खान और खनिज अधिनियम पर मजिस्ट्रेट धारा 156 (3) के तहत FIR के आदेश दे सकता है, धारा 22 के तहत रोक लागू नहीं : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम की धारा 22 के तहत रोक लागू नहीं होगी, जब कोई मजिस्ट्रेट आपराधिक प्रक्रिया संहिता धारा 156 (3) के तहत शक्तियों के प्रयोग में एमएमडीआर अधिनियम और नियमों के तहत अपराधों के लिए भी मामला / एफआईआर ट / अपराध दर्ज करने के लिए संबंधित पुलिस स्टेशन के प्रभारी / एसएचओ को निर्देश देता है।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने कानूनी स्थिति का इस प्रकार सारांश दिया:
1. मजिस्ट्रेट आपराधिक प्रक्रिया संहिता धारा 156 (3) के तहत शक्तियों के प्रयोग में MMDR अधिनियम और नियमों के तहत अपराधों के लिए भी मामला / एफआईआर ट / अपराध दर्ज करने के लिए संबंधित पुलिस स्टेशन के प्रभारी / एसएचओ को निर्देश दे सकता है, यहां तक कि एमएमडीआर अधिनियम और नियम के तहत अपराधों पर भी और इस स्तर पर एमएमडीआर अधिनियम की धारा 22 के तहत रोक को आकर्षित नहीं किया जाएगा;
2. एमएमडीआर अधिनियम की धारा 22 के तहत रोक को केवल तभी आकर्षित किया जाएगा जब मजिस्ट्रेट एमएमडीआर अधिनियम और नियमों के तहत अपराधों का संज्ञान लेता है और एमएमडीआर अधिनियम और नियमों के तहत किए गए अपराधों के लिए प्रक्रिया / समन जारी करने के आदेश जारी करता है;
3. आईपीसी के तहत अपराध के गठन के लिए, पुलिस रिपोर्ट प्राप्त होने पर, क्षेत्राधिकार वाला मजिस्ट्रेट एमएमडीआर अधिनियम और नियमों के प्रावधान के उल्लंघन के संबंध में मान्यता प्राप्त करने के लिए प्राधिकृत अधिकारी द्वारा दायर की जाने वाली शिकायत की प्राप्ति की प्रतीक्षा किए बिना उक्त अपराध का संज्ञान ले सकता है; तथा
4. एमएमडीआर अधिनियम और नियमों के विभिन्न प्रावधानों के उल्लंघन के संबंध में, जब एक मजिस्ट्रेट संहिता की धारा 156 (3) के तहत एक आदेश पारित करता है और संबंधित थाना प्रभारी / एसएचओ को अपराध का मामला/ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देता है तो अधिनियम और नियमों के विभिन्न प्रावधानों के उल्लंघन के संबंध में थाने का संबंधित प्रभारी / जांच अधिकारी की जांच के बाद एक रिपोर्ट प्रस्तुत करता है, उसको संबंधित मजिस्ट्रेट और एमएमडीआर अधिनियम और नियमों के प्रावधान अधिनियम की धारा 22 में उल्लिखित प्राधिकृत अधिकारी को भी भेजा जा सकता है और उसके बाद संबंधित प्राधिकृत अधिकारी शिकायतकर्ता मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज कर सकता है, साथ ही संबंधित जांच अधिकारी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के बाद और इसके बाद मजिस्ट्रेट के लिए खुला हो जाएगा कि वो एमएमडीआर अधिनियम और नियमों के विभिन्न प्रावधानों के उल्लंघन के संबंध में नियत प्रक्रिया / समन जारी करे और उस स्तर पर यह कहा जा सकता है कि मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लिया गया है।
इस मामले में, मंदसौर के न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम श्रेणी, ने चंबल, शिवना और रीतम और अन्य सहायक नदियों से खनिज रेत के अवैध उत्खनन / परिवहन के बारे में एक अखबार की रिपोर्ट पर ध्यान देने के बाद 156 (3) सीआरपीसी के तहत आपराधिक मामला दर्ज जांच शुरू करने और उचित जांच के बाद रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए का निर्देश दिया।
नतीजतन, धारा 379 और 414, आईपीसी, खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 की धारा 4/21 और मध्य प्रदेश खनिज (अवैध खनन, परिवहन और भंडारण की रोकथाम) नियम, 2006 के नियम 18 के तहत अपराधों के लिए एफआईआर दर्ज की गई।
