'बीमाकर्ता द्वारा शराब पीकर ड्राइविंग करने के आधार पर दावे को खारिज करने के लिए ब्रीथ एनालाइजर टेस्ट या ब्लड टेस्ट आवश्यक नहीं': सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि मोटर व्हीकल एक्ट के तहत ब्रीथ एनालाइजर टेस्ट या ब्लड टेस्ट एक बीमाकर्ता के लिए शराब पीकर ड्राइविंग करने के आधार पर दावे को खारिज करने के लिए आवश्यक नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि यदि दुर्घटना के समय बीमा कंपनी यह तथ्य स्थापित करने में सक्षम है कि ड्राइवर शराब के नशे में था तो बीमाकर्ता को केवल इस आधार पर पॉलिसी के लाभ के बाहर करके उसके अपने अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता कि शराब की उपस्थिति के लिए वैज्ञानिक परीक्षण नहीं किया गया था।
जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस केएम जोसेफ की खंडपीठ ने इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम पर्ल बेवरेजेज लिमिटेड मामले में कहा कि,
" ऐसे मामलों में, जहां कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं है, मामले में हमारे सामने कोई टेस्ट के रूप में परिणाम उपलब्ध नहीं होना, बीमाकर्ता को दुर्घटना पॉलिसी रद्द करने के दावे में अक्षम नहीं कर सकता है। परिस्थितियों की समग्रता प्राप्त करने में इस मामले पर विचार किया जाना चाहिए। "
यहां तक कि अगर शरीर में सटीक अल्कोहल सामग्री की स्थापना नहीं की गई है तो बीमाकर्ता पॉलिसी अनुबंध को रद्द कर सकता है, अगर परिस्थितियों से पता चलता है कि शराब के नशे में ड्राइविंग करते समय दुर्घटना घटी थी।
पृष्ठभूमि
कोर्ट बीमा कंपनी द्वारा राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के एक आदेश के खिलाफ दायर अपील पर विचार कर रहा था, जिसमें शराब पीकर ड्राइविंग करने के आधार पर पॉलिसी देयता को बाहर करने के लिए बीमाकर्ता की गलती को दर्शाया गया था। राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के अनुसार, बीमाकर्ता को यह साबित करना था कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 185 के तहत निर्धारित शराब की मात्रा 30 मिलीग्राम / 100 मिली बल्ड से ज्यादा थी। एनसीडीआरसी ने कहा कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 203 और धारा 204 के तहत निर्धारित ब्रीथ एनालाइजर टेस्ट या ब्लड टेस्ट के वैज्ञानिक परिणामों के माध्यम से उक्त शराब सामग्री की उपस्थिति को साबित किए बिना, बीमाकर्ता खुद को देयता से बाहर नहीं कर सकता है।
एनसीडीआरसी ने ऐसा करते हुए राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के उस आदेश को पलट दिया, जिसमें पॉलिसी के निराकरण के खिलाफ बीमाधारक की शिकायत को खारिज कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले के रिकॉर्ड से पता चला है कि शराब की गंध ड्राइवर से आ रही थी। ड्राइवर की एमएलसी रिपोर्ट में शराब की गंध का संकेत दिया गया था। यहां तक कि एनसीडीआरसी ने इस आधार पर आगे बढ़ाया कि ड्राइवर ने शराब पिया था, लेकिन यह माना था कि शराब की मात्रा कानूनी रूप से स्वीकार्य सीमा से परे साबित नहीं हुई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने देखा कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 185 की आवश्यकता एक आपराधिक अपराध के संदर्भ में है। यदि अभियोजन पक्ष ने एमवी एक्ट की धारा 185 के तहत मामला दर्ज नहीं किया है तो इसका मतलब यह नहीं है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत एक सक्षम फोरम यह खोजने में असक्षम है कि व्यक्ति द्वारा वाहन शराब पीकर चलाया जा रहा था।
न्यायमूर्ति केएम जोसेफ ने कहा कि,
"प्रति 100 मिलीलीटर ब्लड में 30 मिलीग्राम से अधिक शराब की उपस्थिति एक बीमाकर्ता को क्लॉज को सफलतापूर्वक लागू करने में सक्षम होने के लिए अनिवार्य आवश्यकता नहीं है। जो साबित करने की आवश्यकता है वह यह है कि व्यक्ति शराब पीकर गाड़ी चला रहा था।"
