एक वकील को समस्याओं का समाधानकर्ता, विवाद प्रबंधक होना चाहिए; मुकदमेबाजी वकालत के कौशल का केवल एक हिस्साः जस्टिस राव

Update: 2022-05-09 09:28 GMT

जस्टिस एल नागेश्वर राव ने शनिवार को जस्टिस डॉ एन नारायणन नायर की प्रथम स्मृति के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित किया। कार्यक्रम का आयोजन केरल लॉ एकेडमी और सीजी3 ने किया था। भाषण का विषय- 'उत्तर आधुनिक वकालत- अवसर और चुनौतियां' था। अपने भाषण में जस्टिस राव ने उन संभावित अवसरों और चुनौतियों की चर्चा की, जिनका सामना वकीलों को उत्तर-आधुनिक युग में करना पड़ सकता है।

उन्होंने कहा, "एक वकील को समस्याओं का समाधानकर्ता, विवाद प्रबंधक होना चाहिए। मुकदमेबाजी वकालत के कौशल का एक हिस्सा है।"

सुप्रीम कोर्ट के जज ने अपने भाषण की शुरुआत लॉयर और एडवाकेट के बीच अंतर से की। उन्होंने बताया कि लॉयर लॉ ग्रेजुएट होता है, जबकि एडवोकेट एडवोकेट्स एक्ट के तहत पंजीकृत होता है। साथ ही उसके पास अदालतों में पेश होने का लाइसेंस होता है। लेकिन आम तौर पर लॉयर, एडवोकेट्स से जुड़े होते हैं और इन शब्दों का परस्पर उपयोग किया जाता है।

जस्टिस राव ने इस विचार को महत्वपूर्ण माना कि उत्तर आधुनिक युग में वकालत का अधिक महत्व हो सकता है।

उन्होंने पिछले 40 वर्षों में कानूनी पेशे के विकास को याद किया और बताया कि उन्होंने जब पेशे में प्रवेश किया था तो आज जिस उम्र में वह हैं, उस उम्र वकील ज्यादातर वे थे, जिन्होंने वकालत का पेशा इसलिए चुना क्योंकि वे किसी अन्य पेशे में नहीं जा सकते थे। जस्टिस राव ने यह भी स्पष्ट किया कि तब यह आदर्श था और हो सकता है कि इसके अपवाद भी हों।

उन्होंने बताया कि उस दौर में एक वकील को मुवक्किल बहुत सम्मान देते था। याचिका, प्रस्तुतियां और रणनीति वकील तय करते थे और मुवक्किल का इन प्रक्रियाओं में कोई दखल नहीं था।

"मुवक्किल का अपना मत नहीं होता था; वकील ने जो कुछ भी कहा, उन्होंने आंख मूंद कर उसका पालन किया। मेरा व्यावहारिक अनुभव यह है कि अधिकांश वकील अक्सर प्रश‌िक्षण की कमी के कारण अपने मुवक्किलों पर प्रयोग करते हैं।"

उन्होंने बताया कि समय के साथ वकीलों और मुवक्किलों के बीच संबंधों में काफी बदलाव आया है। ग्राहक अब अपने मुकदमें में सक्रिय भागीदारी करते हैं और वे वकील के साथ मामलों में खुद को शामिल करते हैं।

जस्टिस राव ने यह भी कहा कि वर्षों से दीवानी और आपराधिक पक्ष में प्रैक्टिस कर रहे वकीलों की रणनीतियों में स्पष्ट परिवर्तन हुए हैं, जो एक सकारात्मक विकास है।

"मुवक्किल अपने मुकदमों के समाधान में खुद को शामिल कर रहा है, जिससे वह परिणाम से अधिक संतुष्ट हो गया है।"

जस्टिस राव ने आगे कहा कि एक वकील को हमेशा यह समझना चाहिए कि उसका जीवन सीखने के लिए है। उन्होंने कहा कि कानूनी पेशे में आधे-अधूरे एडवोकेट के लिए कोई जगह नहीं है, अगर वह अपने विवेक के प्रति सच्चे हैं।

ज‌स्टिस राव ने कहा कि कानूनी पेशा सार्वजनिक सेवा करने का एक तरीका भी है। उन्होंने कहा कि कानूनी पेशा वकील की आजीविका भर नहीं है, उनका कर्तव्य कानून की मर्यादा की रक्षा है। इसीलिए वकील को संविधान का सैनिक कहा गया है।

