नागेश्वर राव को CBI अतंरिम निदेशक बनाने के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई 6 फरवरी तक टाली

Update: 2019-02-01 12:30 GMT

एम. नागेश्वर राव को सीबीआई का अतंरिम निदेशक बनाए जाने के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई 6 फरवरी तक टाल दी है।

शुक्रवार को जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस नवीन सिन्हा की पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि वो जल्द से जल्द सीबीआई के निदेशक की नियुक्ति करे, क्योंकि अंतरिम निदेशक इस पद पर लंबे वक्त तक नहीं रह सकते हैं।

वहीं केंद्र की ओर से पेश अटार्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने पीठ को बताया कि सीबीआई निदेशक के चयन के लिए हाई पावर कमेटी की बैठक शुक्रवार को ही होनी है। उन्होंने पीठ को ये भी बताया कि अंतरिम निदेशक की नियुक्ति से पहले हाई पावर कमेटी की मंजूरी ली गई थी।

इससे पहले गुरुवार को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस ए. के. सीकरी के बाद जस्टिस एन. वी. रमना ने भी इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।

गुरुवार को कॉमन कॉज की याचिका पर सुनवाई होनी थी, लेकिन जस्टिस रमना ने ये कहते हुए सुनवाई से खुदको अलग कर लिया कि नागेश्वर राव उनके ही गृह-राज्य के हैं और उनकी बेटी की शादी में वो बतौर मेहमान शरीक हुए थे। इस पीठ में जस्टिस एम. एम. शांतनागौदर और जस्टिस इंदिरा बनर्जी भी शामिल थे।

24 जनवरी को जस्टिस ए. के. सीकरी ने कहा था कि वो इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर रहे हैं। वो मानते हैं कि याचिका में अहम और खास मुद्दे उठाए गए हैं लेकिन वो इस पर सुनवाई नहीं कर सकते हैं।

इस दौरान AG के. के. वेणुगोपाल ने कहा था कि अगर जस्टिस सीकरी इस केस को सुनते हैं तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं हैं। वहीं याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि ये गलत संदेश दे रहा है। पहले 21 जनवरी को चीफ जस्टिस ने खुद को इस मामले की सुनवाई से अलग कर लिया था। लेकिन जस्टिस सीकरी ने कहा था कि वो इस केस की सुनवाई नहीं कर सकते।

उन्होंने आगे कहा कि अगर चीफ जस्टिस प्रशासनिक तौर पर ये केस उनके पास भेजते तो वो पहले ही इस मामले की सुनवाई से खुदको अलग कर देते, लेकिन 21 जनवरी को न्यायिक आदेश के जरिए इस केस को सूचीबद्ध किया गया है। पीठ ने इस केस को शुक्रवार को सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस के पास भेज दिया था, लेकिन जस्टिस एस. ए. बोबड़े के छुट्टी पर होने की वजह से सुनवाई नहीं हुई थी।

इससे पहले 21 जनवरी को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। मामले की सुनवाई शुरू होते ही कॉमन कॉज की ओर से पेश वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने बहस करनी चाही तो चीफ जस्टिस ने कहा कि वो 24 जनवरी को नए सीबीआई निदेशक के चयन के लिए प्रधानमंत्री व लोकसभा में नेता विपक्ष के साथ होने वाली मीटिंग में बतौर सदस्य जाने वाले हैं। इसलिए वो इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकते, लिहाजा इस मामले की सुनवाई कोर्ट नंबर 2 में होगी।

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कॉमन कॉज ने कहा है कि यह नियुक्ति मनमानी और गैरकानूनी है और दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान कानून, 1946 की धारा 4ए के तहत सीबीआई में अंतरिम निदेशक के पद की कोई व्यवस्था नहीं है। याचिका के अनुसार नागेश्वर राव को अंतरिम निदेशक नियुक्त करने का सरकार का पिछले साल 23 अक्टूबर का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने बीते 8 जनवरी को रद्द कर दिया था। लेकिन सरकार ने मनमाने, गैरकानूनी और दुर्भावनापूर्ण तरीके से कदम उठाते हुए पुन: यह नियुक्ति कर दी थी।

याचिका में लोकपाल और लोकायुक्त कानून, 2013 में किए गए संशोधन में तय प्रक्रिया के अनुसार केंद्र को सीबीआई का नियमित निदेशक नियुक्त करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

वहीं याचिका में कहा गया है कि सीबीआई निदेशक के चयन और नियुक्ति की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाना चाहिए। निदेशक पद के लिए चुने गए उम्मीदवारों की सूची वेबसाइट पर जारी होनी चाहिए और प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की हाई पावर कमेटी की बैठक का ब्यौरा सार्वजनिक होना चाहिए।

गौरतलब है कि 10 जनवरी को आलोक वर्मा को उक्त समिति द्वारा जांच एजेंसी के निदेशक पद से हटाए जाने के बाद केंद्र सरकार ने नए निदेशक की नियुक्ति होने तक एम. नागेश्वर राव को अंतरिम निदेशक नियुक्त किया है।

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