समझिये IPC के अंतर्गत क्षम्य एवं तर्कसंगत कृत्य : धारा 76 एवं 79 में 'तथ्य की भूल' विशेष ['साधारण अपवाद श्रृंखला' 1]

Update: 2019-05-19 10:37 GMT

भारतीय दंड संहिता का चैप्टर IV (4th), 'साधारण अपवाद' (General exception) की बात करता है। जैसा कि नाम से जाहिर है, यह अध्याय उन परिस्थितियों की बात करता है जहाँ किसी अपराध के घटित हो जाने के बावजूद भी उसके लिए किसी प्रकार की सजा नहीं दी जाती है।

यह अध्याय ऐसे कुछ अपवाद प्रदान करता है, जहाँ किसी व्यक्ति का आपराधिक दायित्व खत्म हो जाता है। इन बचाव का आधार यह है कि यद्यपि किसी व्यक्ति ने अपराध किया है, परन्तु उसे उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि अपराध के समय, या तो मौजूदा हालात ऐसे थे कि व्यक्ति का कृत्य उचित था या उसकी हालत ऐसी थी कि वह अपराध के लिए अपेक्षित मेंस रिया (आपराधिक मनोवृत्ति) का गठन नहीं कर सकता था।

यह जान लेना बेहद आवश्यक है कि चूँकि इस अध्याय का नाम 'साधारण अपवाद' है, इसलिए यह अध्याय न केवल सम्पूर्ण भारतीय दंड संहिता पर लागू है (धारा 6 भारतीय दंड संहिता, 1860) बल्कि इसके अंतर्गत मौजूद अपवाद अन्य कानूनों के लिए भी उपलब्ध हैं।

अपवाद के प्रकार एवं उनके भेद

यह बचाव आम तौर पर 2 भागों के अंतर्गत वर्गीकृत किये जाते हैं- तर्कसंगत (Justifiable) और क्षम्य (Excusable)। इस प्रकार, किसी अपराध के लिए सजा तभी दी जा सकती है जब किसी व्यक्ति द्वारा वह अपराध किसी तर्कसंगत एवं क्षम्य औचित्य की गैर मौजूदगी में किया गया हो।

क्षम्य (Excusable) कृत्य वह है, जिसमें हालांकि उस व्यक्ति द्वारा नुकसान पहुंचाया गया था, फिर भी उस व्यक्ति या उस श्रेणी के व्यक्तियों को उस कृत्य के लिए क्षमा किया जाना चाहिए क्योंकि उसे उस कृत्य के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।

इसके अलावा, तर्गसंगत कृत्य (Justifiable act) वह हैं, जो हैं तो अपराध ही लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों के अंतर्गत उन्हें अपवाद माना जाता है और इसलिए उनके लिए कोई आपराधिक दायित्व नहीं बनता है।

इनके बीच का अंतर इस प्रकार से साफ़ किया जा सकता है कि, क्षम्य (Excusable) कृत्यों को, आपराधिक मनोवृत्ति की निहित आवश्यकता के अभाव में आपराधिक दायित्व (Criminal liability) से मुक्त किया जाता है, वहीँ औचित्यपूर्ण या तर्कसंगत (Justifiable) कृत्यों के मामले में, सामान्य परिस्थितियों में वो कृत्य एक अपराध होता और उसमे आपराधिक मनोवृत्ति की मौजूदगी भी हो सकती है, लेकिन जिन परिस्थितियों में वह कृत्य किया गया वह इसे सहनीय और स्वीकार्य बनाता है।

दूसरे शब्दों में, तर्कसंगत कृत्य (Justifiable act) के अंतर्गत एक व्यक्ति अपराध के सभी अवयवों को पूरा अवश्य करता है (यहाँ तक कि आपराधिक मनोवृत्ति की मौजूदगी भी होती है), लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों के तहत उस व्यक्ति का आचरण सही माना जाता है। वहीँ क्षम्य (Excusable) कृत्य वह होता है, जिसमें हालांकि व्यक्ति द्वारा नुकसान किया गया है, लेकिन यह माना जाता है कि उस व्यक्ति को आपराधिक दायित्व से मुक्त रखा जाना चाहिए क्योंकि उसे उस कृत्य के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है (मुख्य रूप से इसलिए क्यूंकि आपराधिक मनोवृत्ति का उस व्यक्ति में अभाव था)।

