सहयोग पोर्टल के जरिये केंद्र की ब्लॉकिंग शक्तियों को वैध ठहराने वाले फैसले के खिलाफ एक्स कॉर्प की अपील, कर्नाटक हाईकोर्ट में नई कानूनी लड़ाई शुरू

Update: 2025-11-15 11:28 GMT

एक्स कॉर्प ने सहयोग पोर्टल के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा जारी की जाने वाली ब्लॉकिंग निर्देशों को वैध ठहराने वाले कर्नाटक हाईकोर्ट के सिंगल बेंच के निर्णय के खिलाफ अपील दायर की है। यह अपील 14 नवंबर को दायर की गई, जिसमें 24 सितंबर को सुनाए गए उस फैसले को चुनौती दी गई। इस फैसले में कोर्ट ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 79(3)(b) की व्याख्या को लेकर कंपनी की याचिका खारिज कर दी थी।

मूल याचिका में एक्स कॉर्प ने तर्क दिया कि केंद्र सरकार के अधिकारी धारा 79(3)(b) के तहत स्वतंत्र रूप से ब्लॉकिंग आदेश जारी नहीं कर सकते, क्योंकि इस धारा में कोई विस्तृत प्रक्रिया नहीं है। कंपनी का कहना था कि सामग्री अवरुद्ध करने की शक्ति केवल धारा 69A और उससे जुड़े नियमों विशेषकर 2021 के नियमों में निर्धारित विस्तृत प्रक्रिया का पालन करते हुए ही प्रयोग की जा सकती है। सिंगल बेंच ने यह तर्क अस्वीकार कर दिया और कहा कि सहयोग पोर्टल का उपयोग कानून के अनुरूप है।

24 सितंबर के निर्णय में अदालत ने ऑनलाइन मंचों पर नियमन की आवश्यकता को स्पष्ट शब्दों में रेखांकित किया। अदालत ने सोशल मीडिया को आधुनिक सार्वजनिक अखाड़े की संज्ञा देते हुए कहा कि इसे अराजक स्वतंत्रता की स्थिति में नहीं छोड़ा जा सकता। अदालत ने कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को उचित प्रतिबंधों से अलग नहीं किया जा सकता और बिना नियमन की अभिव्यक्ति अंततः अराजकता को जन्म देती है जबकि नियंत्रित अभिव्यक्ति लोकतंत्र में स्वतंत्रता और व्यवस्था दोनों की रक्षा करती है।

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि कोई भी विदेशी कंपनी, जिसमें एक्स कॉर्प भी शामिल है, संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) का सहारा नहीं ले सकती, क्योंकि यह मौलिक अधिकार केवल नागरिकों के लिए सुरक्षित है। एक्स कॉर्प द्वारा इस प्रावधान पर आधारित दलीलों को अदालत ने खारिज कर दिया था।

सहयोग पोर्टल को वैध ठहराते हुए अदालत ने उसे धारा 79(3)(b) और 2021 के नियमों के तहत तैयार किया गया सार्वजनिक हित का साधन बताया। अदालत ने कहा कि यह पोर्टल तेजी से बढ़ते साइबर अपराधों से मुकाबला करने के लिए सरकारी एजेंसियों और मध्यस्थों के बीच सहयोग का तकनीकी माध्यम है। एक्स कॉर्प की आलोचना को अदालत ने पोर्टल के उद्देश्य और कानूनी ढांचे की गलत समझ बताया।

निर्णय में अदालत ने एक्स कॉर्प के आचरण पर भी टिप्पणी की थी और कहा था कि कंपनी अमेरिका में सरकारी आदेशों का पालन करती है, जहां आदेशों की अवहेलना पर आपराधिक दंड भी संभव है लेकिन भारत में अलग रुख अपनाती है जबकि वह यहां के विधिक क्षेत्राधिकार के अंतर्गत संचालित होती है।

24 सितंबर को फैसला आने के कुछ दिनों बाद एक्स कॉर्प ने कहा था कि वह इस निर्णय से असहमति रखती है और उच्च स्तर पर अपील करेगी। कंपनी ने यह भी कहा था कि कर्नाटक हाईकोर्ट का निर्णय बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा केंद्र सरकार की फैक्ट चेक यूनिट को निरस्त करने वाले फैसले के विपरीत है। वह इस विचार से भी असहमत है कि विदेशी कंपनी अनुच्छेद 19(1)(a) का हवाला नहीं दे सकती।

अपील दायर होने के साथ अब कर्नाटक हाईकोर्ट की दो-जजों की पीठ यह तय करेगी कि भारत के डिजिटल क्षेत्र में मध्यस्थों की जिम्मेदारी की सीमा क्या है, सहयोग पोर्टल की कानूनी स्थिति क्या है, धारा 69A और 79 की व्याख्या किस तरह की जानी चाहिए और क्या विदेशी कंपनियों को भारतीय डिजिटल नियमन ढांचे में संवैधानिक संरक्षण का कोई दावा है या नहीं।

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