' PM नरेंद्र मोदी' फिल्म की रिलीज को सुप्रीम कोर्ट ने रोकने से इनकार किया, मंगलवार को सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को फिल्म 'पीएम नरेंद्र मोदी' की रिलीज को रोकने और याचिका में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया जिसमें आरोप लगाया गया है कि इसे वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए नैतिक आचार संहिता के उल्लंघन के रूप में "प्रचलित प्रचार" के तौर पर बनाया गया है।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि जब तक इस फिल्म के चित्रण के बारे में यह स्पष्ट नहीं होता कि याचिकाकर्ता को किस तथ्य पर आपत्ति है, तब तक यह कदम नहीं उठाया जा सकता।
"पिछले 40 दिनों से पब्लिसिटी की जा रही है। यह संविधान के बुनियादी ढांचे पर सीधा हमला है, जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की गारंटी देता है। अब तक किसी ने फिल्म नहीं देखी है, लेकिन एक बार रिलीज होने के बाद यह कैसे हो सकता है?" सिंघवी ने प्रस्तुत किया। इसपर पीठ ने फिल्म देखने के बाद अर्जी दाखिल करने को कहा।
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को आपत्तिजनक पाए गए हिस्सों को उजागर करना चाहिए और बताना चाहिए कि उसे आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन क्यों लगता है।
यह फिल्म 11 अप्रैल को रिलीज होने वाली है जो लोकसभा चुनाव के पहले चरण की शुरुआत का दिन है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने भारत में आम चुनाव से पहले 23 अलग-अलग भाषाओं में "पीएम नरेंद्र मोदी" नामक फिल्म की रिलीज को रोकने की मांग को लेकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय मीडिया पैनलिस्ट अमन पंवार द्वारा दाखिल रिट याचिका को 8 अप्रैल को सूचीबद्ध करने के लिए अपनी सहमति दी थी।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने जस्टिस एस. ए. बोबड़े के समक्ष इस याचिका पर जल्द सुनवाई की मांग की। उन्होंने कहा कि ये फिल्म 5 अप्रैल को रिलीज होनी थी लेकिन अब मीडिया में खबर आई है कि फिल्म 12 अप्रैल को रिलीज होगी।
फ़िल्म का मकसद प्रचार है
याचिकाकर्ता के अनुसार जब फरवरी में यह घोषणा की गई थी कि मोदी पर एक फिल्म रिलीज होगी तो आने वाले दिनों में यह स्पष्ट रूप से साफ हो गया कि आगामी चुनावों के समन्वय में रिलीज होने वाली इस फिल्म का एकमात्र मकसद प्रचार करना है। यह फिल्म कलात्मक प्रेरणा से कम प्रेरित है और इसके बजाय आगामी चुनावों में दर्शकों और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए डिज़ाइन की गई है।
फ़िल्म से जुड़े लोगों का है भाजपा से गहरा संबंध
फिल्म निर्माताओं, निर्देशक और प्रमुख अभिनेता के बार-बार के बयानों से साफ है कि ये सिर्फ 'वर्क ऑफ आर्ट' नहीं है। सभी 4 प्रोड्यूसरों का भारतीय जनता पार्टी के साथ गहरा और व्यापक संबंध है। इनमें से 3 सिर्फ पार्टी के समर्थक ही नहीं हैं बल्कि पार्टी के 2 व्यक्तियों के साथ पार्टी मशीनरी में आधिकारिक पद रखने वाले हैं।
फ़िल्म का चौथा निर्माता 'वाइब्रेंट गुजरात' में एक भागीदार था और उसने हाल ही में अपनी कंपनी की लीजेंड फिल्मों के माध्यम से राज्य में भाजपा सरकार के साथ 177 करोड़ रुपये का MOU साइन किया था।
आम चुनावों के दौरान फिल्म की पटकथा, शूट करने और जल्दबाजी और अनाड़ी तरीके से रिलीज करने के लिए बेताबी एक ऐसा तथ्य है जिसे खुद निर्देशक ने भी स्वीकार किया है।
याचिकाकर्ता ने बताया है कि महाराष्ट्र राज्य के मुख्यमंत्री ने फ़िल्म का पहला पोस्टर जारी किया। स्वतंत्र भारत में चुनावों के समय से ही ऐसा कोई भी समय नहीं रहा और ऐसे में ये कदम चुनावी कानूनों की धज्जियां उड़ाना और आम जनता की बुद्धिमत्ता की अवहेलना है। इसलिए चुनावी सिद्धांत को संरक्षित करने की आवश्यकता है और लोकसभा चुनाव से पहले फिल्म की रिलीज पर रोक लगाई जानी चाहिए।
वहीं इस फिल्म की रिलीज को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट के 1 अप्रैल के फैसले को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। सतीश गायकवाड ने हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है जिसमें फिल्म की रिलीज में दखल देने से इनकार कर दिया गया था।