इसको अधिक सरलता से समझने के लिए हम यह कह सकते हैं कि क्षम्य (Excusable) कृत्य वह कृत्य हैं, जो इस समझ और तर्क के अभाव में किये जाते हैं कि वो किसी अपराध का गठन करेंगे (या अगर अपराध का गठन कर भी रहे हैं तो वे कृत्य कानूनी रूप से किये जाने जरुरी हैं या तर्कसंगत हैं)। वहीँ तर्कसंगत कृत्य (Justifiable act) के अंतर्गत, अमूमन वे कृत्य आते हैं जो इस समझ के साथ किये जा सकते हैं कि वे अपराध का गठन कर सकते हैं, लेकिन ऐसा करना कानूनी रूप से उचित माना जाता है।

ध्यान रहे कि जहाँ तर्कसंगत कृत्य (Justifiable act) में हमारे कानून के लिए किया गया अपराध महत्व रखता है (कि वह किन परिस्थितियों में किया गया), वहीँ क्षम्य कृत्यों के मामले में हमारे कानून के लिए अपराध करने वाला व्यक्ति मायने रखता है (क्षम्य कृत्यों के मामले में कृत्य करने वाले व्यक्ति की विधि द्वारा मान्य प्रकृति को भी ध्यान में रखा जाता है)।

दंड संहिता के अंतर्गत तर्कसंगत एवं क्षम्य कृत्य

तर्कसंगत कृत्य (Justifiable act) - न्यायिक कृत्य (धारा 77 और 78), आवश्यकता (धारा 81), सहमति से किया गया कार्य (धारा 87 - 89 और 92), सद्भावपूर्वक दी गयी संसूचना (धारा 93), विवशता में किया गया कार्य (धारा 94), तुच्छ अपहानि कारित करने वाला कार्य (धारा 95), निजी प्रतिरक्षा के अधिकार में किया गया कार्य (धारा 96-106)

क्षम्य कृत्य (Excusable act) - तथ्य की भूल (धारा 76 और 79), विधिपूर्ण कार्य करने में दुर्घटना (धारा 80), इन्फेंसी (धारा 82, 83), विकृत-चित्त व्यक्ति का कार्य (धारा 84), धारा 85-86 के अंतर्गत अपवाद

अब जबकि हमे तर्कसंगत एवं क्षम्य कृत्यों के बारे में उचित रूप से जानकारी हो चुकी है, आइये सबसे पहले क्षम्य कृत्यों से इस श्रृंखला को शुरू करते हैं। आगामी लेखों में हम 'साधारण अपवाद' के अंतर्गत क्षम्य कृत्य (Excusable act) एवं तर्कसंगत कृत्य (Justifiable act) से जुडी अन्य धाराओं के इसी वर्गीकरण केआधार पर इस अध्याय को समझेंगे।

'तथ्य की भूल-Mistake of Fact' (धारा 76 और 79)

भारतीय दंड संहिता की धारा 76 एवं 79 के अंतर्गत 'तथ्य की भूल' को आपराधिक दायित्व से मुक्त करते हैं। आइये इन धाराओं को समझते हैं, और फिर समझते हैं कि इन धाराओं के अंतर्गत किस प्रकार से आपराधिक दायित्व से छूट दी जाती है और कृत्यों को क्षम्य कृत्य समझा जाता hai।

जहाँ धारा 76 के अंतर्गत एक व्यक्ति को आपराधिक दायित्वों से उस परिस्थिति में मुक्ति मिलती जहाँ वह या तो विधि द्वारा आबद्ध है और, या फिर वह व्यक्ति सद्भावपूर्वक (Good faith) किसी तथ्य की भूल (Mistake of fact) के चलते स्वयं को विधि द्वारा आबद्ध (Bound by law) समझता है की वह कोई कार्य करे और वह कार्य करता है।

