वादी/प्रतिवादी दो अलग-अलग न्यायालयों/प्राधिकारियों के समक्ष विरोधाभासी स्टैंड नहीं ले सकता: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2022-03-26 08:17 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक वादी को दो अलग-अलग प्राधिकरणों/अदालतों के समक्ष दो विरोधाभासी स्टैंड लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

इस प्रकरण में वादी ने प्रारम्भ में म.प्र. भू-राजस्व संहिता, 1959 की धारा 250 के अन्तर्गत राजस्व प्राधिकार/तहसीलदार के समक्ष मूल मुकदमा दाखिल किया। प्रतिवादियों ने उक्त आवेदन की स्वीकार्यता के विरुद्ध आपत्ति उठाई। प्राधिकरण ने इस आपत्ति को स्वीकार करते हुए आवेदन को खारिज कर दिया। इसके बाद अपीलीय प्राधिकारी ने वादी द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया।

इसके बाद वादी ने सिविल कोर्ट में वाद दायर किया। प्रतिवादियों ने, इस बार, राजस्व प्राधिकरण के समक्ष रखे अपने रुख के विपरीत रुख अपनाया और तर्क दिया कि दीवानी न्यायालय के पास वाद पर विचार करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं होगा। उन्होंने नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 7 नियम 11 के तहत एक आवेदन दायर कर वाद को खारिज करने की मांग की। यद्यपि ट्रायल कोर्ट ने इस आवेदन को खारिज कर दिया, उच्च न्यायालय ने पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार करते हुए इसे अनुमति दे दी, इस प्रकार वाद खारिज कर दिया।

प्रतिवादियों द्वारा उठाए गए विरोधाभासी रुख को ध्यान में रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने वादी द्वारा दायर अपील में कहा:

"प्रतिवादियों - मूल बचाव पक्षों को दो अलग-अलग प्राधिकरणों/अदालतों के समक्ष दो विरोधाभासी स्टैंड लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। मूल प्रतिवादियों की ओर से उठाई गई इस आपत्ति को राजस्व प्राधिकरण/तहसीलदार द्वारा एक बारगी स्वीकार कर लिये जाने के बाद कि राजस्व प्राधिकरण के पास इस मामले में कोई अधिकार क्षेत्र नहीं होगा और एमपीएलआरसी की धारा 250 के तहत वाद को खारिज किये जाने के बाद प्रतिवादियों को उसके विरोध या समर्थन की अनुमति नहीं दी जा सकती। साथ ही, वादी द्वारा उसके बाद सिविल कोर्ट के समक्ष मामला ले जाने पर प्रतिवादी-मूल बचाव पक्ष यह आपत्ति दर्ज कराने के लिए स्वतंत्र नहीं हो सकते कि मुकदमा सिविल कोर्ट के समक्ष भी एमपीएलआरसी की धारा 257 के मद्देनजर वर्जित होगा। यदि प्रतिवादियों की दलीलें मान ली जाती है तो इस मामले के मूल वादी को न्याय नहीं मिल सकेगा।"

पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने इस तथ्य का मूल्यांकन नहीं किया कि वादी ने राजस्व प्राधिकरण/तहसीलदार का दरवाजा खटखटाया था, जहां वह इस आधार पर अनुपयुक्त करार दिया गया था कि राजस्व प्राधिकरण/तहसीलदार के पास सूट संपत्ति के स्वत्वाधिकार से संबंधित विवाद का फैसला करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं था।

अपील की अनुमति देते हुए, पीठ ने कहा:

"किसी भी मामले में प्रतिवादी - मूल प्रतिवादियों को अनुमोदन और प्रतिवाद करने की और राजस्व प्राधिकरण के समक्ष उठाए गए रुख के विपरीत रुख लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इसलिए, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में, ट्रायल कोर्ट ने सीपीसी के आदेश 7 नियम 11 के तहत आवेदन को सही तरीके से खारिज कर दिया और वाद को खारिज करने से इनकार करके उचित कदम उठाया।''

मामले का विवरण

प्रेमलता @ सुनीता बनाम नसीब बी | 2022 लाइव लॉ (एससी) 317 | सीए 2055-2056/2022 | 23 मार्च 2022

कोरम: जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना

हेडनोट्स: सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908; आदेश VII नियम 11 - म.प्र. भू-राजस्व संहिता, 1959; धारा 250,257 - हाईकोर्ट के खिलाफ अपील जिसने प्रतिवादियों द्वारा दायर आवेदन को इस आधार पर खारिज करने की अनुमति दी कि दीवानी न्यायालय के समक्ष मुकदमा एमपी भू-राजस्व संहिता, 1959 की धारा 257 के मद्देनजर वर्जित होगा- स्वीकृत - हाईकोर्ट ने इस तथ्य का मूल्यांकन नहीं किया कि वादी ने राजस्व प्राधिकरण/तहसीलदार का दरवाजा खटखटाया था, जहां वह इस आधार पर अनुपयुक्त करार दिया गया था कि राजस्व प्राधिकरण/तहसीलदार के पास सूट संपत्ति के स्वत्वाधिकार से संबंधित विवाद का फैसला करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं था - प्रतिवादियों को दो अलग-अलग प्राधिकरणों/अदालतों के समक्ष दो विरोधाभासी स्टैंड लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

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