भीमा कोरेगांव एलगार परिषद मामला: एनआईए ने कहा- एफएसएल से क्लोन प्रतियां मिलने के बाद, उन्हें आरोपियों को देंगे लेकिन ट्रायल पर रोक नहीं लगानी चाहिए

Update: 2021-10-13 08:05 GMT

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने भीमा कोरेगांव-एलगार परिषद मामले में गिरफ्तारी के चार साल बाद कहा है कि वह जब्त किए गए इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की शेष प्रतियां उपलब्ध कराएगी, लेकिन मामले में सुनवाई जारी रहनी चाहिए।

वकील सुधा भारद्वाज और पत्रकार गौतम नवलखा ने क्लोन प्रतियां प्रदान नहीं किए जाने तक कार्यवाही पर रोक लगाने या आरोप तय करने की प्रक्रिया टालने की मांग की थी, जिसका जवाब देते हुए एनआईए ने दावा किया है कि उन्हें अभी तक फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला से प्रतियां प्राप्त नहीं हुई हैं।

एनआईए ने कहा है कि एक बार प्रतियां प्राप्त होने के बाद सीआरपीसी की धारा 207 के अनुपालन के अनुसार उन्हें आरोपी को दिया जाएगा।

हालांकि, बचाव पक्ष ने दलील दी कि इलेक्ट्रॉनिक डेटा की क्लोन प्रतियों को देने से इनकार करने से भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन होता है और अपीलकर्ता के बचाव को प्रभावित करता है।

एनआईए ने हलफनामे में कहा है, ".. सीआरपीसी की धारा 207 के तहत इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की क्लोन प्रतियां आरोप‌ियों को दी जाएंगी, हालांकि मुकदमे की कार्यवाही पर रोक लगाने की अंतरिम प्रार्थना पर कड़ी आपत्ति है।"

हलफनामे में कहा गया है कि एनआईए ने कुछ इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की क्लोन प्रतियां उपलब्ध कराई हैं। हाल ही में एफएसएल से प्राप्त कुछ प्रतियां जल्द ही अदालत में जमा की जाएंगी और आरोपी को दी जाएंगी।

एजेंसी ने कहा है, "अपीलकर्ता और सह-अभियुक्तों के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के संबंध में पांच लंबित क्लोन प्रतियां अभी तक एफएसएल से प्राप्त नहीं हुई हैं।"

उल्लेखनीय है कि अमेरिका की एक फोरेंसिक कंसल्टेंसी फर्म ने निष्कर्ष निकाला था कि सह-आरोपी रोना विल्सन का लैपटॉप मैलवेयर से संक्रमित था, जिस पर एनआईए का दावा है कि छेड़छाड़ और हेरफेर के आरोप काल्पनिक हैं।

भारद्वाज और नवलखा ने नौ अगस्त को 15 आरोपियों के खिलाफ विशेष एनआईए अदालत के समक्ष मसौदा आरोप प्रस्तुत होने के बाद यह मांग की थी। विशेष आदलत ने आरोपियों की ट्रायल से पहले इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की क्लोन प्रतियों की मांग को खारिज कर दिया था, जिसे उन्होंने चुनौती दी है।

आरोपी रोना विल्सन और सह-आरोपी सुरेंद्र गाडलिंग के कम्‍प्यूटर से मिले पत्रों के आधार पर एनआईए ने 15 सामाजिक कार्यकर्ताओं पर प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) संगठन के सदस्य होने और सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश रचने का आरोप लगाया है। उन पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत अपराध का मामला दर्ज किया गया है।

एनआईए का हलफनामा

संविधान के अनुच्छेद 21 के उल्लंघन के संबंध में एनआईए का कहना है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अधीन है। आरोपी को प्रतियां उपलब्ध कराने की प्रक्रिया सीआरपीसी की धारा 173 और 207 में दी गई है।

हलफनामे में दावा किया गया है, "कुछ लंबित इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों की आपूर्ति, जो पहले से ही अभियुक्तों के खिलाफ है, मौलिक अधिकारों का कथित उल्लंघन नहीं हो सकता है।"

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