उत्तराखंड में वनों की आग का मामला सुप्रीम कोर्ट में, 24 जून को सुनवाई को तैयार अदालत

Update: 2019-06-19 10:41 GMT

उत्तराखंड में वनों की आग को लेकर दाखिल एक जनहित याचिका पर जल्द सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर 24 जून को सुनवाई करेगा। मंगलवार को इस संबंध में याचिका पर जल्द सुनवाई का आग्रह किया गया तो जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस सूर्य कांत की अवकाश पीठ ने कहा कि वो 24 जून को इस पर सुनवाई करेंगे।

"अदालत के आदेश से नहीं मिलेगी कोई राहत"
हालांकि इस दौरान पीठ ने यह टिप्पणी की कि इस दौरान बारिश होने की प्रार्थना करनी चाहिए क्योंकि बरसात ही इसका एकमात्र हल है। कोर्ट के आदेश से कुछ भी मदद मिलने वाली नहीं है।
याचिका में उठाये गये बिंदु एवं आग्रह

दरअसल उत्तराखंड में वनों की आग से वन्यजीवों और पक्षियों की रक्षा के लिए तत्काल कदम उठाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई है। याचिका में कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षों में वनों की कटाई से पर्यावरण को भारी नुकसान हुआ है।

दरअसल इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार, उत्तराखंड सरकार और राज्य के मुख्य वन संरक्षक को जंगल की आग को रोकने के लिए पहले ही सुरक्षा उपाय और नीति तैयार करने के निर्देश देने का आग्रह किया गया है।

"स्वतंत्र एजेंसी द्वारा हो इस मामले की जांच"

वकील रितुपर्ण उनियाल द्वारा दायर इस याचिका में एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा इस मामले की जांच करने और पशु साम्राज्य को कानूनी संस्थाओं के रूप में घोषित करने और एक जीवित व्यक्ति के समान अधिकारों, कर्तव्यों और देनदारियों के साथ एक अलग व्यक्ति के रूप में घोषित करने के निर्देशों देने की भी मांग की गई है।

याचिका में बताई गई समस्याएं

याचिका में यह कहा गया है कि उत्तराखंड में जंगल की आग नियमित और ऐतिहासिक विशेषता वाली रही है। उत्तराखंड में हर साल जंगल में आग लगने से वन पारिस्थितिकी तंत्र, वनस्पतियों और विविध जीवों और आर्थिक संपदा को बहुत नुकसान होता है। उत्तराखंड के जंगलों में आग प्रमुख आपदाओं में से एक है। इस इतिहास के बावजूद याचिका के उत्तरदाताओं की अज्ञानता, निष्क्रियता और लापरवाही ने उत्तराखंड में जंगलों, वन्यजीवों और पक्षियों को बहुत नुकसान पहुंचाया है और इस तरह पारिस्थितिक असंतुलन पैदा हुआ है।

याचिका में यह दावा किया गया है कि उत्तराखंड के अनुसंधान केंद्रों में से वन अनुसंधान संस्थान डीम्ड विश्वविद्यालय, देहरादून प्रमुख है लेकिन आश्चर्यजनक रूप से उत्तरदाताओं ने राज्य में विनाशकारी जंगल की आग के कारणों और समाधानों के लिए कभी भी संस्थान से परामर्श नहीं किया है।

याचिका में आगे यह कहा गया है कि वन और वन्यजीव सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन हैं और मानव जीवन और पर्यावरण में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। याचिका में ये भी कहा गया है कि वन सामाजिक और पर्यावरणीय रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में लोगों के साथ जुड़े हुए हैं और क्षेत्र के आर्थिक कल्याण और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

याचिका में यह दावा किया गया है कि संबंधित अधिकारियों के पास इस बात का कोई सुराग नहीं है कि ये आग कैसे लगी और उन्हें रोकने के तरीके के लिए कोई प्रशिक्षण भी नहीं दिया गया है। याचिका में आगे कहा गया है कि 2 राष्ट्रीय उद्यान कॉर्बेट नेशनल पार्क और राजाजी नेशनल पार्क भी आग के कारण खतरे में हैं।

जानवरों के लिए कानूनी अधिकारों की मांग करते हुए याचिका में यह कहा गया है कि संविधान के तहत 'जीवन' का अर्थ केवल मनुष्य के लिए ही नहीं बल्कि पशुओं, जलीय व जीव जंतु आदि के अस्तित्व व सम्मान और गरिमा के साथ जीवन जीने के लिए भी है। 

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