बॉम्बे हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: एक बार ट्रायल का मुद्दा साबित होने पर बचाव का अधिकार देने के लिए अत्यधिक जमा राशि नहीं लगाई जा सकती
बॉम्बे हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि एक बार जब सारांश मुकदमे में प्रतिवादी किसी परीक्षणीय मुद्दे को सफलतापूर्वक स्थापित कर देता है तो उसे मुकदमे का बचाव करने के लिए बिना शर्त अनुमति मिलनी चाहिए। न्यायालय बचाव का अधिकार देने के लिए दावा राशि का एक बड़ा हिस्सा जमा कराने जैसी अत्यधिक बोझिल या कठोर शर्त नहीं थोप सकता।
जस्टिस प्रफुल्ल एस. खुबलकर की पीठ याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सिविल जज के उस आदेश को चुनौती दी गई थी। सिविल जज ने अपने आदेश में HDFC लिमिटेड द्वारा दायर सारांश मुकदमे में याचिकाकर्ताओं को दावा राशि का 50% जमा करने की शर्त पर सशर्त अनुमति दी थी।
न्यायालय ने मामले के तथ्यों पर गौर किया। याचिकाकर्ताओं ने सहारा प्राइम सिटी द्वारा विकसित हाउसिंग प्रोजेक्ट में घर खरीदने के लिए HDFC लिमिटेड से होम लोन लिया था। यह ऋण सहारा प्राइम सिटी द्वारा निष्पादित एक क्षतिपूर्ति बॉन्ड (Indemnity Bond) के आधार पर स्वीकृत किया गया और राशि सीधे बिल्डर को वितरित की गई। हालांकि, हाउसिंग प्रोजेक्ट विफल हो गया और कई EMI चुकाने के बावजूद याचिकाकर्ताओं को संपत्ति का कब्जा नहीं मिला।
हाईकोर्ट ने पाया कि वसूली मुकदमे में सहारा प्राइम सिटी को एक पक्ष के रूप में शामिल नहीं किया गया, जबकि बिक्री समझौते को उसी ने निष्पादित किया। न्यायालय ने इसे एक वैध और सद्भावपूर्ण बचाव मानते हुए कहा कि सेल डीड निष्पादित न होने की स्थिति में यह महत्वपूर्ण मुद्दा है, जिस पर न्यायनिर्णयन आवश्यक है।
न्यायालय ने कहा,
"यह एक ऐसा मुद्दा है, जो परीक्षणीय है और जिसे प्रतिवादी द्वारा एक सद्भावपूर्ण बचाव के रूप में उठाया गया।"
हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि एक बार जब ट्रायल कोर्ट यह निष्कर्ष दर्ज कर लेता है कि प्रतिवादी ने एक परीक्षणीय मुद्दा उठाया तो बिना शर्त बचाव की अनुमति दी जानी चाहिए।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सारांश मुकदमे में बचाव का अवसर प्रतिवादी का अमूल्य अधिकार है। न्यायालयों का कर्तव्य है कि वे बचाव की सत्यनिष्ठा पर सावधानीपूर्वक विचार करें। न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि कठोरता के बजाय नरमी और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए तर्कसंगत मानदंडों के आधार पर ही कोई शर्त लगाई जानी चाहिए।
अंततः हाईकोर्ट ने जमा राशि की शर्त लगाने वाला आक्षेपित आदेश रद्द कर दिया और याचिकाकर्ताओं को सारांश मुकदमे का बचाव करने के लिए बिना शर्त अनुमति प्रदान कर दी।