आरोपी ने एफआईआर को रद्द करने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया कि एमएमडीआर अधिनियम की धारा 22 के तहत रोक के मद्देनज़र, मजिस्ट्रेट द्वारा एफआईआर दर्ज करने के निर्देश के लिए पारित आदेश टिकने वाले नहीं हैं।
इसके बाद यह दावा किया गया कि 1996 के नियमों के नियम 53 के तहत शक्तियों के प्रयोग में कंपाउंडिंग का प्रावधान था और उल्लंघनकर्ताओं ने अपराध के लिए निर्धारित राशि का भुगतान किया था, उसके बाद मजिस्ट्रेट को नई कार्यवाही शुरू करने के निर्देश में उचित नहीं ठहराया जा सकता और ये "दोहरे खतरे" के सिद्धांत के तहत होगा। हाईकोर्ट ने एफआईआर को बरकरार रखते हुए याचिका खारिज कर दी।
अपील में, सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने राज्य (दिल्ली एनसीटी) बनाम संजय, (2014) 9 एससीसी 772 का उल्लेख करते हुए कहा कि एमएमडीआर अधिनियम की धारा 22 में किसी व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा चलाने पर रोक है सिवाय इसके कि प्राधिकृत अधिकारी द्वारा लिखित कार्रवाई के तहत जब ऐसे व्यक्ति पर एमएमडीआर अधिनियम की धारा 4 और 17 के उल्लंघन के लिए मुकदमा चलाने की मांग की जाएगी और न कि किसी कृत्य या चूक के लिए जो दंड संहिता के तहत अपराध बनता है।
न्यायालय ने उल्लेख किया कि धारा 22 में प्रावधान है कि एमएमडीआर अधिनियम या उसके तहत बनाए गए किसी भी दंडनीय अपराध का संज्ञान केंद्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा इस संबंध में प्राधिकृत व्यक्ति द्वारा लिखित शिकायत पर ही लिया जाएगा और इसलिए जब मजिस्ट्रेट ने संज्ञान लिया तो रोक को आकर्षित किया जाएगा।
न्यायालय ने विभिन्न निर्णयों का उल्लेख करते हुए कहा:
"जब पुलिस को कोड की धारा 156 (3) के तहत जांच के लिए मजिस्ट्रेट द्वारा एक आदेश पारित किया जाता है, जो मजिस्ट्रेट ने तत्काल मामले में किया, जब ऐसा आदेश किया जाता है पुलिस मामले की जांच करने के लिए और संहिता की धारा 173 (2) के तहत एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए बाध्य होती है। तत्पश्चात जांच अधिकारी को प्राधिकृत अधिकारी को रिपोर्ट भेजने की आवश्यकता होती है और उसके बाद एमएमडीआर अधिनियम की धारा 22 के तहत परिकल्पित प्राधिकृत अधिकारी, जैसा कि एमएमडीआर अधिनियम की धारा 22 में उल्लिखित है, शिकायत और जांच अधिकारी द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट को मजिस्ट्रेट के पास दर्ज कर सकता है और उस स्तर पर मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लेने के संबंध में सवाल उठेगा। "
इस मामले में एक और विवाद यह था कि, एक बार अधिनियम या नियमों के तहत कार्यवाही हो जाने के बाद, कोई और कार्यवाही नहीं हो सकती। आंशिक रूप से अपील को अनुमति देते हुए (एमएमडीआर अधिनियम - धारा 4/21 एमएमडीआर अधिनियम के तहत अपराधों के लिए कार्यवाही को समाप्त करने की अनुमति), पीठ ने कहा :
"ऐसे मामले में जहां उल्लंघनकर्ता को धारा 23 ए की उपधारा 1 के अनुसार दंड के भुगतान पर अपराध को कम करने की अनुमति है, एमएमडीआर अधिनियम की धारा 23 ए की उपधारा 2 पर विचार करते हुए, अपराधी के संबंध में कोई कार्यवाही या आगे की कार्यवाही नहीं होगी क्योंकि एमएमडीआर अधिनियम या किसी नियम के तहत किए गए अपराधों को कंपाउंडिंग बनाया गया है। हालांकि, धारा 23A की उपधारा 2 के तहत रोक आईपीसी के तहत अपराधों के लिए किसी भी कार्यवाही को प्रभावित नहीं करेगी, जैसे कि धारा 379 और 414 आईपीसी है और ये आगे बढ़ेगा।
केस: जयंत बनाम मध्य प्रदेश राज्य [आपराधिक अपील संख्या .824825/ 2020]
पीठ : जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एमआर शाह
वकील : वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत