‌चिन्मयानंद मामले में कानून की छात्रा ने एसआईटी पर लगाया था पक्षपात का आरोप, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने किया खारिज

Update: 2020-05-01 03:17 GMT

‌चिन्मयानंद मामले में शाहजहांपुर की कानून की छात्रा के आवेदन को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को रद्द कर दिया। आवेदन में छात्रा ने उसके रेप के मामले और उस पर लगे जबरन वसूली आरोपों की जांच करने वाली एसआईटी पर पक्षपात का आरोप लगाया ‌था।

एक विस्तृत फैसले में जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस दीपक वर्मा की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा नियुक्त एसआईटी की जांच पर संतोष व्यक्त किया और पक्षपात के आरोपों को खारिज कर दिया।

खंडपीठ ने कहा, "हम इस बात से संतुष्ट हैं कि जांच एजेंसी ने सभी पहलुओं की विधिवत जांच की है और पूरी जांच के बाद दोनों मामलों में धारा 173 (2) सीआरपीसी के तहत पुलिस रिपोर्ट प्रस्तुत की है। इसलिए, इन कार्यवाहियों में किसी और कार्रवाई की आवश्यकता नहीं है।"

यह वही बेंच है, जिसे एसआईटी द्वारा की जा रही जांच की निगरानी के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर नियुक्त किया गया था।

पृष्ठभूमि

उल्‍लेखनीय है कि शाहजहांपुर की कानून की एक छात्रा ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता स्वामी चिन्मयानंद पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था, जिस पर बाद में चिन्मयानंद द्वारा दायर क्रॉस एफआईआर में जबरन वसूली का मुकदमा दर्ज किया गया।

दोनों मामलों में जांच एसआईटी ने की, जिसकी अध्यक्षता नवीन अरोड़ा, महानिरीक्षक शिकायत ने की, और लखनऊ स्‍थ‌िति ट्रायल कोर्ट के समक्ष अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।

दलीलें और नतीजे

हालांकि छात्रा ने एसआईटी जांच के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें उन्होंने एसआईटी पर पक्षपात का आरोप लगाया था, जिसके अनुसार पूरी जांच मुख्य अभियुक्त चिन्मयानंद के प्रभाव में की गई, जिनका सत्तारूढ़ दल में पर्याप्त "राजनीतिक रसूख" है।

उन्होंने कहा कि जांच एजेंसी चिन्मयानंद के खिलाफ लगाए गए उनके आरोपों में "दोष ढूंढ़ने" की दृष्टि से आगे बढ़ी और इसलिए जांच दूष‌ित है। इन आरोपों को खारिज करते हुए, डिवीजन बेंच ने माना कि जांच एजेंसी ने मामले में सभी पहलुओं की "विधिवत जांच" की है।

यह माना गया कि एसआईटी ने चिन्मयानंद की जमानत अर्जी का पुरजोर विरोध किया ‌था, जिसके परिणामस्वरूप सत्र न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया। इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता है कि जांच एजेंसी पक्षपाती थी।

(चिन्मयानंद को इस साल फरवरी में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जस्टिस राहुल चतुर्वेदी के आदेश पर जमानत पर रिहा किया गया था, जिन्होंने मामले पर अपनी टिप्पणी में कहा था कि "दोनों ने एक दूसरे का इस्तेमाल किया।")

पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि चूंकि कानून के छात्र के खिलाफ जबरन वसूली की प्राथमिकी दर्ज की गई थी, इसलिए एसआईटी "दायित्व के तहत" इस मामले की जांच करने के लिए दोनों पक्षों के आरोपों को ध्यान में रख रही थी। इस‌लिए, यह नहीं कहा जा सकता है कि एसआईटी दोष खोजने के लिए आगे बढ़ी।

एसआईटी ने छात्रा को बदनाम करने की कोशिश की

छात्रा ने आरोप लगाया था कि एसआईटी ने जनता में उसकी छवि खराब करने के लिए जबरन वसूली मामले पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने बताया कि एसआईटी द्वारा आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रदर्श‌ित किया कि वह जबरन वसूली में शामिल थीं, जो न केवल उनकी निजता के अधिकार का उल्लंघन था, बल्कि सार्वजनिक रूप से उनकी छवि को "खराब करने" का कृत्य भी था, ताकि उनकी आत्मबल को तोड़ा जा सके। 

इस दलील के जवाब में, पीठ ने कहा कि केवल इसलिए कि प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की गईं, इसका मतलब यह नहीं होगा कि जांच दूष‌ित या पक्षपातपूर्ण है।

कोर्ट ने टिप्पणी की कि "संवेदनशील मामलों में मीडिया को घटनाक्रम के बारे में बताना अपरिहार्य हो सकता है।" और यह चेताया कि जांच एजेंसियों को "संयम बरतना चाहिए" और कांन्फ्रेंस में केवल जांच की स्थिति का जानकारी देनी चाहिए, यह जांच की वैधता को प्रभावित नहीं करेगा।

पीठ ने आगाह करते हुए कहा, "प्रेस कांन्फ्रेंस में जांच की सामग्री और राय के व‌िस्तृत खुलासे से मामले में पूर्वधारणाबन सकती है, और पीड़ित, अभियुक्तों और गवाहों की सुरक्षा पर भी गंभीर असर पड़ सकता है।"

