कावेरी नदी विवाद| सुप्रीम कोर्ट में सीडब्ल्यूएमए ने कर्नाटक द्वारा तमिलनाडु को पानी छोड़े जाने के संबंध में रिपोर्ट दाखिल की
सुप्रीम कोर्ट को कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (सीडब्ल्यूएमए) ने गुरुवार (31 अगस्त) को दायर हलफनामे में बताया कि उसे कर्नाटक राज्य द्वारा सूचित किया गया है कि 12.08.2023 से 26.08.2023 तक बिलीगुंडुलु में कुल 149898 क्यूसेक पानी छोड़ा गया।
तमिलनाडु सरकार ने 14 अगस्त, 2023 को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और कर्नाटक को अपने जलाशयों से तुरंत 24,000 क्यूबिक फीट प्रति सेकंड (क्यूसेक) पानी छोड़ने के लिए बाध्य करने में हस्तक्षेप की मांग की थी। इसका उद्देश्य महीने के शेष भाग के लिए अंतरराज्यीय सीमा पर बिलीगुंडलू में पानी की निर्दिष्ट मात्रा को सुरक्षित करना है।
जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने सीडब्ल्यूएमए को यह निर्देश दिया है की 25 अगस्त को सीडब्ल्यूएमए अदालत को यह सूचित करे कि क्या कर्नाटक राज्य ने तमिलनाडु को पानी छोड़ने पर प्राधिकरण के निर्देशों का पालन किया। आगामी पखवाड़े के लिए भी पानी छोड़े जाने के संबंध में अपने निर्णय से सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराने को भी कहा गया।
सीएमडब्ल्यूए ने 11 अगस्त, 2023 को आयोजित अपनी 22वीं बैठक में निर्णय लिया कि कर्नाटक राज्य को कृष्णा राजा सागर और काबिनी जलाशयों से 10000 क्यूसेक की दर से पानी छोड़ना है, जिससे 12 अगस्त से अगले 15 दिनों के लिए बिलीगुंडुलु में प्रवाह का एहसास हो सके।
सीडब्ल्यूएमए ने अपने हलफनामे में कहा कि 28 अगस्त 2023 को आयोजित कावेरी जल विनियमन समिति (सीडब्ल्यूआरसी) की 85वीं बैठक और 29 अगस्त 2023 को आयोजित सीडब्ल्यूएमए की 23वीं बैठक में कर्नाटक के सदस्य ने अधिकारियों को सूचित किया कि पानी छोड़ा गया, जैसा कि सीडब्ल्यूएमए द्वारा निर्देशित किया गया है।
सीडब्ल्यूएमए ने अपने हलफनामे में 12.08.2023 से 26.08.2023 के दौरान बिलीगुंडुलु में प्राप्त औसत प्रवाह को सारणीबद्ध किया, जिसमें 15 दिन की अवधि के दौरान संचयी प्रवाह 149898 क्यूसेक दिखाया गया।
सीडब्ल्यूएमए ने सुप्रीम कोर्ट को यह भी सूचित किया कि 29 अगस्त 2023 को आयोजित अपनी 23वीं बैठक में कर्नाटक को 29 अगस्त से अगले 15 दिनों के लिए 5000 क्यूसेक की दर से बिलीगुंडुलु में प्रवाह की प्राप्ति सुनिश्चित करने के निर्देश जारी किए गए।
मामले की पृष्ठभूमि
तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका दायर कर कर्नाटक को अपने जलाशयों से 24,000 क्यूबिक फीट प्रति सेकंड (क्यूसेक) पानी छोड़ने के लिए मजबूर करने में हस्तक्षेप की मांग की। न्यायालय से किए गए अनुरोध में कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण (सीडब्ल्यूडीटी) के अंतिम निर्णय के अनुसार, फरवरी 2007 से सितंबर 2023 के लिए निर्धारित 36.76 टीएमसी (हजार मिलियन क्यूबिक फीट) पानी छोड़ने की गारंटी देने के लिए कर्नाटक को निर्देश देने की याचिका भी शामिल है, जिसे बाद में 2018 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा संशोधित किया गया।
कर्नाटक राज्य ने अपने जवाबी हलफनामे में तमिलनाडु की याचिका को पूरी तरह से 'गलत' बताया। तमिलनाडु की प्रार्थनाओं के जवाब में कर्नाटक ने कहा कि तमिलनाडु का आवेदन इस गलत धारणा पर आधारित है कि वर्तमान जल वर्ष सामान्य जल वर्ष है न कि संकटग्रस्त जल वर्ष। कर्नाटक ने कहा कि बारिश 25% कम हुई है। कर्नाटक के चार जलाशयों में पानी का प्रवाह 42.5% कम हुआ। इस संदर्भ में कर्नाटक ने कावेरी जल विवाद पर दावा किया कि पानी छोड़ने की निर्धारित मात्रा इस वर्ष लागू नहीं होगी।
कावेरी जल विवाद कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच लंबे समय से चला आ रहा विवाद है और यह 1974 में शुरू हुआ था जब ऊपरी तटवर्ती राज्य कर्नाटक ने तमिलनाडु की सहमति के बिना पानी मोड़ना शुरू कर दिया था । 2007 में सीडब्ल्यूडीटी द्वारा जल बंटवारे के फॉर्मूले को अंतिम रूप देने के बाद यह झगड़ा सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। यह अवार्ड 5 फरवरी, 2007 को सामने आया और 19 फरवरी, 2013 को केंद्र सरकार द्वारा राजपत्रित किया गया। पानी के बंटवारे पर निर्णय लेने के अलावा, न्यायाधिकरण ने कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड और कावेरी जल विनियमन समिति की स्थापना की सिफारिश की थी।
2018 में तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अमिताव रॉय और जस्टिस एएम खानविलकर की तीन-न्यायाधीशों की खंडपीठ ने कर्नाटक राज्य को तमिलनाडु राज्य को 192 टीएमसी के बजाय 177.25 टीएमसी पानी जारी करने का निर्देश दिया था।
केस टाइटल: कर्नाटक राज्य अपने मुख्य सचिव द्वारा बनाम तमिलनाडु राज्य अपने मुख्य सचिव द्वारा एमए 3127/2018 सी.ए. में नंबर 2453/2007