ज़मानत देना एक नियम है और जेल अपवाद, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को दिलाया याद

Update: 2020-03-21 04:00 GMT

एक आरोपी को ज़मानत देने से हाईकोर्ट के इंकार के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उसे ज़मानत देते हुए कहा कि ज़मानत देना नियम है और जेल में रखना अपवाद।

इस आदमी के ख़िलाफ़ पुलिस ने मामले को बंद कर दिया था लेकिन हाईकोर्ट ने इसके बाद भी उसे ज़मानत नहीं दी।

इस आदमी के ख़िलाफ़ 2012 में धोखाधड़ी का एक मामला दर्ज किया गया था और 2013 में पुलिस ने इस मामले को बंद कर दिया। लेकिन पाँच साल बाद न्यायिक मजिस्ट्रेट ने इस मामले की दुबारा जाँच का आदेश दिया।

इसके बाद उसे जनवरी 2019 में गिरफ़्तार कर लिया गया। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने उसकी पहली ज़मानत याचिका रद्द कर दी और दूसरी याचिका को वापस ले लिया गया यह कहते हुए ठुकरा दिया गया।

इस बीच पुलिस ने मामले की जाँच की और दूसरी रिपोर्ट पेश की जिसमें कहा गया था कि अपीलकर्ता ने कोई अपराध नहीं किया है और उसे छोड़ दिया जाना चाहिए। मामले को बंद कर दिए जाने की इस रिपोर्ट के बाद आरोपी ने हाईकोर्ट में इस आधार पर फिर ज़मानत की अर्ज़ी दी।

आरोपी की अपील स्वीकार करते हुए मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, बीआर गवई और सूर्य कांत की पीठ ने कहा,

"हाईकोर्ट को यह बात ध्यान में रखने चाहिए थी कि 'ज़मानत का नियम है, जेल अपवाद है'।

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ज़मानत यांत्रिक तरीक़े से न तो दी जानी चाहिए और न ही इससे इंकार की जानी चाहिए क्योंकि एक व्यक्ति की स्वतंत्रता से यह जुड़ा हुआ है।

इस मामले की विचित्र परिस्थिति यह है कि इसको दो बार बंद किया गया, हाईकोर्ट को सिर्फ़ इसलिए ज़मानत से इंकार नहीं करना चाहिए क्योंकि निचली अदालत ने अभी इस रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया है।

फिर, गवाहों की जाँच दूसरी रिपोर्ट की स्थिति पर निर्भर करेगा। अपीलकर्ता के ख़िलाफ़ जिस तरह के आरोप लगाए गए हैं उसकी प्रकृति को देखते हुए और हिरासत में उसने जो समय बिताया है उसे देखते हुए हम इस बारे में आश्वस्त हैं कि उसे तत्काल ज़मानत दे दी जानी चाहिए।"

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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