अनिल अंबानी के खिलाफ एरिक्शन की अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में दलीलें पूरी, फैसला सुरक्षित

Update: 2019-02-13 16:30 GMT

एरिक्सन की रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) के चेयरमैन अनिल अंबानी व 2 अन्य अधिकारियों के खिलाफ अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।

जस्टिस रोहिंटन एफ. नरीमन और जस्टिस विनीत सरन की पीठ ने बुधवार को एरिक्सन के लिए पेश वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे और अनिल अंबानी के लिए पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी के साथ- साथ 2 अन्य निदेशकों के लिए पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल की दलीलें सुनने के बाद ये फैसला सुरक्षित रखा।

इस दौरान अनिल अंबानी के अलावा अवमानना याचिका में अन्य 2 उत्तरदाताओं, रिलायंस टेलीकॉम लिमिटेड के अध्यक्ष सतीश सेठ और रिलायंस इंफ्राटेल लिमिटेड की अध्यक्षा छाया वीरानी भी अदालत में उपस्थित रहे।

इस दौरान दवे ने तर्क दिया कि अनिल अंबानी के माध्यम से आरकॉम ने शीर्ष अदालत के 3 अगस्त, 2018 के आदेश का "जानबूझकर और सचेत रूप से" उल्लंघन किया है। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने 23 अक्टूबर, 2018 को आरकॉम को निपटान की राशि को मंजूरी देने के लिए 15 दिसंबर तक का एक आखिरी अवसर दिया था और यहां तक कि इसका अनुपालन भी नहीं किया गया।

उन्होंने कहा कि कंपनी अपनी परिसंपत्तियों को बेचने के बाद 5,000 करोड़ प्राप्त करने के बावजूद शीर्ष अदालत के समक्ष की गई प्रतिबद्धता का सम्मान करने में विफल रही। उन्होंने कहा कि यह ट्राइब्यूनल के समक्ष इनसॉल्वेंसी की कार्यवाही का हवाला देते हुए आरकॉम द्वारा की गई प्रतिबद्धता को खत्म करने का प्रयास है।

दवे ने आगे यह भी कहा कि कंपनी के पास राफेल में निवेश करने के लिए रुपये हैं लेकिन उनके पास बकायेदारों के लिए पैसे नहीं हैं।

वहीं रोहतगी ने तर्क दिया कि आरकॉम ने अपने उधारदाताओं को वापस भुगतान करने के लिए परिसंपत्तियों को बेचने में अपनी विफलता के बाद दिवाला कार्यवाही का विकल्प चुनने का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि अध्यक्ष और निदेशकों द्वारा दिए गए उपक्रम रुपये के लिए रिलायंस जियो को परिसंपत्तियों की बिक्री के लिए सशर्त उपक्रम थे। रोहतगी ने कहा कि जियो ने केवल खाते में 784 करोड़ दिए हैं जिसका उपयोग ऋणदाता बैंकों द्वारा स्पेक्ट्रम के लाइसेंस को जीवित रखने के लिए दूरसंचार विभाग को भुगतान करने के लिए किया गया था।

रोहतगी और कपिल सिब्बल दोनों ने कहा कि कंपनी द्वारा कोर्ट केस की कोई अवमानना नहीं की गई क्योंकि एक विचाराधीन बिक्री के अाधार पर ये तय किया गया था।

भारतीय स्टेट बैंक की ओर से पेश वरिष्ठ वकील नीरज किशन कौल ने यह दलील दी कि एरिक्सन अन्य 45 ऋणदाताओं पर प्राथमिकता नहीं प्राप्त कर सकता और उन्होंने इस आरोप से इनकार किया कि बैंकरों और अनिल अंबानी के बीच मिलीभगत है। 07 जनवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने एरिक्सन की याचिका पर रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) के चेयरमैन अनिल अंबानी व अन्य को अवमानना का नोटिस जारी कर उनकी ओर से जवाब मांगा था। अनिल अंबानी को अदालत में पेश होने से छूट भी नहीं दी गई थी।

दरअसल एरिक्सन इंडिया कंपनी ने रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) के चेयरमैन अनिल अंबानी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना की कार्यवाही शुरु करने की याचिका दाखिल की है। हालांकि रिलांयस की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और मुकुल रोहतगी ने एरिक्सन को देने के लिए 118 करोड़ रुपये सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री में जमा कराने का ऑफर भी दिया और सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस आर. एफ. नरीमन ने इस पर असंतुष्टि जताई थी लेकिन इसे रिकॉर्ड पर ले लिया था। हालांकि एरिक्सन के वकील ने इसका विरोध करते हुए कहा कि आरकॉम पर एरिक्सन के 550 करोड़ रुपए बकाया हैं।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने आरकॉम को 15 दिसंबर 2018 तक यह रकम चुकाने के लिए कहा था लेकिन कंपनी उक्त रकम का भुगतान नहीं कर पाई। एरिक्सन का कहना है कि यह अदालत की अवमानना है।

सुप्रीम कोर्ट ने बीते साल 2अक्टूबर को आरकॉम को कहा था कि वह एरिक्सन को 15 दिसंबर 2018 तक भुगतान करे। रकम चुकाने में देरी हुई तो सालाना 12% के हिसाब से उन्हें ब्याज देना पड़ेगा। इस दौरान आरकॉम ने जियो के साथ असेट बिक्री की डील अटकने का हवाला देते हुए कोर्ट से और समय मांगा था और कोर्ट ने उसे 15 दिसंबर तक भुगतान का आखिरी मौका दिया था।

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