धोखाधड़ी के आरोपों और DRT में लंबित कार्यवाही से मध्यस्थता पर रोक नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट का फ़ैसला
बॉम्बे हाईकोर्ट ने मध्यस्थता (आर्बिट्रेशन) के दायरे पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि केवल आपराधिक FIR दर्ज होने या ऋण वसूली न्यायाधिकरण (DRT) में कार्यवाही लंबित होने से विवादों को मध्यस्थता के लिए संदर्भित करने पर कोई रोक नहीं लगती है।
जस्टिस अद्वैत एम. सेथना की पीठ ने मध्यस्थता अधिनियम, 1996 की धारा 11 के तहत दायर आवेदन स्वीकार किया और मंगल क्रेडिट एंड फिनकॉर्प लिमिटेड और उल्का चंद्रशेखर नायर के बीच ऋण विवादों के समाधान के लिए पूर्व चीफ जस्टिस नरेश एच. पाटिल को एकमात्र मध्यस्थ नियुक्त किया।
यह विवाद तब शुरू हुआ, जब मंगल क्रेडिट एंड फिनकॉर्प लिमिटेड (आवेदक) ने मुंबई की संपत्ति गिरवी रखकर दिए गए लगभग 3.44 करोड़ रुपये के ऋण की वसूली चाही। गिरवी विलेखों (मॉर्गेज डीड्स) के खंड 21 में आर्बिट्रेशन क्लॉज़ शामिल था, जिसका उपयोग आवेदक ने ऋण डिफ़ॉल्ट के बाद जनवरी, 2023 में किया।
प्रतिवादी नायर ने यह दावा करते हुए मध्यस्थता आवेदन का कड़ा विरोध किया कि ऋण दस्तावेज़ और गिरवी विलेख जालसाज़ी के माध्यम से बनाए गए। उनके तर्कों में हस्तलेखन विशेषज्ञ की रिपोर्ट और अक्टूबर, 2023 में धोखाधड़ी और जालसाज़ी के लिए दर्ज की गई एक FIR शामिल थी। उन्होंने यह भी बताया कि सिविल कोर्ट (DRT मुंबई) ने पहले ही दोनों पक्षों को गिरवी रखी गई संपत्ति पर यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया। प्रतिवादी का तर्क था कि आपराधिकता के ऐसे गंभीर आरोपों का फैसला मध्यस्थ के बजाय आपराधिक और सिविल अदालतों द्वारा किया जाना चाहिए।
हाईकोर्ट के निष्कर्ष
हाईकोर्ट ने प्रतिवादी के तर्कों को ख़ारिज करते हुए कहा कि इस स्तर पर मध्यस्थता को रोकना स्थापित कानूनी सिद्धांतों के विपरीत और अनुमान पर आधारित होगा।
कोर्ट ने टिप्पणी की कि FIR दर्ज होने के बावजूद अभी तक कोई आरोपपत्र दायर नहीं किया गया और आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं हुई। कोर्ट ने कहा कि केवल गिरवी विलेखों पर आपराधिकता या लंबित FIR के आधार पर हमला करने से प्रतिवादी को इस मोड़ पर अपने संविदात्मक दायित्वों को अस्वीकार करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। बेंच ने स्पष्ट किया कि DRT में कार्यवाही की मात्र लंबितता मध्यस्थता अधिनियम की धारा 11 के तहत विवाद को मध्यस्थता के लिए संदर्भित करने पर अपने आप में कोई रोक नहीं लगाती है।
सक्षमता के कानूनी सिद्धांत को लागू करते हुए कोर्ट ने पुष्टि की कि मध्यस्थ अपनी स्वयं की अधिकारिता पर फैसला सुनाने के लिए पूरी तरह से सशक्त है, जिसमें विवाद की मध्यस्थता और अंतर्निहित अनुबंध की वैधता की चुनौतियाँ शामिल हैं। कोर्ट ने कहा कि धारा 11 के तहत कोर्ट को धोखाधड़ी के आरोपों की "मिनी ट्रायल" आयोजित करने से रोक दिया गया।
कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि प्रतिवादी के हस्ताक्षरकर्ता न होने और जालसाज़ी से संबंधित दावे स्पष्ट रूप से मध्यस्थता के दायरे में आते हैं। इस आवेदन को स्वीकार करके बॉम्बे हाईकोर्ट ने भारतीय कानून के मध्यस्थता-समर्थक रुख को मजबूत किया, यह मानते हुए कि गंभीर आरोप भले ही FIR द्वारा समर्थित हों, स्वचालित रूप से आर्बिट्रेशन क्लॉज़ को अमान्य नहीं करते हैं, जब तक कि मूल अनुबंध को पूरी तरह से शून्य नहीं माना जाता है।
नव-नियुक्त मध्यस्थ अब अधिकारिता और गिरवी विलेखों की वैधता के संबंध में किसी भी प्रारंभिक आपत्ति सहित विवादों का निर्णय करेंगे।