उन्होंने कहा कि संस्था में वादी जनता के भरोसे को मजबूत करने के लिए, उन्हें विवादों के त्वरित और लाभदायक समाधान उपलब्ध कराने होंगे। साथ ही न्याय की निष्पक्ष व्यवस्था का आश्वासन देना होगा।

इस संदर्भ में, जस्टिस राव ने वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) की अवधारणा की चर्चा की। उन्होंने कहा कि उत्तर आधुनिक वकालत के दौर में कानूनी पेशवरों को पारंपरिक तरीकों के अलावा तरीकों की तलाश करनी पड़ सकती है।

उन्होंने कहा‌, "उत्तर-आधुनिक कानून व्यवस्था में, मेरा ऐसा अनुमान है कि वकीलों की बढ़ती संख्या को न केवल सार्वजनिक सेवा के लिए बल्कि अपने अस्तित्व के लिए भी वकालत के विविध तरीकों को खोजना होगा।"

उन्होंने बताया कि ऐसा ही एक तरीका, विवाद समाधान योजना है। जस्टिस राव ने याद दिलाया कि एक व्यक्ति जो अदालतों में मामलों पर बहस करता है, वह केवल वकील के कर्तव्यों में से एक का निर्वहन कर रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि एक वकील और एडवोकेट को अदालत में मुकदमेबाजी के जर‌िए समाधान खोजने तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए।

जस्टिस राव ने कहा कि अदालत पहुंचने पर मामले कैसे बदतर हो जाते हैं, विशेष रूप से सर्विस और वैवाहिक मामलों में। उन्होंने कहा वकीलों को ऐसे मामलों को सीधे अदालत में ले जाने का निर्णय लेने से पहले विवाद का विश्लेषण खुद करना चाहिए। उन्होंने कहा कि मुकदमेबाजी अक्सर विवाद को जटिल बनाकर और दोनों पक्षों के बीच अप्रासंगिक मुद्दों को लाकर उन्होंने अनावश्यक रूप से एक दूसरे से दूर कर देती है।

उन्होंने कहा कि निकट भविष्य में वकीलों और अधिवक्ताओं को बदलाव से गुजरना होगा।

"वकीलों का अस्त‌ित्व तभी बचा रह पाएगा जब वे मुकदमे और अदालतों से दूर हटकर समस्या हल करने वाले बनेंगे।"

जस्टिस राव ने एक लेख का भी उल्‍लेख किया, जिसमें उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि एक समय आ सकता है जब कोर्ट रूम ही खत्म हो सकता है और सब कुछ ऑनलाइन हो सकता है। इसलिए उन्होंने उन युवाओं को प्रोत्साहित किया जो समय के साथ बदलाव की ओर देख रहे हैं।

उन्होंने कहा, "प्रौद्योगिकी अपरिहार्य है; डिजिटल साक्षरता की अनदेखी नहीं की जा सकती।"

जस्टिस राव ने कानूनी श‌िक्षा के पहलू के पर भी बात की, जो उत्तर आधुनिक कानून व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चूंकि भविष्य के वकीलों को लॉ स्कूलों ढाला जाता है, इसलिए उनका विचार था कि बदलाव यहीं से शुरू होना चाहिए। उन्होंने कहा कि कानूनी निर्देश को ध्यान में रखना होगा कि स्थानीय और राष्ट्रीय सीमाएं अब इस बात को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित नहीं करती हैं कि किसी मामले को कैसे चलाया जाए।

उन्होंने कहा, "इस प्रकार, कानून के छात्रों को न केवल लोकल लेंस से कानून के मुद्दों को एप्रोच करने लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। लॉ स्कूल प्रयोग और विविधता को प्रोत्साहित करना चाहिए।"

विशेषज्ञता पर टिप्पणी करते हुए, जस्टिस राव ने कहा कि केरल से दिल्ली आने वाले वकीलों ने कानून के विशेष क्षेत्रों में प्रवेश किया है और वे अपने चुने हुए क्षेत्रों में बहुत अच्छा कर रहे हैं। इसलिए, उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि एक उत्तर-आधुनिक वकील के लिए जीवित रहने का एकमात्र तरीका अभिनव होना और यह पता लगाना है कि कानून का भविष्य क्या है।

उन्होंने उत्तर आधुनिक वकीलों को आगे देखने और 1960 के दशक में वकील जो कर रहे थे उसमें नहीं फंसने के लिए प्रेरित नहीं किया। समय बदल गया है। लोगों को अपनी मानसिकता बदलनी होगी और कानून की नई तकनीकों का पालन करना होगा, उन्होंने कहा।

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