DNA रिपोर्ट में देरी के चलते POCSO के अंतर्गत चल रहे मामले की कार्यवाही को लटकाया नहीं जा सकता: राजस्थान हाईकोर्ट

Update: 2020-12-14 08:20 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते सुनाये एक आदेश में यह साफ़ किया है कि POCSO कोर्ट का यह कर्तव्य है कि वह जल्द से जल्द बच्चे का बयान दर्ज करे और डीएनए रिपोर्ट मिलने में देरी के चलते मामले की कार्यवाही में देरी नहीं होनी चाहिए।

न्यायमूर्ति पंकज भंडारी की पीठ ने यह आदेश उस मामले में सुनाया जहाँ अपीलार्थी-अभियुक्त के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 एवं 342, POCSO की धारा 3/4 और एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(1)(w), 3(2)(va) के अंतर्गत मामला विचाराधीन है।

दरअसल अपीलार्थी ने विशेष न्यायाधीश, POCSO अधिनियम द्वारा दिनांक 08.11.2019 को पारित उस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की थी, जिसके तहत अपीलकर्ता द्वारा जमानत की मांग करती हुई याचिका को खारिज कर दिया गया था।

अपीलकर्ता के लिए पेश वकील द्वारा यह तर्क दिया गया कि न्यायालय द्वारा दिए गए कई निर्देशों के बावजूद, डीएनए रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई है और याचिकाकर्ता एक साल से अधिक की अवधि से हिरासत में है।

अदालत ने अपने आदेश में कहा,

"POCSO कोर्ट का यह कर्तव्य है कि वह जल्द से जल्द बच्चे का बयान दर्ज करे। रेप पीडिता ने विशेष रूप से धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज अपने बयान में कहा है कि उसके साथ अपीलकर्ता ने बलात्कार किया और उसके बाद वह गर्भवती हो गई।"

मुख्य रूप से अदालत ने आगे यह कहा कि,

"अपीलार्थी के इस तर्क पर कि अदालत के दिशानिर्देशों के बावजूद डीएनए रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई है, इस स्तर पर ध्यान नहीं दिया जा सकता है, क्योंकि यह POCSO कोर्ट का प्राथमिक कर्तव्य है कि वह जल्द से जल्द बच्चे का बयान दर्ज करे और डीएनए रिपोर्ट को प्राप्त करने में देरी के चलते, किसी मामले की कार्यवाही में देरी नहीं होनी चाहिए।"

इस प्रकार से आपराधिक अपील को खारिज कर दिया गया और ट्रायल कोर्ट को मामले के साथ आगे बढ़ने और अभियोजन पक्ष का बयान दर्ज करने का निर्देश दिया गया।

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