बॉम्बे हाईकोर्ट ने बदलापुर यौन उत्पीड़न के विरोध में राजनीतिक दलों द्वारा बुलाए गए बंद पर रोक लगाई

Update: 2024-08-24 06:07 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने महा विकास अघाड़ी (MVA) को 24 अगस्त को महाराष्ट्र में राज्यव्यापी बंद बुलाने से रोक दिया।

बंद का आह्वान MVA ने किया था, जो कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार गुट) और शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) का राजनीतिक गठबंधन है। उक्त बंद का उद्देश्य ठाणे के बदलापुर में एक स्कूल में दो नाबालिग किंडरगार्टन लड़कियों के साथ यौन उत्पीड़न का विरोध करना है।

बंद को अवैध और असंवैधानिक घोषित करने की मांग करते हुए जनहित याचिका (PIL) दायर की गई।

चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस अमित बोरकर की खंडपीठ ने मौखिक रूप से आदेश सुनाया।

न्यायालय ने कहा,

"अगले आदेश तक सभी पक्षों को 24 अगस्त या किसी अन्य बाद की तारीख को बंद करने से रोका जाता है।"

न्यायालय ने राज्य अधिकारियों को बी. जी. देशमुख और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य (रिट याचिका संख्या 2827/2003) के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट की खंडपीठ के आदेश को सख्ती से लागू करने का निर्देश दिया जिसमें यह घोषित किया गया कि किसी राजनीतिक दल, संगठन या संघ द्वारा बंद या हड़ताल करना असंवैधानिक कृत्य होगा।

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि राज्यव्यापी बंद से पूरे राज्य की मशीनरी पंगु हो जाएगी और आम लोगों को बहुत असुविधा होगी।

यह कहा गया कि राज्य में पिछले बंद/आंदोलनों के कारण सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा और आर्थिक नुकसान हुआ। वकील ने तर्क दिया कि बंद का असर स्कूलों पर पड़ेगा, जहां बच्चों को मध्याह्न भोजन मिलता है।

इसके अलावा बंद से समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को कठिनाई होगी। यौन उत्पीड़न मामले की गंभीरता को स्वीकार करते हुए वकील ने बंद की आवश्यकता पर सवाल उठाया, जबकि मामले के लिए SIT का गठन किया जा चुका है। न्यायालय की समन्वय पीठ ने पहले ही स्वतः संज्ञान ले लिया। वकील ने कहा कि यौन उत्पीड़न के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के परिणामस्वरूप लगभग दस घंटे तक ट्रेनें रोकी गईं और पथराव की घटनाएं हुईं।

अन्य वकील ने तर्क दिया कि संविधान के अनुच्छेद 51ए के तहत नागरिकों का यह मौलिक कर्तव्य है कि वे सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करें और हिंसा से दूर रहें।

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि राज्य को ऐसी स्थितियों से सख्ती से निपटना चाहिए।

याचिकाकर्ताओं ने भारत कुमार के. पालीचा और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य (1997) के मामले पर भरोसा किया जहां केरल हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने माना था कि राजनीतिक दलों द्वारा बंद का आह्वान करना असंवैधानिक और अवैध है।

मामले में यह देखा गया कि राजनीतिक दलों को हुए नुकसान के लिए सरकार और निजी नागरिकों को मुआवजा देना चाहिए।

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