पुदुचेरी सरकार Vs LG : सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के 21 जून तक वित्त व भूमि संबंधी फैसले लेने पर रोक लगाई, CM को नोटिस

Update: 2019-06-05 05:19 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने पुदुचेरी सरकार को यह निर्देश दिया है कि वो 7 जून को कैबिनेट की बैठक तो कर सकती है लेकिन इस दौरान सुनवाई की अगली तारीख तक वित्त व भूमि ट्रांसफर संबंधी फैसलों को लागू नहीं कर सकती।

उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री को जारी हुआ नोटिस

जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस एम. आर. शाह की अवकाश पीठ ने केंद्र सरकार और पुदुचेरी की उपराज्यपाल किरण बेदी की याचिका पर केंद्रशासित प्रदेश के मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी को नोटिस जारी कर उनकी ओर से जवाब मांगा है।

7 जून की कैबिनेट बैठक पर रोक की हुई मांग

मंगलवार को सुनवाई के दौरान केंद्र और एलजी की ओर से कहा गया कि सरकार ने 7 जून की कैबिनेट बैठक का एजेंडा तय कर दिया है। लिहाजा इस बैठक पर रोक लगाई जाए। वहीं सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल व अन्य ने इसका विरोध किया। सुप्रीम कोर्ट मामले की अगली सुनवाई 21 जून को करेगा।

पुदुचेरी की एलजी ने लगाया "प्रशासनिक अराजकता" का आरोप

इससे पहले पुदुचेरी की उपराज्यपाल (एलजी) किरण बेदी "प्रशासनिक अराजकता" का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंची थीं और उन्होंने मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी को वित्त सेवाओं से संबंधित किसी भी मुख्य कार्यकारी आदेश को पारित करने से रोकने की मांग की है जब तक कि सुप्रीम कोर्ट पुदुचेरी सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकारों का फैसला ना कर दे।

किरण बेदी की अर्जी में यह कहा गया है कि पुदुचेरी में प्रशासनिक अराजकता का माहौल है और अफसरों को यह समझ नहीं आ रहा है कि वो कोर्ट के आदेशों पर अमल करें या नहीं। उन्हें अवमानना कार्रवाई की धमकी दी जा रही है। गौरतलब है कि वर्तमान में पुदुचेरी में कांग्रेस का शासन है जबकि बेदी की केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक के तौर पर एनडीए सरकार ने नियुक्ति की है।

मद्रास हाईकोर्ट ने एलजी की शक्तियों को किया था सीमित
इससे पहले 11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर नोटिस जारी किया था, जिसमें यह कहा गया है कि पुदुचेरी के उपराज्यपाल को निर्वाचित सरकार के दैनिक मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। ये नोटिस पुदुचेरी की एलजी किरण बेदी द्वारा दायर विशेष अवकाश याचिका पर जारी किया गया है।

मद्रास हाई कोर्ट द्वारा दिया गया फैसला
"प्रशासक उन मामलों में मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से बंधे हैं, जहां विधान सभा, केंद्र शासित प्रदेशों के अधिनियम, 1962 की धारा 44 के तहत कानून बनाने के लिए सक्षम है। हालांकि सरकार की कार्रवाई के बारे में एक बुनियादी मुद्दों पर तर्कों पर आधारित सरकार के विचारों के साथ भिन्न होने के लिए सशक्त है," पुदुचेरी के विधायक के. लक्ष्मीनारायणन द्वारा दायर याचिका पर 30 अप्रैल को मद्रास उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था।

"प्रशासक सरकार के दिन-प्रतिदिन के मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। मंत्रिपरिषद और मुख्यमंत्री द्वारा लिया गया निर्णय सचिवों और अन्य अधिकारियों के लिए बाध्यकारी है," मद्रास उच्च न्यायालय ने फैसले में यह कहते हुए जोड़ा कि प्रशासक के पास इस मुद्दे को नियंत्रित करने वाले संवैधानिक सिद्धांतों और संसदीय कानूनों को नकारने वाले प्रशासन को चलाने का कोई विशेष अधिकार नहीं है।

यह याचिका बीते वर्ष 4 जुलाई के सुप्रीम कोर्ट के उस संविधान पीठ के फैसले के मद्देनजर दायर की गई थी, जिसमें प्रशासन के मामलों में उपराज्यपाल पर दिल्ली की चुनी हुई सरकार की प्रमुखता को बरकरार रखा गया था।

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