इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य पेश करने के लिए साक्ष्य अधिनियम की धारा 65बी(4) के तहत प्रमाण-पत्र अनिवार्य; मौखिक साक्ष्य संभवतः पर्याप्त नहीं : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2022-05-11 05:09 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 बी (4) के तहत प्रमाण-पत्र अनिवार्य है और ऐसे प्रमाण-पत्र के स्थान पर मौखिक साक्ष्य संभवतः पर्याप्त नहीं हो सकता है।

इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने अपहरण-सह-हत्या मामले में तीन आरोपियों को दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट ने दो आरोपियों की अपील स्वीकार करते हुए उन्हें बरी कर दिया। एक आरोपी की सजा को बरकरार रखा गया था, हालांकि मौत की सजा को रद्द कर दिया गया था। इस आरोपी ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

शीर्ष अदालत के समक्ष उठाए गए मुद्दों में से एक यह था कि क्या अभियोजन द्वारा पेश किए गए कॉल रिकॉर्ड भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65ए और 65बी के तहत स्वीकार्य होंगे।

न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति विनीत सरन की पीठ ने 'अर्जुन पंडितराव खोतकर बनाम कैलाश कुषाणराव गोरंट्याल [(2020) 7 एससीसी 1]' में दिये गये फैसले का जिक्र करते हुए कहा:

"हाईकोर्ट के समक्ष पेश किया गया इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य क़ानून के अनुसार होना चाहिए और प्रमाणन आवश्यकता का अनुपालन करना चाहिए, क्योंकि यह कानून की अदालत में स्वीकार्य है। जैसा कि ऊपर कहा गया है, ऐसे प्रमाण पत्र के स्थान पर मौखिक साक्ष्य , जैसा कि वर्तमान मामले में है, संभवतः पर्याप्त नहीं हो सकता क्योंकि धारा 65बी(4) कानून की अनिवार्य आवश्यकता है।"

रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों का हवाला देते हुए, पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि अपीलकर्ता-आरोपी की सजा विसंगतियों और विरोधाभासों से प्रभावित है, जिससे इस तरह के परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर पूरी तरह से आधारित सजा को बनाए रखना असंभव हो जाता है।

कोर्ट ने अपील की अनुमति देते हुए कहा,

"हम मानते हैं कि वर्तमान अपीलकर्ता यानी ए 2 के खिलाफ परिस्थितिजन्य साक्ष्य बच्चों की हत्या करने में ए 2 के अपराध को निर्णायक रूप से स्थापित नहीं करता है। अंतिम बार देखे जाने का सिद्धांत, आरोपी की गिरफ्तारी, भौतिक वस्तुओं की वसूली और प्रस्तुत कॉल विवरण, सबूत की श्रृंखला को निर्णायक रूप से पूरा नहीं करते हैं और इस तथ्य को स्थापित नहीं करते हैं कि ए 2 ने पीडब्ल्यू-5 के बच्चों की हत्या की। इसके अतिरिक्त, प्रतिवादी का यह तर्क कि ए1 और ए2 द्वारा उपयोग किए गए फोन से संबंधित कॉल विवरण ने स्थापित किया है कि उनके बीच अंतरंग संबंध था और यह संबंध अपराध का मूल कारण बन गया, यह भी स्वीकार करने योग्य नहीं है।"

मामले का विवरण

रवींदर सिंह @ काकू बनाम पंजाब सरकार | 2022 लाइव लॉ (एससी) 461 | सीआरए 1307/2019 | 4 मई 2022

कोरम: जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस विनीत सरन

हेडनोट्स: भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872; धारा 65बी(4) – इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए धारा 65बी(4) के तहत प्रमाण पत्र अनिवार्य आवश्यकता है - ऐसे प्रमाण पत्र के स्थान पर मौखिक साक्ष्य संभवतः पर्याप्त नहीं हो सकता (पैरा 20-21)

आपराधिक मुकदमा - परिस्थितिजन्य साक्ष्य - जहां कोई मामला पूरी तरह से परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर टिका होता है, दोष का अनुमान तभी उचित ठहराया जा सकता है जब सभी आपत्तिजनक तथ्य और परिस्थितियां आरोपी की बेगुनाही के साथ असंगत पाई जाती हैं। जिन परिस्थितियों से अभियुक्त के अपराध के बारे में अनुमान लगाया गया है, उन्हें उचित संदेह से परे साबित किया जाना चाहिए और उन परिस्थितियों से अनुमानित मुख्य तथ्य के साथ निकटता से जुड़ा होना दिखाया जाना चाहिए। (पैरा 10)

ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



Tags:    

Similar News