बलात्कार के आरोपी ने कहा पीड़िता से उसकी हुई है शादी; सुप्रीम कोर्ट ने उसे शादी का प्रमाण पत्र पेश करने को कहा

Update: 2019-04-18 12:07 GMT

बलात्कार के आरोपी एक व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी देकर कहा है कि पीड़िता से उसकी मार्च 2018 में शादी हो चुकी है। इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत द्वारा उसको जारी सम्मन को निरस्त करने की उसकी अपील ठुकरा दी थी।

जब आरोपी ने दावा किया कि पीडिता से उसकी शादी हो चुकी है, इस मामले की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति एमएम शांतनागौडा और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की पीठ ने उसे तीन सप्ताह के भीतर शादी का प्रमाणपत्र अदालत में पेश करने को कहा।

पीठ ने इस मामले की सुनवाई की अगली तारीख़ तीन सप्ताह के बाद रखी है और चेतावनी दी है कि इस मामले को आगे और स्थगित नहीं किया जाएगा।

अगर शादी हुई है यह साबित हो जाता है तो क्या होगा?

पर सवाल उठता है कि अगर आरोपी शादी का प्रमाणपत्र पेश कर देता है और उसकी शादी सही पाई जाती है तो क्या होगा?

उस स्थिति में अदालत उसकी अपील स्वीकार कर सकता है क्योंकि वर्तमान क़ानून वैवाहिक संबंध में बलात्कार को अपवाद माना गया है। आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 में कहा गया है एक व्यक्ति का अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध को, अगर पत्नी 15 साल से कम उम्र की नहीं है तो, बलात्कार नहीं माना जाएगा।

हालाँकि यह भी नोट करना ज़रूरी है कि धारा 376B के तहत पत्नी से अलग रहने के दौरान उसके साथ यौन संबंध बनाना दंडनीय है। इस प्रावधान में कहा गया है :

"अगर कोई व्यक्ति अलग रहने के आदेश या किसी और वजह से अलग रह रही अपनी पत्नी के साथ उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ उससे यौन संबंध स्थापित करता है तो यह दंडनीय है…यह दंड कारावास के रूप में दो साल से कम नहीं होगा और यह सात साल तक की अवधि के लिए हो सकता है और उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।"

इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने Independent Thought vs Union Of India मामले में 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ यौन संबंध को बलात्कार बताया है भले ही वह शादीशुदा है या नहीं।

दिल्ली हाईकोर्ट में लंबित है इस प्रावधान को चुनौती का वाद

धारा 375 के तहत वैवाहिक संबंध में बलात्कार के बारे में अपवाद के प्रावधान को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। गुजरात हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जेबी परदीवाला का मत है कि वैवाहिक संबंध में बलात्कार के बारे में जो अपवाद किया है उसको हटाकर ही समाज को यह संदेश दिया जा सकता है कि महिलाओं के साथ वह अमानवीय व्यवहार नहीं करसकता और इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता और यह कि वैवाहिक संबंध में बलात्कार की इजाज़त पति का विशेषाधिकार नहीं है बल्कि यह एक हिंसा है और एक अन्याय है जिसके लिए दंड मिलना चाहिए।

न्यायमूर्ति जेएस वर्मा समिति ने अपनी रिपोर्ट में वैवाहिक संबंध में बलात्कार के बारे में अपवाद को समाप्त किए जाने की अनुशंसा की है।

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