क्या जमानत की यह शर्त लगाई जा सकती है कि आरोपी को पुलिस से अपनी गूगल लोकेशन शेयर करनी होगी? सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को टिप्पणी की कि वह इस बात पर विचार करेगा कि क्या दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा एक आरोपी पर लगाई गई जमानत की शर्त, जिसमें उसे जमानत की अवधि के दौरान अपने मोबाइल फोन से अपने Google पिन लोकेशन को संबंधित जांच अधिकारी को बताने की आवश्यकता होगी, उसे संविधान के अनुच्छेद 21 के मद्देनजर अनुमति दी जा सकती है या नहीं।
जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय की चुनौती पर सुनवाई कर रही थी, जिसने कई करोड़ रुपये के बैंक ऋण धोखाधड़ी से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में शक्ति भोग फूड्स लिमिटेड (एसबीएफएल) के इंटरनल ऑडिटर को जमानत दे दी थी।
जस्टिस अभय एस ओक ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि आरोपी को जांच अधिकारी के साथ अपनी गूगल लोकेशन शेयर करने की शर्त लगाना निगरानी के समान होगा और यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
“क्लाज़ डी पढ़ें, क्या यह अनुच्छेद 21 के तहत किया जा सकता है? आवेदक को अपने मोबाइल फोन से आईओ को गूगल पिन लोकेशन डालनी होगी, इससे आईओ उस पर नजर रखेगा, इससे वह लगातार निगरानी में रहेगा।'
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि यह एक ऐसा मामला है जहां आरोपी को जमानत नहीं दी जानी चाहिए थी। आरोपी के वकील ने अदालत को बताया कि जांच अभी भी जारी है और मुकदमा जल्द शुरू नहीं होगा।
कोर्ट ने नोटिस जारी कर मामले की सुनवाई 3 अक्टूबर के लिए तय की है।
शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा,
"मामले की मेरिट के अलावा हमें इस बात पर गंभीरता से विचार करना होगा कि क्या जमानत देते समय शामिल की गई शर्त डी जमानत की शर्त हो सकती है।"
दिल्ली हाईकोर्त द्वारा लगाई गई जमानत शर्त का खंड (डी) इस प्रकार है:
(डी) आवेदक को अपने मोबाइल फोन से संबंधित आईओ को Google पिन स्थान बताना होगा जो उसकी जमानत के दौरान ऑन रखा जाएगा।
इस मामले में वित्तीय अनियमितता और एसबीआई के नेतृत्व वाले बैंकों के एक संघ से एसबीएफएल द्वारा प्राप्त क्रेडिट सुविधाओं के संबंध में धन की हेराफेरी और 3269.42 करोड़ रुपये की अनुमानित हानि के कारण एक एफआईआर दर्ज की गई थी।
प्रतिवादी का मामला यह है कि उसे एफआईआर में आरोपी के रूप में नामित नहीं किया गया था और जांच की अवधि के दौरान वह एसबीएफएल का इंटरनल ऑडिटर नहीं था।
दिल्ली हाईकोर्ट ने माना था कि सीबीआई जांच आगे बढ़ा सकती है लेकिन आवेदक को निम्नलिखित शर्तों पर जमानत पर रिहा कर दिया।
(ए) आवेदक ट्रायल कोर्ट की संतुष्टि के लिए 50,000/- रुपये (पचास हजार रुपये मात्र) की राशि में एक व्यक्तिगत बांड प्रस्तुत करेगा। साथ ही इतनी ही राशि का ज़मानतदार भी पेश करेगा।
(बी) आवेदक देश नहीं छोड़ेगा और यदि आवेदक के पास पासपोर्ट है, तो वह उसे ट्रायल कोर्ट को सौंप देगा।
(सी) आवेदक संबंधित आईओ/एसएचओ को अपना सेलफोन नंबर देगा जिस पर आवेदक से किसी भी समय संपर्क किया जा सकता है और यह सुनिश्चित करेगा कि नंबर हर समय एक्टिव और स्विच-ऑन रखा जाए।
(डी) आवेदक अपने मोबाइल फोन से संबंधित आईओ को एक Google पिन लोकेशन देगा जो उसकी जमानत के दौरान चालू रखा जाएगा।
(ई) आवेदक किसी भी ऐसे कार्य या चूक में शामिल नहीं होगा जो गैरकानूनी, अवैध है या जो लंबित मामलों में कार्यवाही पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा, यदि कोई हो।
(एफ) आवेदक आईओ द्वारा निर्देशित होने पर जांच में शामिल होगा और जब भी आवश्यकता होगी अदालत में उपस्थित होगा।
केस टाइटल : प्रवर्तन निदेशालय वी रमन भूरारिया, डायरी नंबर- 23447/2023