सज्जनतापूर्ण आचरण को गलत न समझें, 'कोर्ट में दिए गए बयानों को लेकर सावधान रहें, सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने वकील को फटकार लगाई
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने गुरुवार को एक मामले पर सुनवाई के दौरान उस समय गहरी नाराजगी व्यक्त की जब एक वकील एक मामले पर बहस करता रहा, जबकि पीठ ने स्पष्ट कर दिया था कि याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता।
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दुष्ट हाथी 'अरीकोम्बन' की भलाई की मांग की गई थी, जिसे मानव बस्तियों के लिए खतरे के मद्देनजर केरल के जंगल से स्थानांतरित किया गया था।
शुरुआत में पीठ ने "एरीकोम्बन" से संबंधित कई याचिकाओं से निपटने में नाराजगी व्यक्त की और वकील से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने को कहा।
इस पर वकील को अनुच्छेद 32 के तहत न्यायालय के रवैये के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी की, जो पीठ को पसंद नहीं आई।
सीजेआई ने वकील से कहा,
"मैं किसी को भी अपनी अदालत को मजाक में लेने की इजाजत नहीं दूंगा। सज्जनतापूर्ण व्यवहार को गलत न समझें, इसमें कठोर आंतरिक स्थिति हो सकती है। आपको अदालत में दिए गए बयानों के तरीके के बारे में बहुत सावधान रहना होगा। मत सोचो कि आप इससे बच जायेंगे।"
यह जनहित याचिका एक पशु अधिकार समूह, वॉकिंग आई फाउंडेशन फॉर एनिमल एडवोकेसी द्वारा दायर की गई थी। शुरुआत में ही सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने याचिका खारिज करने को कहा और याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट जाने का निर्देश दिया।
सीजेआई ने कहा,
"एरीकोम्बन पर अब कुछ भी नहीं। हम पहले ही एरिकोम्बन पर मामलों से निपट चुके हैं। अब केरल हाईकोर्ट जाएं।"
वकील ने तर्क दिया,
"आज तक अरीकोम्बन के कल्याण को लेकर किसी भी अदालत में कोई मामला लंबित नहीं है।"
इस पर मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की-
"यह और भी बेहतर है, अब आप अनुच्छेद 226 के तहत याचिका दायर कर सकते हैं।"
याचिका पर सुनवाई जारी रखने में पीठ की अनिच्छा से अप्रभावित वकील ने शीर्ष अदालत से उनकी याचिका पर सुनवाई करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा-
"मैं इस संबंध में केवल जानवर के कल्याण के बारे में चिंतित हूं...तमिलनाडु राज्य हमें दिखाए कि हाथी कहां है, कुछ तस्वीरें या कुछ और भेजें। उन्हें हमें जानवर की स्थिति दिखाने दें, क्या वह जीवित है या जीवित नहीं?"
सीजेआई चंद्रचूड़ ने अरिकोम्बन पर सुप्रीम कोर्ट में दायर कई याचिकाओं पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा
"हमें इस पर बहुत सारी याचिकाएं मिल रही हैं - कुछ इस हाथी को कहीं और रखने की मांग कर रहे हैं, कुछ अन्य राहतों की मांग कर रहे हैं। हाईकोर्ट बिल्कुल इसी के लिए है। वे जमीनी हकीकत से अवगत हैं। केरल हाईकोर्ट ने आदेश पारित किए, हमने उनकी पुष्टि की।"
इसके बाद पीठ ने याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट जाने की छूट के साथ याचिका वापस लेने की अनुमति देते हुए एक आदेश पारित किया।
इसके बावजूद, वकील ने अपनी दलीलें जारी रखीं और जोर देकर कहा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई करे। उन्होंने कहा कि
"लेकिन कभी हाथी केरल में होता है और कभी तमिलनाडु में, इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि केरल हाईकोर्ट या मद्रास हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाए।"
जवाब में सीजेआई चंद्रचूड़ ने दृढ़ता से कहा कि हाथी स्वाभाविक रूप से चलते हैं और वन्यजीवों के सटीक स्थान को जानने की आवश्यकता पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा-
"तो क्या? क्या आपको लगता है कि हाथी एक ही स्थान पर रहेगा? यह एक हाथी है! निश्चित रूप से यह चारों ओर घूमेगा। आपको यह क्यों पता होना चाहिए कि वन्यजीव कहां हैं? ... यह बताना हमारे क्षेत्राधिकार में नहीं है कि कौन सा हाईकोर्ट में जाना होगा।"
वकील अपनी दलीलों पर कायम रहे और कहा-
"लाखों लोग हाथी के समाचार का इंतजार कर रहे हैं माई लॉर्ड्स। यह आर्टिकल 32 के तहत याचिका के संबंध में आपके लॉर्डशिप के रवैये को दर्शाता है। मैं इसे अच्छी तरह से जानता हूं।"
इस समय सीजेआई चंद्रचूड़ ने वकील को कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के खिलाफ चेतावनी दी और अदालत का सम्मान करने और इसे हल्के में लेने से बचने की आवश्यकता पर जोर दिया।
प्रारंभिक आदेश को संशोधित करते हुए पीठ ने याचिकाकर्ता पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया।
कल ही सीजेआई की पीठ ने केरल के चिन्नक्कनाल में हाथी 'एरीकोम्बन' को उसके प्राकृतिक आवास में वापस स्थानांतरित करने की मांग वाली जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था।
अदालत ने माना था कि याचिकाकर्ता के पास वैकल्पिक उपाय हैं और तदनुसार जनहित याचिका खारिज कर दी गई। अप्रैल में भी, सुप्रीम कोर्ट ने 'एरीकोम्बन' के ट्रांसलोकेशन के लिए केरल हाईकोर्ट के निर्देश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था।
केस टाइटल: वॉकिंग आई फाउंडेशन फॉर एनिमल एडवोकेसी और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 676/2023 पीआईएल-डब्ल्यू