क्या सीमा शुल्क/डीआरआई अधिकारी 'पुलिस अधिकारी' हैं? क्या सीआरपीसी सीमा शुल्क अधिनियम की कार्यवाही पर लागू होती है? सुप्रीम कोर्ट फैसला करेगा

Update: 2023-07-08 07:16 GMT

सुप्रीम कोर्ट यह तय करने करने का फैसला किया है कि क्या कस्टम अधिकारी पुलिस अधिकारी हैं, और क्या सीआरपीसी सीमा शुल्क अधिनियम के तहत कार्यवाही के संबंध में लागू होगी?

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ तेलंगाना हाईकोर्ट के एक फैसले से उत्पन्न एक विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें राजस्व खुफिया निदेशालय को उत्तरदाताओं की हिरासत की अनुमति नहीं दी गई थी।

अदालत ने कानून के इन सवालों को विचार के लिए तैयार किया है-

-क्या डीआरआई अधिकारी सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 28 के प्रयोजनों के लिए एक "उचित अधिकारी" है?

-क्या सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 108 के तहत प्रतिवादी को डीआरआई अधिकारी द्वारा जारी किए गए समन को अधिकार क्षेत्र के बिना कहा जा सकता है?

-क्या सीमा शुल्क/डीआरआई अधिकारी पुलिस अधिकारी हैं और इसलिए, उन्हें सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 133 से 135 के तहत अपराध के संबंध में क्रमशः एफआईआर दर्ज करना आवश्यक है?

-क्या दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की क्रमशः धारा 154 से 157 और 173(2) के प्रावधान सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 के तहत कार्यवाही के संबंध में संहिता की धारा 4(2) के मद्देनजर लागू होंगे?

-क्या सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की क्रमशः धारा 133 से 135 के तहत अपराधों के संबंध में, संबंधित व्यक्ति को गिरफ्तार करने और मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने से पहले एफआईआर का पंजीकरण अनिवार्य है?

मामले को 19.07.2023 को अंतिम निस्तारण के लिए सूचीबद्ध किया जाना है।

गौरतलब है कि कैनन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम सीमा शुल्क आयुक्त मामले में सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की बेंच ने माना था कि राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) सीमा शुल्क अधिनियम की धारा 28(4) के अर्थ के तहत 'उचित अधिकारी' नहीं हैं, जिन्हें शुल्क की प्रक्रिया या वसूली करने का अधिकार है।

पृष्ठभूमि

डीआरआई का मामला ड्यूटी-फ्री गोल्ड बुलियन के कथित डाइवर्जन से संबंधित है, जिसे एफटीपी की अग्रिम खरीद योजना के तहत खरीद के 90 दिनों के भीतर घरेलू बाजार में निर्यात किया जाना था, जिसके परिणामस्वरूप आरोपी को गैरकानूनी लाभ हुआ।

सत्र न्यायाधीश ने अधिकार क्षेत्र की कमी के आधार पर हिरासत में पूछताछ के लिए राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) के अधिकारियों के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया और कहा कि प्रतिवादी के बयान की रिकॉर्डिंग की अनुमति देने के लिए कोई वैध आधार मौजूद नहीं है।

इससे व्यथित होकर, याचिकाकर्ता (डीआरआई) ने यह कहते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया कि प्रतिवादी पूरी धोखाधड़ी के पीछे का मास्टरमाइंड है और उससे इसकी कार्यप्रणाली का पता लगाना होगा।

याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि जांच को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिवादी के बयान की रिकॉर्डिंग भी आवश्यक है और सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 108 के अनुसार ऐसी शक्ति राजस्व खुफिया निदेशालय में निहित है।

प्रतिवादी ने कहा कि मामले की जांच करना और सच्चाई सामने लाना डीआरआई का दायित्व है और कानून के तहत हिरासत में पूछताछ स्वीकार्य नहीं है।

तेलंगाना हाईकोर्ट ने माना कि सीमा शुल्क अधिकारी को आरोपी व्यक्तियों से आपत्तिजनक सामग्री एकत्र करने का अधिकार नहीं है

हाईकोर्ट ने सीमा शुल्क अधिनियम की धारा 108 का विश्लेषण करने के बाद कहा कि “सीमा शुल्क के राजपत्रित अधिकारी के पास किसी भी व्यक्ति को बुलाने की शक्ति होगी, जिसकी उपस्थिति वह सबूत देने या किसी पूछताछ में दस्तावेज़ या किसी अन्य चीज़ को पेश करने के लिए आवश्यक समझती है। इसका मतलब यह नहीं है कि सीमा शुल्क अधिकारी के पास ऐसी जानकारी एकत्र करने की शक्ति निहित है जिसे अन्यथा उस व्यक्ति से आपत्तिजनक सामग्री कहा जाएगा जिसके खिलाफ आरोप लगाया गया है।

हाईकोर्ट ने अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 20 (3) के तहत संवैधानिक जनादेश पर भरोसा करते हुए कहा कि पुलिस या अन्य अधिकारी जो किसी मामले की जांच कर रहे हैं, उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति को बयान देने के लिए मजबूर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है जिसके खिलाफ आरोप लगाया गया है।


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