यहाँ इस बात पर ध्यान देना है कि उस परिस्थिति में जहाँ व्यक्ति द्वारा कोई कार्य विधि द्वारा आबद्ध होने के चलते किया जाता है, या तो तथ्य की भूल के चलते ऐसा समझा जाता है कि वह कार्य करना विधि द्वारा आबद्ध है। दोनों ही परिस्थितियों में किया गया कृत्य कोई भी आपराधिक दायित्व का निर्माण नहीं करता है।

वहीँ, धारा 79 के अंतर्गत एक व्यक्ति को आपराधिक दायित्व से उस परिस्थिति से मुक्ति मिलती है जहाँ वह व्यक्ति या तो किसी तर्कसंगत कार्य को करता है, या तथ्य की भूल के चलते (न की विधि की भूल के चलते) सद्भावपूर्वक यह विश्वास करता है कि उसके द्वारा किया गया कार्य कानून के अंतर्गत तर्कसंगत (Justified) है।

यह धारा उस परिस्थिति की बात करती है जहाँ व्यक्ति द्वारा कोई कार्य विधि के अंतर्गत तर्कसंगत (Justified) होने के चलते किया जाता है, या तो तथ्य की भूल के चलते (न की विधि की भूल के चलते) ऐसा समझा जाता है कि वह कार्य किया जाना विधि के अंतर्गत तर्कसंगत (Justified) है। दोनों ही परिस्थितियों में किया गया कृत्य कोई भी आपराधिक दायित्व का निर्माण नहीं करता है।

धारा 76 एवं 79 के अंतर्गत 'भूल' (Mistake) का प्रकार

जिस 'भूल' (Mistake) के चलते किये गए अपराध को धारा 76 एवं 79 के अंतर्गत क्षम्य समझा जाता है, वह किसी अपराध में व्यक्ति के आपराधिक मनोवृत्ति की आवश्यकता की जगह ले लेती है और इसलिए अदालत द्वारा व्यक्ति के दायित्व को उस व्यक्ति द्वारा विश्वास की गयी परिस्थिति (न की वास्तविक परिस्थिति) के सापेक्ष देखा जाता है। इसके अंतर्गत 'भूल' (Mistake) उस प्रकार की होनी चाहिए कि अगर वह परिस्थिति वास्तविक होती तो वह व्यक्ति उस कार्य को करने के लिए या तो आबद्ध होता (कानून के अंतर्गत) या तर्कसंगत होता (कानून के अंतर्गत).

अब एक उदहारण से इसे समझते हैं, मान लीजिये आपके घर में कोई रात को गृह-भेदन (House-breaking) के उद्देश्य से आता है और ऐसा करता है और उसके पश्च्यात पुलिस द्वारा पकड़ा जाता है, उस परिस्थिति में वह व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि वह तथ्य की भूल के चलते आपके पडोसी के घर में घुसने के बजाये आपके घर में घुस गया था और इसलिए उसे धारा 76 का लाभ मिलना चाहिए, ऐसा इसलिए क्यूंकि गृह-भेदन अपने आप में एक अपराध है और वह किसी प्रकार से भी गृह भेदन करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध नहीं कहा जा सकता है।

हालाँकि यह 'भूल' केवल तथ्य की भूल हो सकती है, न की विधि की भूल। जैसा कि एक प्रसिद्द कॉमन लॉ मैक्सिम में कहा गया है कि तथ्य की भूल क्षम्य है, परन्तु विधि की भूल अक्षम्य है (Ignorantia Facti doth Excusat, Ignorantia Juris Non Excusat)। मोहम्मद अली बनाम श्री राम स्वरुप (AIR 1965 All 161) के मामले में भी यह साफ़ किया गया था की भले ही किसी विधि की भूल सद्भावपूर्वक की गयी हो, परन्तु वह क्षम्य नहीं हो सकती है।

