बीसीआई ने अधिवक्ता कानून एवं कदाचार को लेकर काउंसिल के नियमों के दायरे में प्रशांत भूषण के ट्वीट और सुप्रीम कोर्ट द्वारा उन्हें दोषी ठहराये जाने की समीक्षा का दिल्ली बार काउंसिल को निर्देश दिया

Update: 2020-09-04 16:31 GMT

बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने एक प्रस्ताव पारित करके कहा है कि अधिवक्ता प्रशांत भूषण के ट्वीट और उनके उन बयानों की जांच आवश्यक है जिसके कारण सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए उनके खिलाफ आपराधिक अवमानना का मामला शुरू किया था और उन्हें दोषी ठहराया।

बीसीआई की आम परिषद की तीन सितम्बर को आयोजित बैठक में यह निर्णय लिया गया कि अधिवक्ता कानून, 1961 की धारा 24ए (नामांकन से अयोग्य ठहराये जाने) और धारा 35 (कदाचार के लिए वकीलों को सजा) तथा बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स के अध्याय-2, खंड-6 (पेशागत कदाचार एवं शिष्टाचार के मानक) के आलोक में श्री भूषण के बयानों की जांच किया जाना जरूरी है।

इस बाबत जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है,

"परिषद का मानना है कि अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत बार काउंसिल में निहित वैधानिक कर्तव्यों, शक्तियों एवं कार्यों के आलोक में तथा खासकर अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 24ए एवं धारा 35 तथा बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स के अध्याय दो, खंड- छह के दायरे में वकील श्री प्रशांत भूषण और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के व्यापक अध्ययन और जांच की आवश्यकता है।"

चूंकि श्री भूषण बार काउंसिल की दिल्ली इकाई के साथ पंजीकृत हैं, इसलिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने बार काउंसिल ऑफ दिल्ली को मामले की छानबीन करने और विधि एवं नियमों के दायरों में आगे बढ़ने का निर्देश दिया है। बार काउंसिल ऑफ दिल्ली को यथाशीघ्र त्वरित निर्णय लेने का निर्देश दिया गया है।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय एक खंडपीठ ने गत 14 अगस्त को श्री प्रशांत भूषण को शीर्ष अदालत और भारत के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ उनके दो ट्वीट के लिए अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया था। गत 20 अगस्त को उनकी सजा को लेकर बहस हुई थी और खंडपीठ ने उनकी दलीलें सुनी थी।

न्यायालय ने श्री भूषण को अपने बयान को लेकर बिना शर्त माफी मांगने का समय भी दिया था। हालांकि, श्री भूषण के अपने बयान पर कायम रहने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त को उन्हें एक रुपये का जुर्माना किया था। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि जुर्माना राशि न भरने पर उन्हें तीन माह की जेल की सजा होगी और तीन साल के लिए शीर्ष अदालत में उनके प्रैक्टिस पर रोक लगेगी। 

प्रेस रिलीज़ 



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