कार लोन | कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा, किस्त देने में हुई चूक के कारण बैंक ने वाहन वापस ले लिया हो तो यह डकैती जैसा नहीं
कलकत्ता हाईकोर्ट ने एचडीएफसी बैंक लिमिटेड के कर्मचारियों के खिलाफ सुनील कुमार शर्मा/विपरीत पक्ष संख्या 2 की ओर से शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया। शर्मा ने उपरोक्त बैंक से कार ऋण लिया था, जिसे 60 से अधिक किश्तों में चुकाना था। साथ ही उन्होंने एक और 90,000 रुपये का पर्सनल लोन भी लिया था।
विपरीत पक्ष/शिकायतकर्ता की ओर से यह तर्क दिया गया था कि वह 2009 में वित्तीय संकट में पड़ गया और ऋण की किश्तें नहीं चुका सका, जिसके कारण बैंक और उसके एजेंटों ने उसकी गाड़ी को "जबरन और धोखे से वापस ले लिया"।
डकैती, आपराधिक धमकी आदि के मामलों में बैंक के अधिकारियों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए, जस्टिस सिद्धार्थ रॉय चौधरी की एकल पीठ ने कहा, "जब यह पाया जाता है कि ऋणदाता या फाइनेंसर ने पार्टियों और उनके बीच निष्पादित समझौते के अनुसार वाहन पर कब्जा कर लिया है तो यह नहीं कहा जा सकता है कि ऋणदाता ने दंड संहिता के अर्थ के तहत अपेक्षित मनःस्थिति और बेईमान इरादे से अपराध किया है।
अधिक से अधिक यह एक नागरिक विवाद हो सकता है, जिसे आपराधिकता के रंग में रंग दिया गया है।
मेरी विनम्र राय में यह उपयुक्त मामला है, जिसमें जादवपुर पुलिस स्टेशन में दर्ज केस नंबर 657/2009 की कार्यवाही को रद्द करने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के प्रावधान को लागू किया जा सकता है, जिसे मैं तदनुसार कर रहा हूं। इस प्रकार आपराधिक पुनरीक्षण की अनुमति दी जाती है।"
शिकायतकर्ता ने यह तर्क दिया कि उसे एक व्यक्ति/अभियुक्त संख्या दो की ओर से फोन आया था।
अभियुक्त संख्या दो ने शिकायतकर्ता के साथ एक व्यावसायिक साझेदारी विकसित करने में रुचि दिखाई थी, जिस पर बातचीत के लिए शिकायतकर्ता ने अपने ड्राइवर को अपनी कार के साथ अंभियुक्त संख्या दो को लेने के लिए भेजा था।
शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि जब ड्राइवर मुलाकात स्थल पर पहुंचा, तो आरोपी संख्या 2 अज्ञात व्यक्तियों के साथ जबरन कार में घुस गया, ड्राइवर के साथ मारपीट की, चाबियां छीन लीं और कथित तौर पर डैशबोर्ड में रखे 12,000 रुपये लेकर भाग गया।
यह प्रस्तुत किया गया कि शिकायतकर्ता ने उपरोक्त घटनाओं के संबंध में जादवपुर पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई और बाद में उसे एचडीएफसी बैंक से एक पत्र मिला, जिसमें इस तथ्य को स्वीकार किया गया था कि उन्होंने उसकी कार को अपने कब्जे में ले लिया है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील ने प्रस्तुत किया कि विपरीत पक्ष/शिकायतकर्ता ने एचडीएफसी बैंक से लोन लेनकर वाहन खरीदा था और वह समझौते के अनुसार ऋण चुकाने में विफल रहा था।
यह प्रस्तुत किया गया था कि कब्जे से पहले और कब्जे के बाद की सूचना क्षेत्राधिकार पुलिस को दी गई थी और शिकायतकर्ता को यह भी सूचित किया गया था कि डिफ़ॉल्ट राशि की वसूली के लिए उसका वाहन बेच दिया जाएगा, जिससे आपराधिक कार्यवाही के लिए कोई जगह नहीं बचेगी।
राज्य के वकील ने केस डायरी पेश की, जिसमें यह नोट किया गया कि एचडीएफसी बैंक ने पूर्व विधाननगर पुलिस को सूचना देने के बाद ही वाहन पर कब्ज़ा कर लिया था और आईओ मामले के अधिकारी कथित घटना की पुष्टि के लिए गवाहों या सामग्रियों का पता लगाने में सक्षम नहीं थे, जिसके कारण साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 (ई) [कि न्यायिक और आधिकारिक कार्य नियमित रूप से किए गए हैं] के तहत अनुमान वर्तमान मामले पर लागू होगा।
तदनुसार, यह देखते हुए कि बैंक के अधिकारियों ने अपने रोजगार के दरमियान कार्य किया था, और उनके कार्यों में किसी भी आपराधिक अपराध का गठन करने के लिए अपेक्षित आपराधिक कारण का अभाव था, न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया।
मामला: एचडीएफसी बैंक लिमिटेड और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य।
कोरम: जस्टिस सिद्धार्थ रॉय चौधरी
साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (कैल) 228