हालाँकि अगर किसी विधि विशेष में किसी अपराध में किसी विधि की अभियुक्त द्वारा जानकारी, अपराध का निर्माण करने के लिए जरुरी हो तो ऐसे मामलों में विधि की भूल को अदालत के सामने दलील के रूप में पेश किया जा सकता है, हालाँकि यह विधि की भूल हर हाल में सद्भावपूर्वक की जानी चाहिए (एम्परर बनाम नानक चाँद AIR 1943 Lah 208)।

यह ध्यान रखने योग्य है कि व्यक्ति को किसी भी प्रकार से उन परिस्थितियों या तथ्यों का अंदेशा नहीं होना चाहिए, जहाँ उसका कृत्य एक अपराध बन जायेगा (किंग एम्परर बनाम तुस्तिपदा मंडल AIR 1951 Ori 284)। उदहारण के तौर पर अगर कोई पुलिस कर्मी अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत (एवं मजिस्ट्रेट के जरुरी आदेशों के अंतर्गत, अगर कानून की आवश्यकता है तो) किसी घर की सद्भावपूर्वक तलाशी लेता है, यह समझते हुए कि उसके द्वारा किया जा रहा कार्य उसका कानून के अंतर्गत दायित्व है, लेकिन अगर वह ग़लत घर की तलाशी ले रहा है, तो भी कानून के अंतर्गत उसका कृत्य क्षम्य है।

वहीँ धारा 79 के अंतर्गत, भले एक कृत्य विधि के अंतर्गत तर्कसंगत न हो, लेकिन अगर वह कृत्य 'बोना फाइड' रूप से इस विश्वास के साथ किया गया है कि वह कार्य विधि के अंतर्गत तर्कसंगत (justified) है, तो वह कोई अपराध नहीं होगा [केसो साहू बनाम सालिग्राम (1977) Cr LJ 1725 (ORI)]

'विधि द्वारा आबद्ध' (Bound by Law) एवं 'विधि के अंतर्गत तर्कसंगत' (Justified by Law)

जैसा हमने इस लेख में पहले समझा है कि, जहाँ धारा 76 विधि द्वारा आबद्ध (Bound by law) कृत्यों (जो इन अपवादों की गैरमजूदगी में अपराध का गठन करते) को आपराधिक दायित्वों से मुक्त करती है, वहीँ धारा 79 के अंतर्गत, कानून के अंतर्गत तर्कसंगत (Justified by law) कृत्यों (जो इन अपवादों की गैरमजूदगी में अपराध का गठन करते) को आपराधिक दायित्वों से मुक्त किया जाता है।

'विधि द्वारा आबद्ध' (धारा 76)

धारा 76, के अंतर्गत 'विधि द्वारा आबद्ध' दंड संहिता की धारा 43 की मदद से समझा जा सकता है। इसके अंतर्गत, कोई व्यक्ति उस बात को करने के लिए वैध रूप से आबद्ध कहा जाता है जिसका लोप करना उसके लिए अवैध है। इसके अंतर्गत अपने से बड़े अधिकारी के आदेशों का पालन करना भी आता है, हालाँकि वह आदेश अवैध नहीं होना चाहिए (हाजी महमूद खान दुलाथान बनाम एम्परर AIR 1942 Sind 106)।

पश्चिम बंगाल राज्य बनाम शिव मंगल सिंह (AIR 1981 SC 1917) के प्रसिद्द वाद में यह निर्णय दिया गया था कि जब एक भीड़ द्वारा पुलिस पर हमला किया गया और अस्सिस्टेंट कमिश्नर ऑफ़ पुलिस उस भीड़ द्वारा की गयी हिंसा में घायल हो गए। यह देखते हुए डिप्टी कमिश्नर ऑफ़ पुलिस ने उस भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दिया, जिसके फलस्वरूप एक व्यक्ति और उसके भाई की मृत्यु हो गयी। कलकत्ता हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में अभियुक्त कांस्टेबल को धारा 76 का लाभ दिया था और यह कहा था कि वे उक्त समय अपनी ड्यूटी कर रहे थे और वह ऐसा करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध थे।

