पुलवामा : सुप्रीम कोर्ट ने कश्मीरियों व अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के निर्देश दिए

Update: 2019-02-22 09:20 GMT

14 फरवरी को पुलवामा की घटना के बाद देश भर में रह रहे कश्मीरी छात्रों पर हमले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों के नोडल अफसरों को निर्देश दिए हैं कि वो पुलवामा हमले के बाद कश्मीरी या किसी अल्पसंख्यक पर हमले, खतरे या सामाजिक बहिष्कार व भेदभाव की घटनाओं की रोकथाम सुनिश्चित करें। यह दिशा निर्देश सुप्रीम कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका के मद्देनजर दिए गए हैं।

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने राज्यों के मुख्य सचिव व डीजीपी को भी निर्देश दिया है कि वो कश्मीरी या किसी अल्पसंख्यक पर हमले, खतरे या सामाजिक बहिष्कार व भेदभाव की घटनाओं पर तुरंत कार्रवाई करें।

पीठ ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार के अलावा दस राज्यों जम्मू- कश्मीर, उत्तराखंड, हरियाणा, यूपी, बिहार, मेघालय, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल, पंजाब और महाराष्ट्र की सरकारों को नोटिस जारी कर उनकी ओर से जवाब मांगा है।

पीठ ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को कहा है कि वो नोडल अफसरों के नाम व पते का व्यापक रूप से प्रचार करे ताकि पीड़ित उनसे सीधे तौर पर संपर्क कर सकें।

इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने पीठ को बताया कि पंजाब और महाराष्ट्र में भी हाल ही में कश्मीरी छात्रों के साथ हिंसा की घटनाएं हुई हैं। उनका कहना था कि कोर्ट को इन घटनाओं के मद्देनजर नोडल अफसर नियुक्त किए जाने जाने चाहिए।

वहीं केंद्र की ओर से पेश अटार्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने पीठ को बताया कि केंद्र सरकार केवल राज्यों को एडवायजरी जारी कर सकती है क्योंकि कानून- व्यवस्था राज्यों का विषय है। इस संबंध में केंद्र ने सभी राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिव को एडवायजरी भेजी है और नोडल अफसर नियुक्त किए हैं। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई 27 फरवरी को करेगा।

दरअसल पुलवामा की घटना के बाद देश भर में रह रहे कश्मीरी छात्रों पर हमले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से कश्मीरी छात्रों व नागरिकों की सुरक्षा के लिए दिशानिर्देश जारी करने का आग्रह किया गया है।

वकील तारिक अदीब, जिन्होंने यह याचिका दाखिल की है, उन्होंने अपनी याचिका में अलग- अलग इलाकों में कश्मीरी छात्रों पर हो रहे हमलों संबंधी मीडिया रिपोर्ट और मेघालय के राज्यपाल तथागत रॉय के सोशल मीडिया पर बयानों का हवाला भी दिया है। 

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