सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाबरी मस्जिद को 1934 में नुकसान पहुंचना, 1949 में इसको अपवित्र करना जिसकी वजह से इस स्थल से मुसलामानों को बेदखल कर दिया गया और अंततः 6 दिसंबर 1992 को इसको ढहाया जाना क़ानून के नियम का गंभीर उल्लंघन है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, एसए बोबडे, डीवाई चंद्रचूड, अशोक भूषण और एस अब्दुल नजीर की पीठ ने एकमत से दिए अपने फैसले में कहा है मुस्लिमों को मस्जिद के निर्माण के लिए कहीं और जगह दिया जाए।
अदालत ने कहा,
"नमाज पढ़ने और इसकी हकदारी से मुस्लिमों का बहिष्करण 22/23 दिसंबर 1949 की रात को हुआ जब हिन्दू देवताओं की मूर्ती वहां रखकर मस्जिद को अपवित्र किया गया। मुसलामानों को वहां से भगाने का काम किसी वैध अथॉरिटी ने नहीं किया बल्कि यह एक भली प्रकार सोची समझी कार्रवाई थी जिसका उद्देश्य मुसलामानों को उनके पूजा स्थल से वंचित करना था।
जब सीआरपीसी, 1898 की धारा 145 के तहत कार्रवाई शुरू की गई और अंदरूनी आंगन को जब्त करने के बाद रिसीवर नियुक्ति किया गया और तब वहां हिन्दू मूर्तियों की पूजा की अनुमति दी गई। इस मामले के लंबित रहने के दौरान, मुस्लिमों के इस पवित्र स्थल को जानबूझकर ढहा दिया गया. मुस्लिमों को गलती से उनके उस मस्जिद से वंचित कर दिया गया जिसे 450 साल से भी पहले बनाया गया था।
6 दिसंबर 1992 को इस मस्जिद को ढहा दिया गया। अदालत के इस स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने के आदेश के बावजूद इस मस्जिद को गिरा दिया गया. मस्जिद को गिराकर इस्लामिक संरचना को नष्ट करना क़ानून के राज का घिनौना उल्लंघन था।
अदालत ने ऐसा कहते हुए अपने फैसले में संविधान के अनुच्छेद 142 का हवाला दिया ताकि "जो गलती हुई थी उसको सही किया जा सके।"
अदालत ने कहा,
"अगर अदालत मुस्लिमों के हक़ को नजरअंदाज करता है जिनके मस्जिद को ऐसे तरीकों को अपनाकर ढहा दिया गया जो एक ऐसे धर्मनिरपेक्ष देश में नहीं होना चाहिए था जिसने क़ानून के शासन को अपनाया है. संविधान में सभी धर्मों को समान दर्जा दिया गया है। सहिष्णुता और सह-अस्तित्व हमारे देश और इसके निवासियों की धर्मनिरपेक्ष प्रतिबद्धता के पोषक हैं।"
अदालत ने कहा कि या तो केंद्र सरकार अधिग्रहीत भूमि में से पांच एकड़ भूमि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को दे या उत्त्तर प्रदेश की सरकार अयोध्या शहर के अन्दर उनको यह जगह उपलब्ध कराए।
अदालत ने आगे कहा, यह कार्य और इसके बाद सुन्नी वक्फ बोर्ड को जमीन सौंपने का काम और मुकदमा नंबर 5 के फैसले के तहत विवादित जमीन जिसमें अन्दर और बाहर के आँगन शामिल हैं, को सौंपने का काम साथ-साथ होना चाहिए।