हालाँकि यहाँ सावधानी इस संबंध में बरती जानी चाहिए कि वरिष्ठ अधिकारी के आदेशों एवं निर्देशों को बिना किसी तर्क और युक्ति के पालन नहीं किया जाना चाहिए। अगर वरिष्ठ अधिकारी का आदेश, उचित नहीं है तो उसका पालन करने के लिए किसी प्रकार की बाध्यता नहीं हो सकती है (Re चरणदास AIR 1950 East Punjab 321)

'विधि के अंतर्गत तर्कसंगत' (धारा 79)

इसके अंतर्गत कोई भी कृत्य विधि द्वारा तर्कसंगत अगर न भी हो, पर अगर उसे इस विश्वास के साथ किया गया कि वह विधि के अंतर्गत तर्कसंगत है तो ऐसा करने वाले व्यक्ति के खिलाफ कोई मामला नहीं बन सकता है [केसो साहू बनाम सालिग्राम (1977) Cr LJ 1725 (ORI)]।

उड़ीसा राज्य बनाम खोरा घासी [(1978) Cri LJ 1305 (Ori)] के मामले में अभियुक्त ने 'बोना फाईड' तथ्य की भूल के चलते रात में एक व्यक्ति को जंगली जानवर समझकर उसकी हत्या करदी, हालाँकि अदालत द्वारा उसे दोषी नहीं ठहराया गया। वहीँ जहाँ किसी व्यक्ति को भूत समझकर मार दिया गया (उड़ीसा राज्य बनाम राम बहादुर थापा AIR 1960 Ori 161), या जहाँ अपने बच्चे को शेर समझकर मार दिया गया (चिरंगी बनाम मध्य प्रदेश राज्य AIR 1952 Nag 282) या फिर जहाँ यह समझते हुए कि जो व्यक्ति उसके घर घुस रहा है वह उसे मरने के लिए घुस रहा है और तत्पश्च्यत उसे मार दिया गया (AIR 1947 Lah 249), इन सभी मामलों में धारा 79 का लाभ अभियुक्त को दिया गया।

तथ्य की भूल: निष्कर्ष

इस लेख में हमने विस्तार से समझा कि आखिर तथ्य की भूल किन परिस्थितियों में किसी भी अपराध के लिए अपवाद बन सकती है। इसके साथ ही हमे यह समझना भी अति आवश्यक है कि किसी कृत्य को करते हुए जितना जरुरी तथ्य की भूल की मौजूदगी है, उतनी ही जरुरी बात यह है कि वह कार्य सद्भावपूर्वक किया गया हो, जिसका सीधा अर्थ यह है कि कोई भी कृत्य में ग़लत करने या अपराध करने की मंशा की मौजूदगी नहीं होनी चाहिए।

दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति को किसी भी कार्य करते समय उचित रूप से सावधानी बरतनी चाहिए जिससे किसी अपराध का गठन हो सकता हो। व्यक्ति का विश्वास निराधार नहीं होना चाहिए। Re एस. के. सुंदरम [(2001) Cr LJ 2932 (SC)] मामले में यह कहा गया था कि, उचित रूप से सावधानी बरतने का मतलब तर्क-क्षमता का आवश्यकता के अनुसार इस्तेमाल करना है।

इसी के साथ हम 'साधारण अपवाद' (General exception) श्रृंखला के प्रथम लेख को विराम देते हैं। इस लेख में हमने तथ्य की भूल को क्षम्य कृत्य (Excusable act) के अंतर्गत समझा एवं भारतीय दंड संहिता, 1860 की धाराओं 76 एवं 79 को भी समझा। हम उम्मीद करते हैं कि आपको यह लेख उपयोगी लगा होगा, अगले अंक में हम क्षम्य कृत्य के अंतर्गत दुर्घटना (धारा 80) एवं इन्फैन्सी (धारा 82-83) को समझेंगे। आप इस श्रृंखला से जुड़े रहें क्यूंकि इस श्रृंखला में हम साधारण अपवाद को पूर्ण रूप से समझ सकेंगे।

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