-निशिकांत प्रसाद
भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ इसके बाद संविधान सभा के अथक प्रयासों के परिणाम स्वरूप हमें 26 नवंबर 1949 को अपना संविधान मिला, जो 26 जनवरी 1950 से पूरे देश में लागू हैl संविधान की प्रस्तावना से स्पष्ट है, कि भारत एक प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथ-निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य होगा l गणराज्य का तात्पर्य, वैसे राज्य से है जहां राज्य-प्रमुख एक निश्चित समय के लिए निर्वाचित होता हो (प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से)l
भारत में राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया-
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 55 के अनुसार भारत के राष्ट्रपति का चुनाव "आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की एकल संक्रमणीय मत पद्धति" द्वारा होता हैl
राष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित प्रक्रिया को इस प्रकार आसानी से समझा जा सकता है -
1) अप्रत्यक्ष निर्वाचन - अमेरिका से भिन्न भारत में राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए अप्रत्यक्ष निर्वाचन की व्यवस्था अपनाई गई हैl अनुच्छेद 54 के अनुसार भारत में राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचन मंडल (Electoral College) द्वारा किया जाता हैl
2) निर्वाचन मंडल के सदस्य - इस चुनाव में सभी प्रदेशों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य और लोकसभा एवं राज्यसभा में चुनकर आए सांसद निर्वाचन मंडल के सदस्य होते हैंl राष्ट्रपति की ओर से संसद में मनोनीत सदस्यों एवं राज्य की विधान परिषदों के सदस्यों को इस मंडल में शामिल नहीं किया जाता है, यानी इन्हें मत देने का अधिकार नहीं होता हैl
3) आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली - राष्ट्रपति के चुनाव में मत डालने वाले सांसदों एवं विधायकों के मत का मूल्य अलग-अलग होता हैl साथ ही 2 राज्यों के विधायकों के मत का मूल्य भी अलग होता हैl यह मूल्य जिस तरह तय किया जाता है उसे आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली कहते हैंl
4) एकल संक्रमणीय मत पद्धति - इसका तात्पर्य है कि, निर्वाचन मंडल का प्रत्येक सदस्य एक ही वोट देगा पर साथ ही साथ तमाम उम्मीदवारों में से अपनी प्राथमिकता तय कर देता हैl यानी वह मतपत्र पर अपनी पहली पसंद, दूसरी पसंद, तीसरी पसंद बता देगाl इस पद्धति का लाभ यह है कि यदि पहली पसंद वाले मतों से विजेता का फैसला नहीं होता हो तो उम्मीदवार के खाते में मतदाता की दूसरी पसंद को नए सिंगल वोट की तहत हस्तांतरित कर दिया जाएगाl
भारत में राष्ट्रपति के चुनाव में सबसे ज्यादा वोट पाने से ही जीते नहीं होती राष्ट्रपति वही बनता है जो सांसदों एवं विधायकों के मतों के कुल मूल्य का आधा से अधिक प्राप्त कर लेl
भारत में राष्ट्रपति के पद का महत्व एवं गरिमा
भारत में शासन के संदर्भ में संसदीय प्रणाली की व्यवस्था अपनाई गई है, जिसमें वास्तविक कार्यपालिका शक्ति मंत्रिपरिषद में होती है, जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होता है एवं राष्ट्रपति इसी मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करते हैंl यानी भारत में राष्ट्रपति का पद संवैधानिक महत्व का होता है जिसकी गरिमा बनाए रखना सरकार का प्रमुख कर्तव्य होना चाहिए, लेकिन पिछले कुछ समय से राष्ट्रपति के चुनाव को लेकर जिस तरह की राजनीति हो रही है वह इस पद की गरिमा को कम करती हैl
राष्ट्रपति की अपनी कोई विशिष्ट विचारधारा नहीं होती उन्हें देश हित में संविधान के अनुरूप कार्य करने होते हैं , यह तभी संभव है जब हम इसका राजनीतिकरण होने से रोके यानी इस पद के लिए ऐसे उम्मीदवारों का चयन किया जाना चाहिए जो गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि के होl ऐसा करने से भारतीय लोकतंत्र के साथ-साथ गणतंत्र भी मजबूत होगा l
-लेखक इंस्टीट्यूट आफ लीगल स्टडीज, रांची यूनिवर्सिटी में सहायक अध्यापक हैं