सुप्रीम कोर्ट ने धर्मांतरण विरोधी कानूनों पर रोक की मांग वाली याचिका पर राज्यों से जवाब मांगा
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (16 सितंबर) को विभिन्न राज्यों को उन याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए कहा, जिनमें धार्मिक धर्मांतरण से संबंधित उनके कानूनों पर रोक लगाने की मांग की गई।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की खंडपीठ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, झारखंड और कर्नाटक के धर्मांतरण से संबंधित कानूनों की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
खंडपीठ ने राज्यों को अपना जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है। मामले की अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद होगी।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट चंदर उदय सिंह ने मामले की तत्काल सुनवाई की मांग की। उन्होंने कहा कि राज्य इन कानूनों को और भी सख्त बना रहे हैं, जिससे धार्मिक स्वतंत्रता और अंतरधार्मिक विवाह प्रभावित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि 2024 में उत्तर प्रदेश के कानून में संशोधन कर जबरन धर्मांतरण के लिए सजा को न्यूनतम 20 साल से बढ़ाकर आजीवन कारावास कर दिया गया।
इसके अलावा जमानत की शर्तें भी कड़ी कर दी गईं। उन्होंने कहा कि अंतरधार्मिक विवाह करने वाले जोड़ों और अल्पसंख्यकों को इन कानूनों के कारण काफी उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है।
सिंह ने खंडपीठ को बताया कि उन्होंने इन कानूनों पर रोक लगाने की मांग करते हुए आवेदन दायर किए। एडवोकेट वृंदा ग्रोवर ने भी बताया कि उनके मुवक्किल ने भी इसी तरह का आवेदन दायर किया।
कोर्ट को यह भी बताया गया कि गुजरात और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने पहले ही अपने-अपने धर्मांतरण कानूनों के कुछ प्रावधानों पर रोक लगाई, जिसे संबंधित राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं और प्रतिवादी राज्यों की ओर से क्रमशः सृष्टि अग्निहोत्री और रुचिका गोयल को नोडल वकील नियुक्त किया, ताकि वे संकलित दस्तावेज तैयार कर सकें।
कोर्ट ने एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर उस जनहित याचिका को भी अलग कर दिया, जिसमें जबरन धर्मांतरण को अपराध बनाने के लिए अखिल भारतीय कानून की मांग की गई थी।
यह मामला विभिन्न राज्यों द्वारा बनाए गए धर्मांतरण विरोधी कानूनों की वैधता को चुनौती देता है। सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2020 में इस मामले में नोटिस जारी किया था।