ऑनलाइन धोखाधड़ी में खाते से जाने वाले रुपए बैंक ग्राहकों से नहीं वसूल कर सकता : केरल हाईकोर्ट

Update: 2019-10-17 13:12 GMT

केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर कोई लेनदेन विवादित है और ऑनलाइन धोखाधड़ी के मामले में बैंक को चाहिए कि वह ग्राहक के खाते से निकाली गई राशि को उसको खाते में डाल दे।

न्यायमूर्ति मोहमद मुश्ताक ने दो लोगों की इस बारे में याचिका का निस्तारण करते हुए यह बात कही। इन लोगों ने आरोप लगाया था कि किसी तीसरे पक्ष ने उनके खाते से ऑनलाइन धोखाधड़ी से राशि निकाल ली। इन लोगों ने अदालत से माँग की कि रिज़र्व बैंक के सर्कुलर के हिसाब से इस धोखाधड़ी के लिए उन्हें ज़िम्मेदार नहीं माना जाए और यह राशि उनसे नहीं वसूली जाए।

रिज़र्व बैंक के सर्कुलर की चर्चा करते हुए अदालत ने कहा,

"…इस सर्कुलर में कंट्रिब्यूटरी फ़्रॉड, लापरवाही आदि का ज़िक्र है। इस पृष्ठभूमि में यह प्रश्न भी उठता है कि विवादित लेनदेन की राशि को प्राप्त करने के लिए बैंक के पास क्या उपचार है।"

अदालत ने कहा कि ऋण खाताधारक व्यक्ति का जो पैसा ऑनलाइन धोखाधड़ी के कारण गया है उसे एसएआरएफएईएसआई अधिनियम के तहत नहीं प्राप्त किया जा सकता है।

अदालत ने कहा, 

"ऐसे मामले में जहाँ धोखाधड़ी के आरोप लगाए गए हैं, यह मामला एसएआरएफएईएसआई अधिनियम की परिधि के बाहर हो जाता है, इसलिए बैंक को उन लोगों के ख़िलाफ़ अपने दावे को सिद्ध करना होगा जिन्होंने धोखाधड़ी की है। इस तरह के मामलों में बैंक उनके दावों का फ़ैसला नहीं कर सकता और ऋण लेनेवालों के ख़िलाफ़ फ़ैसला नहीं कर सकता। इसलिए प्रश्न यह उठता है कि क्या बैंक अनुमानित देनदारी के आधार पर ऋण लेनेवाले के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर सकता है या जब धोखाधड़ी के आधार पर किसी बैंकिंग लेनदेन को गंभीर चुनौती दी जाती है उस आधार पर"।

अदालत ने स्वीकार किया कि यह एक बहुत ही नाज़ुक प्रश्न है क्योंकि बंकों को एसएआरएफएईएसआई अधिनियम के तहत उसके अधिकारों को छीनने के लिए इस दावे की बात हर मामले में उठाया जा सकता है इस तरह का दावे की अनुमति सिर्फ़ उन्हीं लेनदेन में है जिसे 'विवादित लेनदेन' बताया गया है।

न्यायाधीश ने विवादित लेनदेन की परिभाषा इस तरह से दी -

"इस संदर्भ में 'विवादित लेनदेन' ऐसे लेनदेन को कहेंगे जिसमें प्रथम दृष्ट्या धोखाधड़ी हुई है। इसका वर्गीकरण आरोपों की प्रकृति और इस बारे में हुई जाँच पर निर्भर करता है…ग्राहक द्वारा सिर्फ़ इसको चुनौती देना काफ़ी नहीं है। अगर इस तरह की चुनौती का समर्थन पुलिस या इस तरह की किसी एजेंसी की स्वतंत्र जाँच की रिपोर्ट भी करती है तो यह उसे प्रथम दृष्ट्या 'विवादित लेनदेन' बनाता है। अगर रिपोर्ट यह दिखाता है कि ऑनलाइन लेनदेन ग्राहक के अलावा उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति ने किया तो उसे 'विवादित लेनदेन' माना जाएगा।"

वर्तमान मामले में, अदालत ने कहा, पुलिस की जाँच से पता चलता है कि आरोपी ने फ़र्ज़ी पहचान कार्ड का प्रयोग करते हुए याचिकाकर्ता का डुप्लीकेट सीम कार्ड हासिल किया और पश्चिम बंगाल में उनके बैंक खाते से तत्काल पैसे निकाल लिए।

अदालत ने कहा,

"इस तरह की परिस्थिति में, इस लेनदेन को 'विवादित लेनदेन' माना जा सकता है। यह आरबीआई सर्कुलर के अनुसार शून्य देनदारी की श्रेणी में आएगा। बैंक के लिए रास्ता यह है कि वह दीवानी अदालत का दरवाज़ा खटखटाए और उन लोगों से यह राशि हासिल करे जो उस तरह के लेनदेन के लिए ज़िम्मेदार हैं"। 


अदालत के फैसले की कॉपी डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें


Tags:    

Similar News