राज्य जनहित और जवाबदेही की आड़ में कर्मचारियों की पेंशन जारी करने में देरी नहीं कर सकता: कलकत्ता हाइकोर्ट

Update: 2024-06-11 07:37 GMT

कलकत्ता हाइकोर्ट के जस्टिस अनिरुद्ध रॉय की एकल पीठ ने श्री कुणाल चंद्र सेन बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य के मामले में रिट याचिका पर निर्णय करते हुए कहा कि राज्य जनहित और जवाबदेही का बहाना बनाकर कर्मचारियों की पेंशन जारी करने में अनिश्चित काल तक देरी नहीं कर सकता।

मामले की पृष्ठभूमि

कुणाल चंद्र सेन (याचिकाकर्ता) को 20 दिसंबर, 2004 को अस्थायी आधार पर चंद्रनगर बंग विद्यालय का प्रधानाध्यापक नियुक्त किया गया। बाद में उन्हें 1 फरवरी, 2005 को स्थायी प्रधानाध्यापक नियुक्त किया गया। याचिकाकर्ता 31 जुलाई, 2015 को सेवानिवृत्त हुए। 11 फरवरी, 2015 को पेंशन के कागजात अनुमोदन के लिए सहायक निदेशक पेंशन, भविष्य निधि और समूह बीमा को भेजे गए। 9 जुलाई, 2015 को स्थानीय विधायक अशोक कुमार साह ने याचिकाकर्ता के खिलाफ धन के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई।

15 अक्टूबर, 2015 को सहायक विद्यालय निरीक्षक, माध्यमिक शिक्षा द्वारा की गई प्रारंभिक जांच में याचिकाकर्ता को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया। सहायक विद्यालय निरीक्षक (माध्यमिक शिक्षा) द्वारा 9 दिसंबर, 2015 को की गई जांच रिपोर्ट में भी आरोपों का कोई आधार नहीं पाया गया। इन रिपोर्टों के बावजूद, चंद्रनगर नगर पालिका ने 22 दिसंबर, 2015 को नई जांच करने के लिए एक तथ्य-खोज समिति का गठन किया। याचिकाकर्ता ने नो लायबिलिटी सर्टिफिकेट के लिए आवेदन किया, लेकिन पिछली जांचों से मंजूरी मिलने के बावजूद उनकी पेंशन और ग्रेच्युटी जारी नहीं की गई।

इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने रिट याचिका दायर की।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि वित्तीय गड़बड़ी के आरोप और स्थानीय विधायक द्वारा की गई शिकायत निराधार और निराधार थी। याचिकाकर्ता ने चंद्रनगर नगर पालिका द्वारा गठित तथ्य-खोज समिति की वैधता और आवश्यकता को चुनौती दी यह तर्क देते हुए कि पिछली जांचों से उन्हें पहले ही मंजूरी मिल चुकी थी। इसलिए यह समिति निरर्थक थी। याचिकाकर्ता ने आगे तर्क दिया कि उन्होंने नो लायबिलिटी सर्टिफिकेट के लिए आवेदन किया, जिसे पिछली जांचों से मंजूरी मिलने के बावजूद पर्याप्त आधार के बिना रोक दिया गया, जिससे उनके सेवानिवृत्ति लाभों में और देरी हुई।

दूसरी ओर प्रतिवादियों (राज्य) ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ वित्तीय हेराफेरी के आरोप थे, जिसके लिए उसकी पेंशन और ग्रेच्युटी की प्रक्रिया शुरू करने से पहले गहन जांच की आवश्यकता थी। प्रतिवादियों ने प्रस्तुत किया कि पश्चिम बंगाल नगर निगम अधिनियम, 2006 की धारा 29, पार्षदों के बोर्ड को किसी विशिष्ट कार्य के निर्वहन के लिए या किसी विशिष्ट मामले में जांच करने और रिपोर्ट करने के लिए विशेष समिति गठित करने का अधिकार और शक्ति प्रदान करती है। प्रतिवादियों ने आगे तर्क दिया कि नो लायबिलिटी सर्टिफिकेट जारी करना सभी आवश्यक जांच पूरी होने और सभी आरोपों के निपटान पर निर्भर था, जिनका निर्णायक रूप से समाधान नहीं किया गया।

न्यायालय के निष्कर्ष

न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता को पहले ही दो अलग-अलग जांच रिपोर्टों द्वारा दोषमुक्त कर दिया गया, जिसमें उसकी ओर से कोई गलत काम नहीं पाया गया, यह दर्शाता है कि उसके खिलाफ प्राथमिक आरोपों को संबोधित किया गया। न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता की पेंशन और ग्रेच्युटी के वितरण में देरी अनुचित थी।

न्यायालय ने पाया कि तथ्यान्वेषण समिति का गठन याचिकाकर्ता को पूर्व जांचों में दोषमुक्त किए जाने के बाद किया गया, जिससे समिति के औचित्य और उद्देश्य पर सवाल उठते हैं।

न्यायालय ने याचिकाकर्ता के समय पर सेवानिवृत्ति लाभ पाने के अधिकार के विरुद्ध गहन जांच की आवश्यकता को संतुलित किया। इसने माना कि जनहित और जवाबदेही की आड़ में प्रतिवादियों की कार्रवाइयों में लंबे समय तक देरी के लिए पर्याप्त औचित्य का अभाव था।

न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि याचिकाकर्ता नो लायबिलिटी सर्टिफिकेट का हकदार था, क्योंकि जांचों में उसे दोषमुक्त कर दिया गया। इसने पाया कि प्रतिवादियों द्वारा इस सर्टिफिकेट को रोकना अनुचित है और याचिकाकर्ता के अधिकारों में अनुचित बाधा है। न्यायालय ने प्रतिवादियों को याचिकाकर्ता की पेंशन और ग्रेच्युटी जारी करने का निर्देश दिया। इसने याचिकाकर्ता को नो लायबिलिटी सर्टिफिकेट जारी करने का भी आदेश दिया, जिससे उसके सेवानिवृत्ति लाभों के प्रसंस्करण का रास्ता साफ हो गया।

उपर्युक्त टिप्पणियों के साथ रिट याचिका को अनुमति दी गई।

केस टाइटल- कुणाल चंद्र सेन बनाम पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य।

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