बाबरी मस्जिद विध्वंस : विशेष जज ने ट्रायल पूरा करने के लिए और वक्त मांगा, SC ने UP सरकार से पूछा, कैसे बढ़ाया जाए जज का कार्यकाल

Update: 2019-07-15 10:05 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को भाजपा के दिग्गज नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, एम. एम. जोशी, उमा भारती और अन्य के खिलाफ बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले की साजिश का ट्रायल को पूरा करने के लिए लखनऊ की सीबीआई कोर्ट के विशेष जज की अर्जी कर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार से यह पूछा है कि किस तरह विशेष जज का कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है ताकि वो 6 महीने में ट्रायल पूरा कर सकें।

विशेष जज का कार्यकाल 30 सितंबर, 2019 तक ही

दरअसल विशेष जज एस. के. यादव ने मई में लिखे एक पत्र में शीर्ष अदालत को यह सूचित किया है कि वह 30 सितंबर, 2019 को सेवानिवृत हो रहे हैं जबकि इस ट्रायल को पूरा होने में अभी 6 महीने लगेंगे।

"किस तरह बढ़ाया जा सकता है विशेष जज का कार्यकाल१"

यह मामला सोमवार को जस्टिस आर. एफ. नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया। पीठ ने कहा कि ये हाई प्रोफाइल मामला है और इस ट्रायल को उसी जज द्वारा पूरा किया जाना चाहिए। पीठ ने राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील ऐश्वर्या भाटी को यह कहा कि वो शुक्रवार तक यह बताएं कि किस तरह विशेष जज का कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए कोई कानूनी प्रावधान हो तो वो भी बताया जाए। सुप्रीम कोर्ट 19 जुलाई को ही मामले की सुनवाई करेगा।

इलाहाबाद HC के फैसले को पलटते हुए SC द्वारा आरोप हुए थे बहाल

गौरतलब है कि 19 अप्रैल, 2017 को जस्टिस पी. सी. घोष और जस्टिस आर. एफ. नरीमन की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा आरोपमुक्त किए जाने के खिलाफ सीबीआई द्वारा दायर अपील की अनुमति देकर आडवाणी, जोशी, उमा भारती और 13 अन्य भाजपा नेताओं के खिलाफ साजिश के आरोपों को बहाल किया था।

रायबरेली की अदालत का मामला लखनऊ हुआ था स्थानांतरित
संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए पीठ ने रायबरेली की एक मजिस्ट्रेट अदालत में लंबित अलग मुकदमे को भी स्थानांतरित कर दिया और इसे लखनऊ सीबीआई कोर्ट में आपराधिक कार्यवाही के साथ जोड़ दिया।

विशेष जज के ट्रांसफर पर लगी थी रोक
शीर्ष अदालत ने मामले में 2 साल में दिन-प्रतिदिन सुनवाई कर ट्रायल को समाप्त करने का आदेश दिया था और कहा था कि विशेष जज का ट्रांसफर नहीं होगा। पीठ ने कहा था कि मामले में एक आरोपी कल्याण सिंह को राजस्थान के राज्यपाल होने के नाते संवैधानिक प्रतिरक्षा प्राप्त है लेकिन जैसे ही वह पद त्यागते हैं तो उनके खिलाफ अतिरिक्त आरोप दायर किए जाएंगे।

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