दिया कि इस मामले को अन्य संबंधित याचिकाओं के साथ एक साथ सुना जाएगा, जिनमें पहले ही यह प्रश्न उठ चुका है कि रोहिंग्याओं को शरणार्थी माना जाए या अवैध प्रवासी।

सुनवाई के दौरान पहले की एक टिप्पणी का भी उल्लेख हुआ, जब अदालत ने रोहिंग्याओं को समुद्र में फेंक देने संबंधी आरोपों को “गढ़ी हुई कहानी” बताया था।

इसके साथ ही श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी मामले में अदालत की पूर्व टिप्पणी को भी याद किया गया कि “भारत कोई धर्मशाला नहीं है, जो पूरी दुनिया के शरणार्थियों को स्वीकार करता रहे।”

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