मध्य प्रदेश काडर के पुलिस अधिकारी ऋषि कुमार शुक्ला को सीबीआई का निदेशक नियुक्त किया गया है। 1983 बैच के IPS अधिकारी, ऋषि कुमार शुक्ला मध्य प्रदेश के पूर्व डीजीपी भी रहे हैं और वो अब 2 साल के लिए सीबीआई निदेशक बनाए गए हैं। सीबीआई निदेशक का ये पद 10 जनवरी को आलोक वर्मा को हटाए जाने के बाद से ही खाली था।
शुक्रवार को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की हाई पावर कमेटी की बैठक हुई थी और उसी में शुक्ला के नाम का चयन किया गया। शनिवार को इस संबंध में नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया।
हालांकि सूत्रों ने बताया कि मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस चयन पर असहमति जताई। उनका मानना था कि भ्रष्टाचार निरोधी जांच के मामलों में ऋषि कुमार शुक्ला को खास अनुभव नहीं है और इसी के चलते उन्होंने शुक्ला के नाम पर अपनी आपत्ति जताई। ऋषि कुमार शुक्ला, ग्वालियर के रहने वाले हैं। फिलहाल वो मध्य प्रदेश हाउसिंग बोर्ड के चेयरमैन थे।
इससे पहले शुक्रवार को एम. नागेश्वर राव को सीबीआई का अतंरिम निदेशक बनाए जाने के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई 6 अप्रैल तक टाल दी थी।
जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस नवीन सिन्हा की पीठ ने केंद्र सरकार से कहा था कि वो जल्द से जल्द सीबीआई के निदेशक की नियुक्ति करे क्योंकि अंतरिम निदेशक, पद पर लंबे वक्त तक नहीं रह सकते और सीबीआई निदेशक का पद एड- हॉक तरीके से नहीं चलाया जा सकता।
वहीं केंद्र की ओर से पेश अटार्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने पीठ को बताया था कि सीबीआई निदेशक के चयन के लिए हाई पावर कमेटी की बैठक शुक्रवार (01 फरवरी) को ही होनी है। उन्होंने पीठ को ये भी बताया था कि अंतरिम निदेशक एम. नागेश्वर राव की नियुक्ति से पहले हाई पावर कमेटी की मंजूरी ली गई थी।
दरअसल इस मामले में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस ए. के. सीकरी के बाद जस्टिस एन. वी. रमना ने भी सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।
31 जनवरी को कॉमन कॉज की याचिका पर सुनवाई होनी थी, लेकिन जस्टिस रमना ने ये कहते हुए इस मामले की सुनवाई से खुदको अलग कर लिया कि नागेश्वर राव उनके ही गृह-राज्य के हैं और वो बतौर मेहमान उनकी बेटी की शादी में शरीक हुए थे। इस पीठ में जस्टिस एम. एम. शांतनागौदर और जस्टिस इंदिरा बनर्जी भी शामिल थे।
24 जनवरी को जस्टिस ए. के. सीकरी ने कहा था कि वो इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर रहे हैं। वो मानते हैं कि याचिका में अहम और खास मुद्दे उठाए गए हैं लेकिन वो इस पर सुनवाई नहीं कर सकते हैं। इससे पहले 21 जनवरी को चीफ जस्टिस ने भी खुद को इस मामले की सुनवाई से अलग कर लिया था।
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कॉमन कॉज ने कहा है कि एम. नागेश्वर राव की नियुक्ति मनमानी और गैरकानूनी है, और दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान कानून, 1946 की धारा 4ए के तहत सीबीआई में अंतरिम निदेशक के पद की कोई व्यवस्था नहीं है। याचिका के अनुसार एम. नागेश्वर राव को सीबीआई का अंतरिम निदेशक नियुक्त करने का सरकार का पिछले साल 23 अक्टूबर 2018 का आदेश, सुप्रीम कोर्ट ने बीते 8 जनवरी को रद्द कर दिया था। लेकिन सरकार ने मनमाने, गैरकानूनी और दुर्भावनापूर्ण तरीके से कदम उठाते हुए पुन: इस पद पर नियुक्ति कर दी।
याचिका में लोकपाल और लोकायुक्त कानून, 2013 में किए गए संशोधन में तय प्रक्रिया के अनुसार केंद्र को सीबीआई का नियमित निदेशक नियुक्त करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
वहीं याचिका में कहा गया है कि सीबीआई निदेशक के चयन और नियुक्ति की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाना चाहिए। निदेशक पद के लिए चुने गए उम्मीदवारों की सूची वेबसाइट पर जारी होनी चाहिए और प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की हाई पावर कमेटी की बैठक का ब्यौरा सार्वजनिक होना चाहिए।
गौरतलब है कि 10 जनवरी को आलोक वर्मा को जांच एजेंसी के निदेशक पद से हटाए जाने के बाद केंद्र सरकार ने नए निदेशक की नियुक्ति होने तक एम. नागेश्वर राव को सीबीआई का अंतरिम निदेशक नियुक्त किया था।