[अनुच्छेद 226] हाईकोर्ट द्वारा जारी न्यायिक आदेश के खिलाफ दायर रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं : सुप्रीम कोर्ट
“किसी आदेश को केवल निष्प्रभावी बताकर संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका दायर करके चुनौती देने मात्र से ही याचिकाकर्ता उस आदेश के परिणामों से बचने में सक्षम नहीं हो जाता।”
सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि हाईकोर्ट द्वारा अपनी न्यायिक शक्तियों का इस्तेमाल करके जारी किये गये आदेश को संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत चुनौती देने वाली याचिका सुनवाई योग्य नहीं होगी।
इस मामले में, याचिकाकर्ता ने मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट, बेंगलुरु के समक्ष घरेलू हिंसा की शिकायत की थी, जो खारिज कर दी गयी थी। इस आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता ने बेंगलुरु स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के समक्ष अपील दायर की थी और वह भी खारिज हो गयी थी। हाईकोर्ट ने भी याचिकाकर्ता द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी थी। उसके बाद याचिकाकर्ता ने कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश को अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका दायर करके चुनौती दी थी और एकल पीठ के फैसले को 'निष्प्रभावी' घोषित करने का अनुरोध किया था। बाद में इस रिट याचिका को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया था।
जब यह मुकदमा न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ के समक्ष सुनवाई के लिए आया, खुद मामले की पैरवी कर रहे याचिकाकर्ता ने दलील दी कि हाईकोर्ट का 31 जुलाई 2018 का आदेश शुरू से ही निष्प्रभावी है और इसलिए संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर उसकी रिट याचिका सुनवाई योग्य है।
इस दलील को खारिज करते हुए बेंच ने कहा :
"हमारा मत है कि अपनी न्यायिक शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए हाईकोर्ट द्वारा जारी किये गये आदेश को चुनौती देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। मौजूदा मामले में हाईकोर्ट ने अपने पुनरीक्षण के अधिकार का इस्तेमाल किया था। किसी आदेश को केवल निष्प्रभावी आदेश बताकर संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका दायर करके चुनौती देने मात्र से ही याचिकाकर्ता उस आदेश के परिणामों से बचने में सक्षम नहीं हो जाता। हाईकोर्ट द्वारा दिये गये किसी आदेश को या तो लेटर्स पेटेंट अपील (वैसे मामलों में जहां कानून में लेटर्स पेटेंट अपील के तहत उपाय मौजूद हैं) या जिन मामलों में पुनर्विचार याचिका दायर करने का उपाय उपलब्ध है, वहां पुनर्विचार याचिका के जरिये ही चुनौती दी जा सकती है। पुनरीक्षण कार्यवाही के तहत हाईकोर्ट द्वारा जारी किये गये न्यायिक आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता के पास संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का उपाय उपलब्ध है।"
बेंच ने याचिकाकर्ता द्वारा मेरिट के आधार पर दी गयी दलीलों पर विचार करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने, हालांकि, संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत एकल पीठ के फैसले के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका दायर करने सहित याचिकाकर्ता के सभी अधिकार एवं उपाय अक्षुण्ण रखे हैं।
दोनों के बीच का एक विवाद सुप्रीम कोर्ट में पहले भी पहुंचा था, जब दोनों पक्षों में से एक ने सत्र न्यायाधीश के समक्ष लंबित अपील खुद अपने पास स्थानांतरित करने के हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। उस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि घरेलू हिंसा कानून के तहत एक पक्ष को घर बार कब्जे में लेने का आदेश जारी करने के लिए यह जरूरी है कि दोनों पक्ष उस घर में पारिवारिक रिश्ते में रह रहे हों। कोर्ट ने कहा था कि अपीलीय अदालत से मुकदमा अपने पास स्थानांतरित करने का हाईकोर्ट के पास कोई कारण नहीं था।
केस का नाम : नीलम मनमोहन अत्तावर बनाम मनमोहन अत्तावर (मृत) कानूनी प्रतिनिधियों के जरिये
केस नं. स्थानांतरण मामला (आपराधिक) संख्या 1/2020
कोरम : न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