पीड़िता को अंतरिम मुआवजे के भुगतान का आरोपी का प्रस्ताव जमानत देने का आधार नहीं हो सकता: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पीड़िता को अंतरिम मुआवजे के भुगतान का प्रस्ताव आरोपी को जमानत पर रिहा करने का आधार नहीं हो सकता है।
इस मामले में, आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 341, 342 और 376 (डी) और बाल यौन उत्पीड़न संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम, 2012 की धारा 4 और 8 तथा अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3 (4) (डब्ल्यू) (i) के तहत प्राथमिकी दर्ज होने के बाद गिरफ्तार किया गया था। । आरोप था कि आरोपियों ने दो नाबालिग लड़कियों को पकड़कर अपनी मोटर साइकिल पर जबरदस्ती बिठा लिया था और फिर उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया था।
झारखंड हाईकोर्ट ने एक आरोपी को केवल इस आधार पर जमानत पर रिहा कर दिया कि इस मामले के एक सह-अभियुक्त को पहले ही कोऑर्डिनेट बेंच पीठ द्वारा जमानत पर छोड़ दिया गया है, साथ ही आरोपी अंतरिम मुआवजे के तौर पर एक लाख रुपये की राशि पीड़िता को देने को तैयार है। इसलिए राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के इस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने कहा,
"हमारी सुविचारित राय में हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 439 के मापदंडों पर ध्यान नहीं दिया है, जिस पर किसी आरोपी को नियमित जमानत देते या अस्वीकार करते समय विचार किये जाने की आवश्यकता होती है, खासकर तब, जब आरोपी एक जघन्य अपराध में शामिल होता है। पीड़िता को अंतरिम मुआवजे के भुगतान की पेशकश आरोपी को जमानत पर रिहा करने का आधार नहीं हो सकता है। इसलिए, हम प्रतिवादी को जमानत पर रिहा करते समय हाईकोर्ट द्वारा दिये गये कारणों को अस्वीकार्य करते हैं।"
बेंच ने आदेश खारिज करते हुए हाईकोर्ट से अनुरोध किया कि वह तीन महीने की अवधि के भीतर आरोपियों की जमानत अर्जी पर सुनवाई करे और गुण-दोष के आधार पर उसका निपटारा करे।
मामले का विवरण
झारखंड सरकार बनाम सलाउद्दीन खान | 2022 लाइव लॉ (एससी) 755 | सीआरए 1535-1536/2022 | 9 सितंबर 2022 | जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला
वकील: एएजी बरुण कुमार सिन्हा
हेडनोट्स
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973; धारा 439 - जमानत - पीड़िता को अंतरिम मुआवजे के भुगतान का प्रस्ताव आरोपी को जमानत पर रिहा करने का आधार नहीं हो सकता। (पैरा 7)
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