सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने सोमवार को महाराष्ट्र बीफ बैन मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। मामले से खुद को अलग करते हुए जस्टिस मल्होत्रा ने कहा कि उन्होंने पहले इस मामले में एक पक्षकार का बतौर वकील प्रतिनिधित्व किया था।
इसके बाद जस्टिस ए. एम. सपरे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि इस पूरे मामले को संविधान पीठ को संदर्भित करने के लिए मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई द्वारा एक उपयुक्त पीठ के समक्ष याचिकाएं सूचीबद्ध होंगी।
बॉम्बे HC के आदेश को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित
दरअसल बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह महाराष्ट्र से 30 लोगों का प्रतिनिधित्व कर रही हैं जिन्होंने बीफ पर प्रतिबंध हटाने की मांग की है।
महाराष्ट्र सरकार ने भी दी है बॉम्बे HC के आदेश को चुनौती
वहीं महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर बॉम्बे हाईकोर्ट के 6 मई 2016 के उस आदेश को चुनौती दी जिसमें महाराष्ट्र एनिमल प्रिजरवेशन (अमेंडमेंट) एक्ट 1995 के सेक्शन 5D को रद्द कर दिया गया था।
क्या था रद्द किया गया सेक्शन१
इसके मुताबिक पुलिस को गाय का मांस रखने के शक के चलते किसी भी व्यक्ति को रोकने और तलाशी लेने का अधिकार दिया गया था। इसके साथ ही पुलिस को इस मामले में किसी के घर में घुसकर तलाशी करने का अधिकार भी दिया गया था। हालांकि राज्य में वर्ष 1976 से ही गाय स्लाटरिंग (गौकशी) पर रोक है।
महाराष्ट्र सरकार द्वारा SC में पेश की गई दलील
महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा है कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने फैसले में गलती की है और इस सेक्शन को रद्द करने पीछे यह तर्क दिया है कि ये लोगों के निजता के मौलिक अधिकार का हनन करता है। क्योंकि इसके तहत शक के आधार पर ही पुलिस किसी को रोक सकती है, घर में घुसकर तलाशी ले सकती है।
गौरतलब है कि राज्य सरकार द्वारा महाराष्ट्र पशु संरक्षण (संशोधन) अधिनियम लागू कर गायों के अलावा बैलों और सांडों के वध पर प्रतिबंध को बॉम्बे हाई कोर्ट ने कायम रखा था। हालांकि, हाई कोर्ट ने अधिनियम की संबद्ध धाराओं को रद्द करते हुए कहा था कि महज गोमांस रखना ही आपराधिक कार्रवाई को आमंत्रित नहीं कर सकता। राज्य के बाहर मारे गए पशुओं का मांस रखने पर आपराधिक कार्रवाई नहीं किए जाने संबंधी हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली और अन्य याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है।