आगे कहा कि यदि ब्रेथ एनालाइजर या कोई अन्य परीक्षण किसी कारण से नहीं किया जाता है, तो बीमाकर्ता को मामला साबित करने से रोका नहीं जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि,
"यह सोचना मुश्किल नहीं है कि दुर्घटना शराब पीकर वाहन चलाने के कारण हुई है और न तो ब्रीथ टेस्ट और न ही प्रयोगशाला परीक्षण किया जाता है। दुर्घटना के बाद वाहन चालक भाग सकता है, इसलिए टेस्ट नहीं हो पाता है। हालांकि ऐसे साक्ष्य उपलब्ध हो सकते हैं जो यह संकेत दे सकते हैं कि दुर्घटना के समय व्यक्ति शराब पीकर वाहन चला रहा था। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि कोई टेस्ट नहीं किया गया है इसलिए बीमाकर्ता ऐसे मामले को स्थापित करने के अपने अधिकार से वंचित हो जाएगा जो अनुबंध के तहत अपने अधिकारों के भीतर अच्छी तरह से है (पैराग्राफ 58)।"
आगे कहा कि,
"मोटर वाहन अधिनियम की धारा 185 के तहत आवश्यकता को इस बात के लिए सीमित नहीं किया जाना चाहिए कि एक स्वयं के नुकसान दावे में बीमा की नीति के तहत शराब के प्रभाव में ड्राइविंग का क्या गठन होता है। इस तरह के दावे को दुर्घटना, साक्ष्य के रूप में या यात्रा के दौरान शराब पीने से पहले, पीने के बाद ड्राइवर पर प्रभाव और पक्षकारों द्वारा स्थापित मामले की प्रकृति के आधार पर स्थापित करना चाहिए (पैराग्राफ 101, 106 (जी)।"
मामले के तथ्यों ने शराब पीकर ड्राइविंग करने का संकेत दिया।
कोर्ट ने कहा कि चिकित्साकर्मी ने चालक के शरीर में शराब की गंध पाया था। यह दुर्घटना 22 दिसंबर 2007 की सुबह हुई थी। दुर्घटना के कारणों के बारे में पक्षकारों से कोई स्पष्टीकरण नहीं मिला। चालक और सह-यात्री दोनों ने शराब पिया हुआ था।
पोर्शे कार में बहुत शक्तिशाली इंजन होता है और भारी गति को प्राप्त करने में सक्षम होता है। इसके बाद कार ड्राइवर के कंट्रोल से बाहर हो गई और नई दिल्ली में इंडिया गेट के सड़क के फुटपाथ से टकराई। टकराने के बाद कार पलट गई और बाद में उसमें आग लग गई। आग बुझाने के लिए अग्निशमन सेवाओं को आना पड़ा। कार को रेक के रूप में प्रस्तुत किया गया था।
कोर्ट ने कहा कि दुर्घटना के समय बहुत कम यातायात था और सड़क बहुत चौड़ी थी। कुछ तो सामान्य से बाहर हुआ जिससे यह दुर्घटना हुई।
कोर्ट ने फैसले में कहा कि,
"हम इस तथ्य का न्यायिक नोटिस ले सकते हैं कि राजधानी सिटी में सड़कें विशेष रूप से उस क्षेत्र में जहां दुर्घटना हुई है पर्याप्त रूप से चौड़ी है और वाहन फुटपाथ से तेजी से टकराया और कार में आग लग गई। यह अपने आप इंगित करता है इस तथ्य के साथ कि व्यक्ति शराब पीकर कार चला रहा था, यह चालक की सांस से रंध के रूप में काफी हद तक प्रकट हो गया था। यह दर्शाने के पर्याप्त है कि दुर्घटना के समय व्यक्ति शराब पीकर कार चला रहा था और दुर्घटना में शराब की भूमिका थी।"
कोर्ट ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 279 के तहत उतावलेपन और लापरवाही से ड्राइविंग के लिए अभियोजन पक्ष के मामले में ड्राइवर को दोषी ठहराया था।
कोर्ट ने कहा कि राज्य आयोग का यह विचार कि दुर्घटना शराब पीकर कार चलाने के कारण हुई थी इसलिए रेस इपसा लोक्यूटर के सिद्धांतों को लागू करना एक संभावित दृष्टिकोण था। इसलिए राष्ट्रीय आयोग को सारांश कार्यवाही में इसे उलटने में त्रुटि हुई थी।
केस का विवरण शीर्षक: इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम पर्ल बेवरेजेस लिमिटेड
कोरम: जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस केएम जोसेफ
Appearance : अपीलकर्ता की ओर एडवोकेट शिवम सिंह; प्रतिवादी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन।
Citation: LL 2021 SC 209