दीवानी  मुकदमे का इस्तेमाल करना आपराधिक मामला निरस्त करने का आधार नहीं है: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2020-01-23 04:08 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि किसी पक्ष ने भले ही दीवानी उपाय का इस्तेमाल किया हो, लेकिन उसे आपराधिक कानून के तहत मुकदमा शुरू करने से वंचित नहीं किया जा सकता।

न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति विनीत सरन की पीठ ने कहा कि कुछ मामलों में बिल्कुल समान तथ्य दीवानी के साथ-साथ आपराधिक मुकदमों में राहत दे सकते हैं।

इस मामले में हाईकोर्ट ने शिकायतकर्ता की ओर से दायर आपराधिक मुकदमा यह कहते हुए निरस्त कर दिया था कि संबंधित मामला पंजीकृत बिक्री विलेख से जुड़ा था और अपीलकर्ता ने आरोप लगाया था कि बिक्री विलेख किसी कारण से वैध नहीं था, तो उसे दीवानी मुकदमा दायर करना चाहिए था और कानून के दायरे में अपने पक्ष में उचित राहत मांगना चाहिए था।

शिकायत की मूल बात यह थी कि उसे आरोपी ने ट्रांजेक्शन के लिए विवश किया गया था। यह आरोप लगाया गया था कि कोई भुगतान नहीं किया गया था, लेकिन शिकायतकर्ता को कुल 49.38 लाख रुपये मूल्य के तीन पोस्ट-डेटेड (बाद की तारीख के) चेक शिकायतकर्ता को सौंपे गये थे और उसे चेक को भुनाने की धमकी दी गयी थी। 

इस फैसले को दरकिनार करते हुए बेंच ने कहा :

" यह पूरी तरह से निर्धारित तथ्य है कि कुछ मामलों में एक तरह के तथ्य दीवानी और आपराधिक दोनों तरह के मुकदमों में राहत दिला सकते हैं और भले ही पार्टी द्वारा दीवानी मुकदमा दायर किया गया हो, उसे आपराधिक मुकदमा शुरू करने से वंचित नहीं किया जा सकता।"

बेंच ने 'आर कल्याणी बनाम जनक सी मेहता' सहित विभिन्न मामलों में पूर्व के फैसलों का उल्लेख किया जिसमें व्यवस्था दी गयी है कि यदि आरोप दीवानी विवाद के दायर में आता है, तो यह स्वयं में इस बात का आधार नहीं बन सकता कि आपराधिक मुकदमा जारी रखने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

मुकदमे का ब्योरा :-

केस नाम : के. जगदीश बनाम उदय कुमार जीएस

केस नं. : क्रिमिनल अपील नं. 56/2020

कोरम : न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति विनीत सरन

वकील : जवाहर राजा (अपीलकर्ता की ओर से) एवं विद्या सागर (प्रतिवादी की ओर से)


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