लॉकडाउन लागू करने में मनमानी की गई, सुप्रीम कोर्ट को अगली सुबह इस पर रोक लगा देनी चाहिए थी: वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे

Update: 2020-06-20 10:05 GMT

नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली (एनएलयूडी) ने शुक्रवार को "सर्वोच्च न्यायालय और महामारी: श्री दुष्यंत दवे के साथ एक वार्तालाप" विषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया।

एक घंटे तक चले सत्र में कोरोनोवायरस संकट के दौरान सुप्रीम कोर्ट के कामकाज से जुड़े विभिन्न मुद्दों के पर चर्चा की गई। वेबिनार का आयोजन एनएलयूडी के अध्यापकों और छात्रों ने किया और श्री अनंत ने मॉडरेशन किया।

सत्र की शुरुआत में वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे महामारी और उसके बाद के प्रवासी संकट पर सुप्रीम कोर्ट के रवैये पर चर्चा की।

संविधान के अनुच्छेद 13 (2) के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय के दृष्टिकोण पर अपना विचार रखते हुए दवे ने कहा,

"मौलिक अधिकारों के उल्लंघन में दिया गया कोई भी कार्यकारी आदेश अवैध है। प्रश्न यह है कि क्या सरकार संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप कार्य कर रही है?"

संबंध‌ित उपचारों के बिना संवैधानिक अधिकारों की मिथ्या की चर्चा करते हुए, दवे ने संविधान सभा के भाषणों का उल्लेख किय, जिसके परिणामस्वरूप अंततः डॉ बीआर अंबेडकर के तत्वावधान में अनुच्छेद 32 का जन्म हुआ।

"डॉ अंबेडकर ने कहा था कि संविधान एक मौलिक दस्तावेज है, वह लोकतंत्र के अंगों का निर्माण करता है। सभी अंगों की शक्तियों का निर्धारण करता है। न्यायपालिका को कार्यकारणी के अधिकारों की जांच करनी चाहिए।"

उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में, हालांकि, कार्यपालिका न्यायपालिका पर हावी है, फिर भी संवैधानिक मूल्यों को की रक्षा के लिए न्यायिक समीक्षा की मिसालें पेश की गई हैं।

दवे ने लॉकडाउन के कारण हुए व्यापक नुकसान के मामले में न्यायापलिका की तत्‍परता की कमी की विस्तारपूर्वक चर्चा की। लॉकडाउन के फैसले को प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद का स्पष्ट रूप से अनियोजित निर्णय बताते हुए, उन्होंने कहा प्रधानमंत्री अदूरदर्शी मंत्रियों की सलाह पर काम कर रहे थे।

उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन से पहले 4 घंटे का नोटिस दिया। आप भारत जैसे देश में 4 घंटे का नोटिस देकर लॉकडाउन की घोषणा नहीं कर सकते। यह मनमानी बड़ी थी। जनता कर्फ्यू के दिन थाली-बजाने का कार्यक्रम मजाक था। लॉकडाउन के कारण बहुत से लोग पीड़ित हुए। रोजी-रोटी गंवा देने वालों की संख्या बड़ी है। भारत जैसे देश में लॉकडाउन लागू करना बहुत ही मनमाना फैसला था।

दवे ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को लॉकडाउन के फैसले पर घोषण के तुरंत बाद, अगले दिन सुबह ही, कम से कम एक हफ्ते के लिए रोक लगा देनी चाहिए थी, ताकि लोगों को तैयारी का मौका मिल सके। दवे ने कहा कि ऐसा नहीं करने से लोकतांत्रिक सिद्धांतों की पूर्ण अवहेलना हुई।

उन्होंने कहा, हम सभी ने अपने भाइयों और बहनों की पीड़ा देखी। क्या यह लोकतंत्र का काम है? नागरिकों को सैंकड़ों किलोमीटर चलने के लिए मजबूर करना? मुझे नहीं लगता। यह तानाशाही नहीं हैं, लोकतंत्र है।

प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं और दुखों के मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से पास "दंतहीन" और "संकेतात्मक" करार देते हुए उन्होंने कहा कि न्यायपालिका ने 1970 में अधिक कुशलता से काम किया रहा होगा।

दवे ने कहा कि आज सुप्रीम कोर्ट के जज प्रधानमंत्री को हीरो कहते हैं, इस मुद्दे पर दवे ने संविधान सभा में दिए गए डॉ। बीआर अंबेडकर के आखिरी भाषण का उद्धृत किया,

"धर्म में भक्ति आत्मा के उद्धार का मार्ग हो सकती है। लेकिन राजनीति में, भक्ति या नायक-पूजा, पतन और अंततः तानाशाही का निश्चित मार्ग है।"

दवे ने धारा 370 के मुद्दे की भी चर्चा की, जो कि सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अभी भी लंबित है। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत महीनों से इस मुद्दे पर बैठी हुई है हालांकि उसने अयोध्या मामले को उठाने लिया। उन्होंने कहा कि वह खुद एक धार्मिक व्यक्ति हैं, लेकिन वह यह समझ नहीं पा रहे कि मंदिर का निर्माण कैसे अधिक महत्वपूर्ण मुद्दों जैसे कि हैबियस कॉर्पस याचिकाओं या अनुच्छेद 370 के मुद्दे से पहले उठाया जा सकता है।

पीए केयर्स फंड आरटीआई अधिनियम, 2005 के तत्वावधान और जांच के दायरे में आना चाहिए, इस पहलू पर, दवे ने जोर देकर कहा कि ऐसा नहीं करना स्पष्‍ट "धोखाधड़ी" होगी।

अंत में, श्री दवे ने युवा वकीलों और कानून छात्रों को सलाह दी:

"आपसे नैतिक और साहसी बनने का निवेदन करूंगा। आप जितने लोगों की मदद कर सकते हैं, उनकी मदद करिए। सफलता महत्वपूर्ण है, लेकिन यह एकमात्र चीज नहीं जो महत्वपूर्ण है। मुझे पैसे से प्यार है, मैं दिल से एक पूंजीवादी हूं, लेकिन मैं बहुत से मामले मुफ्त देखता हूं। आपको दूसरों की मदद करनी चाहिए और यह आपको एक अलग तरह की संतुष्टि देगा। "

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