तकनीकी आधार पर खारिज याचिका नहीं रोकेगी मुआवज़े की नई उम्मीद: बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
भूमि अधिग्रहण मामलों में मुआवज़े की पुनः गणना को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि यदि ज़मीन अधिग्रहण अधिनियम की धारा 18 के तहत दाखिल याचिका तकनीकी कारणों से खारिज हो गई हो और उसका गुण-दोष के आधार पर निपटारा नहीं हुआ हो तो प्रभावित व्यक्ति को धारा 28-A के तहत पुन: मुआवज़े की मांग करने का पूरा हक है।
जस्टिस आर.जी. अवचट और जस्टिस नीरज पी. धोटे की खंडपीठ ने यह फैसला उस याचिका पर सुनाया, जिसमें उस्मानाबाद जिले की एक ज़मीन मालकिन ने मुआवज़े की बढ़ोतरी के लिए राहत मांगी थी।
वर्ष 1996 में हुई ज़मीन अधिग्रहण प्रक्रिया में मिली राशि से असंतुष्ट होकर याचिकाकर्ता ने पहले धारा 18 के तहत रेफरेंस दायर किया लेकिन वह साक्ष्य के अभाव में खारिज हो गया। उनकी पुनरावेदन याचिका और सुप्रीम कोर्ट की एसएलपी भी देरी के आधार पर खारिज कर दी गई।
इसी बीच उसी अधिग्रहण प्रक्रिया में एक सह-ग्रामवासी को अधिक मुआवज़ा मिल गया। यह देखते हुए याचिकाकर्ता ने धारा 28-A के तहत नया आवेदन दायर किया, जिसे कलेक्टर ने सिर्फ इस आधार पर खारिज कर दिया कि उन्होंने पहले धारा 18 के तहत रेफरेंस दाखिल किया था।
हाईकोर्ट ने इसे अनुचित ठहराते हुए कहा,
"धारा 28-A को एक कल्याणकारी प्रावधान के रूप में देखा जाना चाहिए। यदि पहले की याचिका का गुण-दोष के आधार पर निपटारा नहीं हुआ है तो व्यक्ति को धारा 28-A के तहत राहत मांगने से वंचित नहीं किया जा सकता।"
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता की धारा 18 के तहत दायर याचिका पर कोई न्यायिक निर्णय नहीं हुआ। इस कारण उसे धारा 28-A का लाभ मिलना चाहिए।
इस आधार पर हाईकोर्ट ने कलेक्टर का आदेश रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता की धारा 28-A की अर्जी को कानून के अनुसार नए सिरे से मेरिट पर तय किया जाए। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को धारा 28-A की अर्जी दायर करने से पहले की अवधि का ब्याज नहीं मिलेगा।
केस टाइटल: सुमनबाई बनाम महाराष्ट्र राज्य व अन्य [रिट याचिका संख्या 2844 / 2020]