अग्रिम जमानत असाधारण परिस्थितियों में दी जाती है, इसका उद्देश्य निर्दोष को उत्पीड़न से बचाना है, न कि दोषी/अपराधियों को जांच एजेंसी की कस्टोडियल पूछताछ से बचाना : पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते अग्रिम जमानत के आवेदन के एक मामले में यह टिप्पणी की है कि गिरफ्तारी पूर्व जमानत/अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) बहुत ही असाधारण परिस्थितियों में दी जाती है, न कि नियमित तरीके से।
न्यायमूर्ति एच. एस. मदान की पीठ ने यह टिप्पणी उस मामले में की जहाँ याचिकाकर्ता गगन इंदर सिंह द्वारा अग्रिम जमानत का आवेदन अदालत के समक्ष दायर किया गया था। दरअसल याचिकाकर्ता के खिलाफ, एफआईआर नंबर 013333 में आईपीसी की धारा 306 और 34 के तहत पुलिस स्टेशन BPTP, जिला फरीदाबाद में आपराधिक मामला दर्ज किया गया है।
क्या था यह मामला?
अभियोजन का मामला यह है कि मामले में परिवादी/शिकायतकर्ता (Complainant) शेफाली की पुत्री रॉबिका (मृतका), एक ब्यूटी पार्लर चलाती थी और उसका फरीदाबाद के निवासी गगन सिंह के साथ संबंध था और वह अक्सर गगन सिंह से मिलती थी। 14-जून-2020 की सुबह, गगन सिंह के साथ रॉबिका घर से चली गई और वह 15-जून-2020 को अपनी मृत्यु तक उसके साथ ही रही।
अपने बयान में, शिकायतकर्ता ने कहा कि उसे (शेफाली) उसकी बेटी के दोस्त अखिल द्वारा यह सूचित किया गया था कि रॉबिका आत्महत्या करने जा रही थी और अखिल ने शेफाली को फोन पर एक संदेश भेजा था कि वह बीपीटीपी पुल जा रहा था और शेफाली को भी वहां पहुंचना चाहिए।
शिकायतकर्ता (शेफाली) के अनुसार, जब वह पुल पर पहुंची, तो उसे अखिल (रॉबिका का मित्र) वहां मिला। रॉबिका (मृतका) पुल से कूद गई थी और उसकी मौत हो गई थी। हालांकि, उसे अस्पताल ले जाया गया लेकिन उसे मृत घोषित कर दिया गया।
पुलिस को अपने बयान में, शिकायतकर्ता (शेफाली) ने कहा कि उसकी बेटी रॉबिका ने अखिल (रॉबिका का मित्र) के व्हाट्सएप नंबर पर 3:52 बजे एक संदेश भेजा था कि गगन सिंह और उसके परिवार के लोग उसकी मौत के लिए जिम्मेदार थे और गगन सिंह (मामले में अभियुक्त) ने उसे धोखा दिया था। शिकायतकर्ता (शेफाली) ने यह प्रार्थना की कि मामले में आवश्यक कार्रवाई की जाए।
इसके पश्च्यात, इस मामले में अपनी गिरफ्तारी की आशंका के चलते, याचिकाकर्ता गगन सिंह ने अग्रिम जमानत के लिए फरीदाबाद में सत्र न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन उसकी ऐसी याचिका को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, फरीदाबाद ने खारिज कर दिया था। इसलिए, इसी तरह की राहत देने के लिए प्रार्थना करते हुए उसने इस अदालत का रुख किया है।
हाईकोर्ट का मत
अदालत ने अपने आदेश में यह देखा कि याचिकाकर्ता (गगन इंदर सिंह) के खिलाफ आरोप बहुत गंभीर हैं कि उसने एक युवती को आत्महत्या करने के लिए उकसाया हैं। पूर्ण और प्रभावी जांच के लिए उसकी हिरासत में पूछताछ आवश्यक है। इस मामले में, यदि जांच एजेंसी को हिरासत में पूछताछ करने से वंचित किया जाता है, जो यह कई खामियों रह जाएँगी जोकि अन्वेषण को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा।
अदालत ने अग्रिम जमानत की अर्जी को अस्वीकार करते हुए सीबीआई बनाम अनिल शर्मा, 1997 (4) आरसीआर (आपराधिक) 268 के मामले का भी जिक्र किया जिसमे यह देखा गया था कि कस्टोडियल पूछताछ में व्यक्ति से गुणात्मक रूप से अधिक जानकारी ली जा सकती है, बजाय उस व्यक्ति से पूछताछ में, जो अग्रिम जमानत पर है, इस तरह के मामले में संदिग्ध व्यक्ति की पूछताछ उपयोगी जानकारी प्राप्त करने में फायदेमंद होती है।
अदालत ने मुख्य रूप से यह कहा कि,
"इसके अलावा, पूर्व गिरफ्तारी जमानत बहुत असाधारण परिस्थितियों में दी जानी होती है और नियमित रूप से नहीं। इसका उद्देश्य निर्दोष व्यक्तियों को उत्पीड़न और असुविधा से बचाना है, न कि दोषी व्यक्तियों और अपराधियों को जांच एजेंसी द्वारा हिरासत में पूछताछ से बचाना है।"
आगे अदालत ने यह भी कहा कि,
"हिरासत में पूछताछ निश्चित रूप से अधिक उत्तरप्राप्ति (elicitation) उन्मुख है, क्योंकि एक व्यक्ति जो गिरफ्तारी पूर्व जमानत की सुरक्षा लिए हुए है, वह निश्चित रूप से उसके ज्ञान के भीतर सभी तथ्यों का खुलासा नहीं करेगा।"
इस प्रकार, अदालत ने इस मामले में गिरफ्तारी पूर्व जमानत के लिए कोई आधार नहीं पाया। याचिका को बिना किसी योग्यता के मानते हुए इसे खारिज कर दिया गया।
केस विवरण
केस नंबर: CRM-M-18027-2020
केस शीर्षक: गगन इन्दर सिंह बनाम हरियाणा राज्य
कोरम: न्यायमूर्ति एच. एस. मदान (हरमिंदर सिंह मदान)
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