दिल्ली के स्कूलों में CCTV के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने से इनकार किया

Update: 2019-07-13 05:23 GMT

दिल्ली सरकार के स्कूलों की कक्षाओं में सीसीटीवी कैमरे लगाने और माता-पिता को लाइव फीड प्रदान करने के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के फैसले पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया है। कोर्ट इस मामले की बाद में सुनवाई करेगा। इससे पहले बीते मई में सुप्रीम कोर्ट ने दाखिल याचिका पर दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया था।

"सीसीटीवी से बच्चे आएंगे मनोवैज्ञानिक दबाव में"
तीसरे साल की कानून छात्रा अंबर टिक्कू द्वारा दायर याचिका में यह कहा गया है कि इससे किशोर उम्र के छात्र मनोवैज्ञानिक दबाव में आएंगे और ये उनके लिए मानसिक आघात होगा। याचिका में 11 सितंबर, 2017 को कक्षाओं में सीसीटीवी कैमरा लगाने और 1 दिसंबर, 2017 को माता-पिता को लाइव फीड प्रदान करने के दिल्ली सरकार के फैसले को चुनौती दी गई है।

यह कहा गया, "स्कूलों में सीसीटीवी कैमरा लगाने का निर्णय थोपा गया था, जो कि 11.09.2017 को एक आपातकालीन बैठक में लिया गया था, जिसे शिक्षा मंत्री ने कथित तौर पर 'दिल्ली/एनसीआर के स्कूलों में बाल दुर्व्यवहार की घटना के आधार पर निर्धारित किया था और जहां यह कहा गया था कि दिल्ली के सभी स्कूलों में सीसीटीवी कैमरे स्थापित करना, उत्तरदाता नंबर 1 द्वारा, स्थानीय निकायों या उनके द्वारा मान्यता प्राप्त स्कूलों द्वारा अनिवार्य होगा।"

उन्होंने आगे यह भी कहा है कि डेटा सुरक्षा के प्रावधान के साथ-साथ छोटे बच्चों पर भी उक्त प्रतिष्ठानों के मनोवैज्ञानिक प्रभाव के विचार के बिना और इस तरह के कोई शोध/अध्ययन किए बिना उक्त निर्णय लिया गया। इसके अलावा निर्णय लेने से पहले माता-पिता या शिक्षकों की कोई सहमति नहीं ली गई।

"लाइव फीड प्रदान करना सुरक्षा को डालता है खतरे में"
सीसीटीवी कैमरों की स्थापना और आईडी और पासवर्ड के साथ किसी को भी उसका लाइव फीड प्रदान करना युवा लड़कियों की सुरक्षा और सुरक्षा को खतरे में डालता है, साथ ही ये महिला शिक्षकों के खिलाफ भी घूरने और पीछा करने की घटनाओं को भी जन्म देगा।

"सरकार का निर्णय न्यायमूर्ति पुट्टस्वामी मामले के उल्लंघन में"
वकील सृष्टि कुमार की मदद से वकील जय देहदराई ने तर्क दिया कि 1.5 लाख सीसीटीवी कैमरे कक्षाओं से लाइव स्ट्रीमिंग प्रदान करेंगे। बच्चे मनोवैज्ञानिक दबाव में होंगे। 
याचिका एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड मनीषा अंबवानी के माध्यम से दायर की गई है। याचिकाकर्ता का यह तर्क है कि "सरकार का निर्णय न्यायमूर्ति पुट्टस्वामी (सेवानिवृत्त) और अन्य बनाम भारत संघ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के सीधे उल्लंघन में है, जिसने भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में समान रूप से बरकरार रखा है।"

याचिकाकर्ता ने यह कहा है, "इसके अलावा उक्त निर्णय इंडियन होटल एंड और रेस्टॉरेंट एसोसिएशन व अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले का भी उल्लंघन है जिसमें सीसीटीवी की स्थापना को निजता के अधिकार का उल्लंघन करने वाला माना गया है।"

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