रेल अधिनियम में अनहोनी घटना साबित करने को परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर्याप्त : बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2025-11-29 09:29 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि रेल अधिनियम, 1989 की धारा 123(सी) के तहत अनहोनी घटना को सिद्ध करने के लिए परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर भरोसा किया जा सकता है, क्योंकि यह कानून पीड़ितों तथा उनके परिजनों को मुआवजा देने के उद्देश्य से बनाया गया एक कल्याणकारी कानून है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि घटना की तत्काल रेलवे अधिकारियों को सूचना न देना मात्र इस आधार पर किसी वास्तविक दावा खारिज करने का कारण नहीं बन सकता यदि उपलब्ध परिस्थितिजन्य साक्ष्य घटना के घटित होने को स्थापित करते हों।

जस्टिस जितेंद्र जैन 17 वर्षीय किशोर के माता-पिता की ओर से दायर अपील पर सुनवाई कर रहे थे। रेलवे दावा अधिकरण ने यह कहते हुए मुआवजे का दावा खारिज कर दिया कि स्टेशन पर घटना का कोई रिकॉर्ड नहीं है और मृतक के वास्तविक यात्री होने का प्रमाण नहीं दिया गया।

मामला 5 सितंबर, 2008 का था जब किशोर अपने दोस्तों के साथ गणेश दर्शन के लिए जोगेश्वरी से लोअर परेल जा रहा था और एलफिन्स्टन व लोअर परेल स्टेशनों के बीच भीड़भाड़ वाली लोकल ट्रेन से गिर पड़ा। उसके दोस्त घबराकर उसे सीधे केईएम अस्पताल ले गए, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया। घटना का पहला समकालीन उल्लेख पंचनामा तथा अस्पताल में पुलिस के समक्ष दिए गए बयानों में मिला, जिसके बाद जीआरपी और आरपीएफ की जांच रिपोर्ट में भी संबंधित प्रविष्टियाँ दर्ज की गईं।

हाईकोर्ट ने माना कि ये सभी दस्तावेज विश्वसनीय परिस्थितिजन्य साक्ष्य हैं जो गिरने की घटना को सिद्ध करते हैं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी तेज रफ्तार चलती ट्रेन से गिरने के अनुरूप सिर पर गंभीर चोटों की पुष्टि हुई। साथ ही दोस्तों के बयान जो घटना के तुरंत बाद दिए गए थे को महत्वपूर्ण और प्रमाणिक माना गया।

न्यायालय ने कहा कि समग्र परिस्थितियों को देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि कोई अनहोनी घटना नहीं हुई। अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि कल्याणकारी कानूनों में तकनीकी आधारों पर वास्तविक दावों को विफल नहीं किया जाना चाहिए और आपराधिक मामलों में भी परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को मान्यता दी जाती है। घटना के बाद पहली उपलब्ध घड़ी में दिए गए बयानों को विशेष महत्व दिया जाना चाहिए।

इन निष्कर्षों के आधार पर न्यायालय ने 29 जनवरी, 2016 को रेलवे दावा अधिकरण द्वारा पारित आदेश को निरस्त कर दिया और अपील स्वीकार करते हुए मृतक के माता-पिता को चार लाख रुपये मुआवजा तथा दुर्घटना की तारीख से छह प्रतिशत वार्षिक ब्याज देने का निर्देश दिया। यह राशि कानून में निर्धारित अधिकतम सीमा आठ लाख रुपये के अधीन रहेगी।

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