भीमा कोरेगांव हिंसा : गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबडे ने NIA के समक्ष आत्मसमर्पण किया

Update: 2020-04-14 11:28 GMT

प्रसिद्ध शिक्षाविद और दलित अधिकार के विद्वान आनंद तेलतुंबडे और नागरिक स्वतंत्रता कार्यकर्ता गौतम नवलखा ने मंगलवार को भीमा कोरेगांव हिंसा के संबंध में माओवादी लिंक के आरोप में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत दर्ज मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया।

डॉक्टर बी आर अम्बेडकर के पोते तेलतुंबडे ने एनआईए के मुंबई कार्यालय में आत्मसमर्पण किया और नवलखा ने नई दिल्ली में आत्मसमर्पण किया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा उन्हें मामले में आत्मसमर्पण करने के लिए दी गई 7-दिवसीय मोहलत आज अंतिम दिन था।

आत्मसमर्पण करने से पहले, शैक्षणिक-कार्यकर्ता तेलतुंबडे ने भारत के लोगों के लिए एक खुला पत्र लिखा, जिसमें कहा गया कि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं है।

पत्र में कहा गया कि

"मुझे 13 में से पांच पत्रों के आधार पर फंसाया गया है, जो पुलिस ने मामले में दो गिरफ्तार व्यक्तियों के कंप्यूटरों से बरामद किए हैं। मेरे पास से कुछ भी बरामद नहीं हुआ। "

उन्होंने कहा,

"और यह सचमुच किसी के साथ भी हो सकता है।" "जैसा कि मैं देख रहा हूं कि मेरा भारत बर्बाद हो रहा है, यह एक उम्मीद के साथ है कि मैं आपको इस तरह के गंभीर क्षण में लिख रहा हूं। खैर, मैं एनआईए की हिरासत में जा रहा हूं और यह नहीं जानता कि मैं आपसे कब बात कर पाऊंगा। हालांकि , मुझे पूरी उम्मीद है कि आपकी बारी आने पर आप बात करेंगे।

आत्मसमर्पण करने से पहले भेजे गए एक खुले पत्र में नवलखा ने कहा

"मेरी उम्मीद अपने और मेरे सह-अभियुक्त के लिए एक त्वरित और निष्पक्ष सुनवाई पर टिकी हुई है। यह मुझे अपना नाम साफ़ करने और स्वतंत्र चलने में सक्षम बनाएगी, साथ ही जेल में समय का उपयोग करके खुद को अधिग्रहित आदतों से छुटकारा दिला सकता हूं।"

दो दिन पहले, इतिहासकार रोमिला थापर, अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक और देवकी जैन, समाजशास्त्री सतीश देशपांडे और वकील मेजा दारूवाला ने भारत के मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे को लिखा था कि तेलतुंबडे और नवलखा की गिरफ्तारी को रोकने के लिए उनसे हस्तक्षेप करने की मांग की थी।

उन्होंने मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र में कहा,

अभियोजन के पास अपना मामला बनाने के लिए पहले से ही पर्याप्त समय है। भूमि की सर्वोच्च अदालत प्रक्रिया को सजा नहीं बनने दे सकती। आपके नेतृत्व में, सुप्रीम कोर्ट को निर्णायक रूप से यह प्रदर्शित करने के लिए कार्य करना चाहिए कि यह वास्तव में लोगों के अधिकारों और संविधान का रक्षक है।"

8 अप्रैल को जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने COVID-19 महामारी के आधार पर तेलतुंबडे और नवलखा द्वारा की गई प्रार्थना को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। इसी बेंच में शामिल न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी ने अंतिम मौके के रूप में गिरफ्तारी से संरक्षण का समय एक सप्ताह और बढ़ा दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 16 मार्च को भीमा कोरेगांव मामले में एक्टिविस्ट गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबडे को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था।

जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एमआर शाह की खंडपीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के 15 फरवरी के फैसले को चुनौती देने वाली उनकी विशेष अनुमति याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें इस आधार पर उन्हें अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया गया था कि रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनाया गया था।

बॉम्बे उच्च न्यायालय ने गौतम नवलखा और तेलतुंबडे को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था। हालांकि गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण को चार सप्ताह की अवधि के लिए बढ़ा दिया ताकि वे अपील में सर्वोच्च न्यायालय का रुख कर सकें। उनकी याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 16 मार्च तक ऐसी अंतरिम सुरक्षा बढ़ा दी थी।

16 मार्च को पीठ ने कहा कि जांच एजेंसी द्वारा एकत्र की गई सामग्री को देखते हुए याचिकाएं सुनवाई योग्य नहीं हैं। हालांकि याचिकाकर्ताओं के वकील ने अंतरिम संरक्षण के कम से कम एक सप्ताह के विस्तार की मांग की थी, लेकिन पीठ ने इनकार कर दिया। दरअसल 1 जनवरी, 2018 को पुणे जिले के कोरेगांव भीमा गांव में हिंसा के बाद गौतम नवलखा और आनंद समेत अन्य कार्यकर्ताओं को पुणे पुलिस ने उनके कथित माओवादी लिंक और कई अन्य आरोपों के लिए आरोपी बनाया है। 

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