अयोध्या राम जन्मभूमि- बाबरी विवाद : सुप्रीम कोर्ट में पीस पार्टी के बाद अब PFI ने दाखिल की क्यूरेटिव याचिका
अयोध्या रामजन्म भूमि- बाबरी विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट में दूसरी क्यूरेटिव याचिका दाखिल की गई है।
पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ( PFI) ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल क्यूरेटिव याचिका में कहा है कि भले ही वो इस मामले में मूल वादी नहीं रहा लेकिन इस फैसले से उसके हित भी प्रभावित हुए हैं। संगठन ने सु्प्रीम कोर्ट से 9 नवंबर 2019 के फैसले पर विचार करने का अनुरोध किया है जिसमें जमीन का हक देवता रामलला को दे दिया गया था।
इससे पहले 21 जनवरी को उत्तर प्रदेश पीस पार्टी के अध्यक्ष मोहम्मद अय्यूब ने अयोध्या रामजन्मभूमि- बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दाखिल की थी। इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में ये पहली क्यूरेटिव याचिका दाखिल की गई।
12 दिसंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी 19 पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया था। पांच जजों की पीठ ने कहा था कि याचिकाओं में कोई आधार नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस संजीव खन्ना की पांच जजों की पीठ ने फैसला सुनाया था। दरअसल पहले बेंच की अगुवाई करने वाले मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई रिटायर हो चुके हैं तो जस्टिस संजीव खन्ना ने उनकी जगह ली थी।
दरअसल 9 नवंबर 2019 के फैसले में, 5 जजों की एक बेंच जिसमें तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर शामिल थे, ने कहा था कि हिंदू पक्षकारों के पास ज़मीन पर कब्ज़े के टाइटल का बेहतर दावा था और केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए ट्रस्ट के तत्वावधान में 2.77 एकड़ के पूरे क्षेत्र में एक मंदिर के निर्माण की अनुमति दी थी।
इसी समय अदालत ने स्वीकार किया कि 1992 में बाबरी मस्जिद का विध्वंस एक घिनौना कृत्य था और मस्जिद के निर्माण के लिए यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ वैकल्पिक भूमि के अनुदान का निर्देश देकर मुस्लिम पक्ष को मुआवजा दिया। इसे न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत "पूर्ण न्याय" करने का आदेश दिया था। इसके बाद मुस्लिम पक्ष और हिंदू पक्ष ने करीब 19 पुनर्विचार याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की थीं।