कश्मीर प्रतिबंध पर वकील वृंदा ग्रोवर ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, क्या वाजिब प्रतिबंध अधिकारों को नष्ट कर सकते हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जम्मू-कश्मीर में लगाए गए इंटरनेट बैन और मीडिया पर प्रतिबंध लगाने के खिलाफ कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन की याचिका पर वकील वृंदा ग्रोवर की दलीलें सुनीं। इस दौरान ग्रोवर ने इस बात पर प्रकाश डाला कि 90 दिनों के बाद भी कश्मीर में तालाबंदी हटाने का कोई संकेत नहीं है।
"कश्मीर टाइम्स 11 अक्टूबर से केवल एक मिनट का संस्करण प्रकाशित करने में सक्षम है। डेटा सेवाएं अनुपलब्ध हैं। आज कोई भी मोबाइल, इंटरनेट सेवाएं, एसएमएस आदि उपलब्ध नहीं हैं। प्रतिबंध के 90 दिन हो चुके हैं। इसने मीडिया की क्षमता को समाप्त कर दिया है।" ग्रोवर ने कहा।
"इंटरनेट और आतंकवादी गतिविधियों के बीच क्या सांठगांठ?"
उन्होंने कहा, "मौलिक अधिकारों पर वाजिब प्रतिबंध इस तरह असम्मानजनक प्रकृति का नहीं हो सकता कि वो अधिकारों को ही नष्ट कर दे, ग्रोवर ने जोर दिया। इंटरनेट और आतंकवादी गतिविधियों के बीच क्या सांठगांठ हो सकती है?" उन्होंने पूछा और कहा कि सरकार का कहना है कि इंटरनेट सेवा को दूरसंचार सेवा निलंबन नियम 2017 के तहत बैन किया गया है।
वृन्दा ने कहा,
"इन नियमों के अनुसार केवल अस्थायी अवधि के लिए प्रतिबंध लगाया जा सकता है। उन्हें लंबे समय तक नहीं रखा जा सकता है। अधिकारियों के आदेशों की वैधता को सत्यापित करने के लिए एक समिति द्वारा समीक्षा करने की आवश्यकता है। इन नियमों को भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम 1885 के तहत तैयार किया गया है। इसमें विशेष रूप से कड़े प्रावधान हैं, क्योंकि यह नागरिकों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित करता है, ग्रोवर ने दलील दी। उन्होंने कहा कि मीडिया की स्वतंत्रता पर एक विशिष्ट, तर्कपूर्ण आदेश के जरिए ही अंकुश लगाया जा सकता है।"
जस्टिस रमना, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस बी आर गवई की पीठ इस मामले की सुनवाई बुधवार को भी जारी रखेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था, कब तक इंटरनेट बैन जारी रहेगा?
इससे पहले 24 अक्टूबर को जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद प्रतिबंधों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू- कश्मीर प्रशासन और केंद्र सरकार से पूछा था कि आखिर कब तक वहां प्रतिबंध और इंटरनेट बैन जारी रहेंगे ।
जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस बीआर गवई के साथ जस्टिस एनवी रमना की तीन जजों की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, "आप स्थितियों की समीक्षा कर सकते हैं, लेकिन हम समय के बारे में जानना चाहते हैं । आप हमें साफ- साफ बताइए।"
हालांकि इस दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि हालात की रोजाना समीक्षा की जा रही है । जम्मू- कश्मीर में 99 प्रतिशत प्रतिबंध हटा लिए गए हैं लेकिन इंटरनेट सेवा बहाल नहीं की गई है क्योंकि इसका असर सीमा पार से पड़ता है । उन्होंने कहा कि कोर्ट को कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं करनी चाहिए ।
दरअसल 16 अक्तूबर को श्रीनगर पुलिस द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला की बहन और बेटी सहित महिला कार्यकर्ताओं को हिरासत में लेने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने घाटी में संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जा हटाने के बाद कश्मीर में बंद और प्रतिबंध से संबंधित सभी आदेशों को दाखिल करने में केंद्र की विफलता पर सवाल उठाए थे । पीठ ने जम्मू-कश्मीर पर लगाए गए प्रतिबंधों के आदेशों को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल ना करने पर नाराज़गी जाहिर की थी ।