चिन्मयानंद को 'विशेष उपचार' की पेशकश की गई

छात्र ने यह आरोप भी लगाया कि चिन्मयानंद को एसआईटी द्वारा विशेष उपचार की पेशकश की गई और उन्हें जेल में सेलिब्रिटी व्यवस्‍था दी गई, मानो कि वह "राज्य अतिथि" थे। छात्रा के वकील ने बताया कि पुलिस ने चिन्मयानंद के उस मोबाइल फोन को प्राप्त करने का प्रयास नहीं किया, जिससे उन्होंने छात्र की आपत्तिजनक रिकॉर्डिंग की थी और केवल उन मोबाइल फोन को जांच की गई,‌ जिन्हें उन्होंने खुद परीक्षण के लिए दिया था।

कानून की छात्रा ने दलील दी कि, "यह स्पष्ट है कि जांच एजेंसी ने परिश्रम के साथ जांच नहीं की।" इस पहलू पर अदालत ने कहा कि "केवल इसलिए कि एक मोबाइल बरामद नहीं किया गया, यह सुझाव नहीं दिया जाएगा कि जांच ठीक से नहीं की गई।"

अदालत ने नोट किया कि अभियुक्तों से जो मोबाइल लिए गए थे, उन्हें फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा गया था, ताकि यह पता चल सके क्या उनमें छात्रा की कोई क्लिप मौजूद है या हटा दी गई। सरकार द्वारा दायर हलफनामे के अनुसार, ऐसी कोई क्लिप नहीं मिली और न हटाई गई थी।

चिन्मयानंद के खिलाफ आरोपों को कमजोर करना

कानून की छात्र ने "आरोपों को कमजोर करने" का मुद्दा भी उठाया, क्योंकि चिन्मयानंद पर आईपीसी की धारा 376 सी के तहत आरोप लगाया गया था न कि धारा 376। (धारा 376 सी के तहत एक व्यक्ति द्वारा अधिकार पूर्वक किए गए संभोग को अपराध माना गया है और 5 से 10 साल की सजा का प्रावधान है। धारा 376 के तहत बलात्कार के मामले में आजीवन कारावास की अधिकतम सजा का प्रावधान है।)

इस मुद्दे पर, हाईकोर्ट ने कहा कि जांच एजेंसी अपराध के संबंध में "अपनी राय बनाने के लिए स्वतंत्र है।" कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसी राय अदालत के लिए "बाध्यकारी" नहीं है और अदालत अपनी राय बना सकती है और जांच के बाद एकत्रित सामग्री के आधार पर अभियुक्त पर आरोप तय कर सकती है।

एसआईटी ने छात्रा के परिजनों पर हमला किया

छात्रा ने अदालत को यह भी बताया कि एसआईटी के निर्देश पर उसके परिजनों को पुलिस ने परेशान किया और मारपीट की गई। उन्होंने बताया था कि उनकी मां और पिता दोनों को एसआईटी ने पूछताछ के दौरान निर्दयतापूर्वक पीटा और यह कबूल करने के लिए कहा गया कि वे जबरन वसूली में शामिल थे।

उन्होंने कहा कि उनके परिजनों का चिकित्सकीय परीक्षण नहीं कराया जा सका क्योंकि वे एसआईटी की "निरंतर निगरानी" में थे। उन्होंने ऐसी मोबाइल तस्वीरों को कोर्ट में पेश करने का निवेदन किया, जिनसे उनके परिजनों के शरीर पर लगी चोटों का पता चलता था।

कानून की छात्रा ने मामले की जांच के लिए नई जांच टीम की गठन की मांग की। उन्होंने मौजूदा एसआईटी अधिकारियों के खिलाफ पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने और उनके परिजनों के साथ मारपीट करने के मामले में उचित कार्रवाई की प्रार्थना की।

छात्रा की वकील श्वेताश्वा अग्रवाल ने कहा, "ऐसा प्रतीत होता है कि जांच एजेंसी का पूरा प्रयास आरोपी चिन्मयानंद पर लगाए गए आरोपों की गंभीरता को कम करना था और यह प्रदर्शित करना था कि पीड़ित खुद दोषी है। जांच एजेंसी के ऐसा दृष्टिकोण ने पूरी जांच को दूषित किया है, इसलिए नए जांच दल का गठन किया जाना चाहिए और नए सिरे से जांच की जानी चाहिए।"

हालांकि कोर्ट ने आग्रह को को खारिज करते हुए कोर्ट कहा कि मारपीट के आरोपों के समर्थन में कोई मेडिकल सबूत मौजूद नहीं है।

अदालत ने कहा,

"मिस ए के मां के चेहरे की तस्वीरें ऐसी नहीं हैं, जिनसे उन्हें हिरासत में दी गई यातना के संबंध में निश्चित निष्कर्ष निकाला जा सके। इसलिए, हम इस कार्यवाही में, हिरासत के संबंध में एक निश्चित राय बनाने की स्थिति में नहीं हैं।"

मामले का विवरण:

केस टाइटल: In Re Missing Of An LLM Student At Swami Shukdevanand Law College (SS Law College) v. State of UP

केस नं : Crl.Misc. WP No 21181/2019

कोरम: ज‌स्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस दीपक वर्मा

प्रतिनिध‌ित्व: एडवाकेट देबा सिद्दीकी और स्वेताश्वा अग्रवाल (याचिकाकर्ता के लिए); एडवाकेट मनीष सिंह और राजर्षि गुप्ता (राज्य के लिए)

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